आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी क्या होती है जानिए इसकी सम्पूर्ण पूजन विधि और महत्त्व

आमलकी एकादशी

हिन्दू धर्म के वार्षिक कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को ‘आमलकी एकादशी’ कहते है। पूरे वर्ष में 24 एकादशी आती है लेकिन जिस वर्ष अधिक मास अर्थात पुरुषोत्तम मास आता है उस वर्ष दो अधिक एकादशी हो जाती है यानी उस वर्ष कुल मिलाकर के 26 एकादशी पड़ती है।

प्रत्येक महीने में दो बार एकादशी आती है, एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। दोनों ही एकादशियों का भिन्न-भिन्न महत्व हमारे धर्म ग्रंथों तथा पुराणों में बताया गया है। एकादशी का व्रत सबसे बड़ा व्रत माना जाता है।

क्यूंकि यह व्रत भगवान श्री लक्ष्मी नारायण जी का परम प्रिय व्रत है। एकादशी का व्रत करने से मनुष्यों के जन्म जन्मांतर के पाप जड़ से नष्ट हो जाते हैं जिससे उनके पुण्य का उदय होता है तभी उन्हें सांसारिक तथा भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।

आमलकी एकादशी के दिन मुहूर्त का ध्यान क्यों रखना चाहिए

प्रत्येक वर्ष आमलकी एकादशी वाले दिन व्यक्ति को रवि योग, सुकर्मा योग तथा पुष्य नक्षत्र, अश्लेषा नक्षत्र के योग को ध्यान में रख कर ही व्रत और पूजन का आरम्भ करना चाहिए क्योकि आमलकी एकादशी व्रत में सही योग और नक्षत्र में व्रत पूजन करने से व्यक्ति को व्रत का पूर्णफल प्राप्त होता है। योग और नक्षत्रों के अनुसार इन व्रतों का क्या फल मिलता है, इसकी जानकारी नीचे गयी है।

  1. रवि योग में सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति मिल जाती हैं क्योकि इस योग में सूर्य का प्रभाव अधिक होता है।
  2. अतिगण्ड योग में पूजा तथा जाप करना तो शुभ माना जाता है किन्तु अतिगण्ड योग मे किसी भी प्रकार का नया काम करना अशुभ फल प्रदान करता है इसलिए ये अशुभ योग माना गया है।
  3. सुकर्मा योग नौकरी के लिए अति शुभ योग होता है। इस योग में भगवान की कृपा से व्यक्ति को मनोवांछित नौकरी प्राप्त हो जाती है।

आमलकी एकादशी व्रत का पारण करने के लिए किस बात का ध्यान रखना चाहिए

आमलकी एकादशी व्रत का पारण द्वादशी के दिन करते है। उस दिन हरिवासर (द्वादशी तिथि का पहला चौथाई समयकाल) समाप्त होने के उपरांत ही उत्तम मुहूर्त को ध्यान में रख कर और पारण करके व्रत को पूरा करना चाहिए।

आमलकी एकादशी व्रत में उपयोग होने वाली आवश्यक पूजा सामग्री

आमलकी एकादशी व्रत मे जो पूजन सामग्री प्रयोग मे लायी जाती है उसकी जानकारी इस प्रकार है। भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र, पीला फूल और माला, नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप, दीप, घी, पंचामृत, अक्षत, तुलसी दल, पीला चंदन, मिष्ठान, पीले वस्त्र, मौली इत्यादि।

आमलकी एकादशी व्रत-पूजन विधि

  1. आमलकी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त मे उठ कर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. इसके बाद पूजा घर को साफ करें।
  3. एक वेदी (चौकी) पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
  4. भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के समक्ष व्रत का संकल्प लें।
  5. भगवान को (पंचामृत – दुग्ध, दही, घी, गंगाजल, शक्कर, शहद से) स्नान करवाएं। पीले फूलों की माला और फूल अर्पित करें।
  6. हल्दी या पीला चंदन का तिलक लगाएं।
  7. पंजीरी और पंचामृत का भोग लगाएं।
  8. विष्णु जी का ध्यान करते हुए मन्त्रों का जाप और पाढ़ करे।
  9. पूजा में तुलसी पत्र अवश्य चढ़ाएं।
  10. उसके उपरांत आरती करें ।
  11. अंत मे पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा प्रार्थना करें।
  12. अगले दिन सुबह पूजा-पाठ के बाद अपना व्रत तोड़े।

आमलकी एकादशी में आंवले के वृक्ष का आध्यात्मिक महत्व

पद्म पुराण मे आयी कथा के अनुसार, आंवला का वृक्ष भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। आंवला के वृक्ष में श्री हरि एवं लक्ष्मी जी का वास होता है। इस दिन आंवले का उबटन, आंवले के पानी से स्नान, आंवले के वृक्ष के समक्ष बैठकर भजन-पूजन और दान करने का विधान है।

