आखिर क्या है कल्पवास? क्यों लोग अपना घर द्वार सब कुछ छोड़कर चले आते हैं प्रयागराज संगम के किनारे कल्पवास करने, जानिए इसके आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व के साथ नियम और लाभ

प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल पर कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। प्रयागराज में संगम के निकट माघ के महीने में कल्पवास करते है। मान्यताओं के अनुसार प्रयाग में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्पवास से एक ‘कल्प’ (अर्थात ब्रह्मा जी के एक दिन) का पुण्य मिलता है।

कल्पवास के पुण्यफल के विषय में वेदों, पुराणों में विधिवत बताया गया है। कल्पवास करने के लिए संगम के तट पर निवास कर वेदों का अध्ययन और ध्यान करना होता है। आइए अब हम जानते है कि कल्पवास के नियम क्या होते हैं।

कल्पवास में कितनी बार स्नान करना चाहिए और भोजन कैसा होना चाहिए

जो भी गृहस्थ मनुष्य कल्पवास का संकल्प लेकर आता है। उसे यहां ऋषियों या खुद की बनाई कुटिया, झोपड़ी या टेंट में रहना पड़ता है। कल्पवास के समय एक बार भोजन किया जाता है। भोजन व्यक्ति को स्वयं बनाना पड़ता है। भोजन सात्विक होना चाहिए। जो व्यक्ति भोजन नहीं बना पाते है वो फल खा कर व्रत करते है।

धार्मिक ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि प्रयागराज के संगम तट पर दिन मे तीन बार स्नान किया जाताहै। धैर्य और अहिंसा का पालन करते हुए भक्ति में लीन होना पड़ता है और भूमि पर सोना पड़ता है। पद्म पुराण नामक ग्रंथ में कल्पवास का वर्णन है।

आखिर क्या है कल्पवास

इसमें बताया गया है कि संगम तट पर वास करने वाले को सदाचारी, शांत चित्त और जितेंद्रिय होना चाहिए। कल्पवास के दौरान तीन कार्य तय किए गए है तप, हवन (होम) और दान। व्यक्ति की दिनचर्या संगम स्नान और पूजा अर्चना से शुरू होती है। इसके बाद देर रात तक भजन कीर्तन प्रवचन सत्संग जैसे आध्यात्मिक कार्यों में संलग्न रहना पड़ता है।

कल्पवास करने के लाभ

हिंदू धर्म में कल्पवास के व्रत और संगम तट पर स्नान का बहुत अधिक लाभ होता है | मान्यता है कि जो भी भक्त संगम के रेतीले तट पर कल्पवास करते हैं उन्हें बहुत शुभ फल प्राप्त होता है। मान्यता यह भी है कि इस माह के दौरान किया गया व्रत, सौ साल तक बिना अन्न ग्रहण की गई तपस्या के समान होता है। कल्पवास से व्यक्ति के सभी तरह के शारीरिक कष्ट दूर होते हैं।

चिकित्सा पद्धति के अनुसार कल्पवास के लाभ

आयुर्वेद में भी कल्पवास का बड़ा महत्व है। कल्पवास हमे पंचकर्मों की पद्धति में से एक पद्धति के बारे में, उसके लाभ के बारे मे सिखाती है, जो संयम और संतुलन है। आयुर्वेद के दृष्टिकोण से कल्पवास मनुष्य के जीवन मे स्वस्थ्य रहने के सबसे बड़े उद्देश्य को पूरा करने में योगदान प्रदान करती है।

एलोपैथी में भी कल्पवास के अपने लाभ है। नियमित व सीमित खानपान एवं कल्पवास की दिनचर्या कई तरह से लोगों के लिए फायदेमंद है। पेट की बीमारी से राहत मिलती है। मोटे लोगों का वजन कम होता है। शरीर फुर्तीला होता है। मंत्रों के जाप से मन को शांति मिलती है।

प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में कल्पवास से मोटे लोगों को वजन कम करने में मदद मिलती है। शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। हानिकारक तत्वों से बचाव होता है और सात्विक भोजन से मन निर्मल होता है।

यूनानी पद्धति के अनुसार कल्पवास के समय खानपान नियमित व सीमित होता है। यह हमारे शरीर के लिए बहुत लाभदायक होता है। शरीर के पाचन तंत्र में होने वाले बदलाव को यह सामान्य रखता है। उसे अनुशासित बनाता है। नियमित व सीमित खानपान शरीर के अंदर विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता को और बेहतर बनाता है। मनुष्य की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। अब हम बात करते है कल्पवास का महत्व क्या है।

कल्पवास का महत्व

मत्स्य पुराण में बताया गया है कि जो लोग कल्पवास का संकल्प लेते हैं वह अगले जन्म में राजा बनते हैं। लेकिन जो मोक्ष की अभिलाषा लेकर यहां आते हैं वह जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। प्रयाग के संगम तट पर तीन बार स्नान करके पृथ्वी पर दस हजार यज्ञ के फल के बराबर पुण्य मिलता है और यह भी माना जाता है कि माघ महीने में प्रयागराज में संगम तट पर त्रिदेव ( ब्रह्मा, विष्णु, महेश ) आते हैं।

महाभारत के एक प्रसंग में मार्कन्डेय जी,  ‘धर्मराज युधिष्ठिर’ से कहते हैं कि राजन प्रयागराज तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है। जो भी व्यक्ति प्रयाग में एक महीना इंद्रियों को वश में करके स्नान ध्यान और कल्पवास करता है उसके लिए स्वर्ग का स्थान सुरक्षित हो जाता है।

कल्पवास का विज्ञान की दृष्टि से महत्व

कल्पवास का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्व है। प्रातःकाल में उठना, पूजा-पाठ करना, दिन में दो बार स्नान और सिर्फ एक बार सात्विक भोजन के साथ बीच में फलाहार करना, शरीर के लिए भी बहुत फायदेमंद है। डॉक्टर की नजर में कल्पवास न सिर्फ मनुष्य के शरीर को अपितु पाचन तंत्र को भी अनुशासित करता है। स्वयं को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने का भी यह सबसे बेहतर माध्यम है।