इस दिन माता अन्नपूर्णा के दर्शन करना भी शुभदायक होता है। आंवला ग्रहण करना भी श्रेष्ठ माना जाता है इस दिन आंवले के पेड़ के दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है, शारीरिक रोगों से छुटकारा मिलता है और मनोकामना की पूर्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के मुख से आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति हुई थी, इसीलिए आंवले के वृक्ष को देव वृक्ष भी माना गया है।

आमलकी एकादशी में आंवले के वृक्ष का धार्मिक और औषधीय महत्व

हिंदू धर्म के शास्त्रों में, हमारे पेड़ पौधों को औषधि के रूप में बहुत ही अच्छे तरीके से प्रयोग करना बताया गया है। हिन्दू धर्म में हर एक वृक्ष को भगवान द्वारा जब भी उत्पन्न किया गया है तो वह किसी न किसी औषधीय गुणों के साथ ही प्रकट किया गया है अर्थात जीव-जगत में उन वृक्षों की उपयोगिता को ध्यान में रखकर ही भगवान ने उन वनस्पतियों की रचना की है।

उन्ही वृक्षों में से आंवला भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण वृक्ष माना गया है क्योंकि इसमें समस्त प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं जो हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत ही उपयोगी होते हैं। यदि आप नियमित आंवला का सेवन करते हैं तो आप हर प्रकार की बीमारियों से दूर रह सकते हैं, अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं और एक स्वस्थ्य जीवन यापन कर सकते हैं।

आमलकी एकादशी में वैज्ञानिक महत्व

वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो आंवला एक अत्यंत उपयोगी खाद्य पदार्थ होता है। कोई भी व्यक्ति आंवले का नियमित सेवन करके विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बच सकता है जैसे- आंवला को अगर भिगोकर खाया जाए तो अपच, ब्लोटिंग, वेट लॉस में भी बहुत सहायक होता हैं।

मेटाबॉलिज्म को सही करता है। आंवले में फाइबर की मात्रा भी बहुत अधिक होती है। आंवले का नियमित सेवन, हमारी इम्यूनिटी को स्ट्रांग करने के साथ-साथ हमें किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचाने में सहायक होता है, क्योंकि इसमें बहुत अधिक मात्रा में पोषक तत्व जैसे विटामिन सी, फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट, आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम, फ्लेवोनॉयड पाए जाते हैं।

आंवला में विटामिन ए, बी और सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो आंखों के लिए भी बहुत ही उपयोगी होता है। आंवला में क्रोमियम पाया जाता है जो डायबिटीज और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है। आंवला इतना अधिक महत्वपूर्ण होता है व्यक्ति के जीवन में इसकी उपयोगिता का अंदाजा नही लगाया जा सकता।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी आमलकी एकादशी के व्रत के दिन यदि इसका सेवन किया जाये तो व्यक्ति को एक ऐसा पोषण मिल जाता है जिससे किसी भी प्रकार की कमजोरी न होने से और रोग प्रतिरोधक स्ट्रांग होने से व्रत करने में कोई समस्या नहीं होती है।

इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव की पूजा क्यों की जाती है?

ऐसा हमारे प्राचीन शास्त्रों में बताया गया है कि यदि आमलकी एकादशी के दिन आप भगवान विष्णु को आंवले का भोग लगाते है और शिवलिंग पर आंवले का प्रसाद अर्पित करते है तो आपकी समस्त प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती है। इसके अलावा यदि आप किसी भी प्रकार की पारिवारिक समस्या से परेशान है तो भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु को भी गुलाल अवश्य अर्पित करें।

यदि आप आर्थिक समस्या से जूझ रहे है तो आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की आराधना जरूर करें। यदि आप आंवले का वृक्ष लगा सकते हैं तो इस दिन आंवले के वृक्ष का रोपण करना बहुत अधिक पुण्य की प्राप्ति के बराबर होता है।

यदि आप बहुत समय से किसी बीमारी से परेशान है तो किसी मंदिर में आंवले के वृक्ष का दान करे, या मंदिर मे आंवले के पौधे का रोपड़ करें। यदि आपकी बहुत समय से कोई मनोकामना पूर्ण नहीं हो रही है तो उस कामना को पूर्ण करने के लिए इस दिन किसी मंदिर में आंवले के वृक्ष का रोपण करें।

आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा किस प्रकार करें-

आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु सहित समस्त देवी देवताओं का वास माना जाता है क्योंकि यह वृक्ष स्वयं भगवान विष्णु द्वारा प्रकट किया गया था इसलिए यह वृक्ष अत्यंत फलदाई होता है। आमलकी एकादशी के दिन इसकी पूजा करना बहुत ही जरूरी होता है।

इसके लिए सर्वप्रथम आंवले के वृक्ष के आसपास सफाई करके गोबर या मिट्टी में गंगाजल मिलकर उस स्थान को स्वच्छ कर लेना चाहिए उसके उपरांत आंवले के जड़ में बेदी बनाकर उसके जड़ में ही घट स्थापना (अर्थात कलश स्थापना) करना चाहिए।

कलश स्थापित करते समय समस्त देवी देवताओं का आवाहन करके उन्हे स्थापित करना चाहिए। तत्पश्चात गीता का पाठ या भगवान विष्णु के मंत्रो का जाप, नौ ग्रहों का आवाहन इत्यादि करते हुए विधिवत पूजा आराधना संपन्न करनी चाहिए। पूजा संपन्न होने के बाद में फलों को प्रसाद के तौर पर वितरित करना चाहिए और स्वयं फलाहार करके व्रत को पूरा करना चाहिए।

आमलकी एकादशी में क्या करे क्या नहीं

यदि आपके घर में जन्म या मृत्यु का सूतक लगा हुआ है वैसी स्थिति में व्रत अवश्य करें किंतु कुछ नियमों का पालन करके जैसे भगवान का स्पर्श और पूजन कार्य न करके अपने व्रत को पूरा कर सकते हैं आप। मासिक धर्म में भी एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिए लेकिन भगवान का स्पर्श तथा भगवान का पूजन नहीं करना चाहिए।

यदि कोई गर्भवती स्त्री एकादशी का व्रत करना चाहती है तो कर सकती है किन्तु अच्छी तरह से फलाहार करके ही उनको एकादशी व्रत का पालन करना चाहिए। प्राचीन परंपराओं के अनुसार एकादशी व्रत के दिन महिलाओ को सर धोकर स्नान नहीं करना चाहिए बल्कि एक दिन पहले (दशमी के दिन) बालो को धोकर स्नान कर ले जिससे एकादशी के दिन साधारण स्नान करके व्रत को आरंभ कर सके।

इस दिन विष्णु जी के मंदिर में दीपदान करना बड़ा शुभ माना गया है। इस दिन भगवान श्री विष्णु को जो भोग अर्पण किया जाता है उसमें तुलसी का पत्ता अवश्य होना चाहिए (लेकिन तुलसी के पत्ते को एकादशी के दिन तोड़ा नहीं जाता है इसीलिए एक दिन पहले ही तोड़ कर रख ले)।

आमलकी एकादशी के दिन तुलसी के पौधे में सुबह जल अर्पण नहीं करना चाहिए किन्तु शाम के समय तुलसी जी के समक्ष उनको बिना छुए दीपक जरूर जलाना चाहिए। माना जाता है कि इस दिन तुलसी जी का निर्जला व्रत होता है इसलिए उनको जल नहीं चढ़ाया जाता।

लेकिन अगर आप दीप दान करते हैं और वहीं बैठ कर भगवान के “ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः” इस मंत्र का जाप करते हैं तो आपके मन की समस्त कामनाएं भगवान विष्णु, मातालक्ष्मी, मातातुलसी की कृपा से जल्दी पूरी हो जाती है।

किन्तु पूजन के समय जब भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र तुलसी जी के पास स्थापित करे तो भूल कर भी माता लक्ष्मी के साथ वाला चित्र या प्रतिमा तुलसी जी के समक्ष स्थापित नहीं करना चाहिए, इस बात का हमेशा ध्यान रखें। आमलकी एकादशी के व्रत के दिन तुलसी जी की पूजा अत्यंत आवश्यक होती है।

जिस प्रकार आमलकी एकादशी के दिन सुबह विधि विधान से पूजा की जाती है ठीक उसी प्रकार शाम को भी विधि विधान से ही पूजा करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार एकादशी की रात में जागरण करने से व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है और जो भी आपकी मनोकामना होती है, भगवान विष्णु की कृपा से पूर्ण हो जाती है। इस दिन आप भागवत गीता का भी पाठ कर सकते हैं साथ ही गजेंद्र मोक्ष का पाठ भी कर सकते हैं।

आमलकी एकादशी या आंवला एकादशी का व्रत क्यों रखना चाहिए

आमलकी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। भगवान विष्णु के मुख से उत्पन्न होकर स्थापित होने के कारण तथा भगवान् विष्णु द्वारा आदि वृक्ष नाम से सम्बोधित किये जाने के कारण ही शास्त्रों में आंवले के वृक्ष को पूजनीय और श्रेष्ठ माना जाता है।

ऐसा भी कहा जाता है कि आंवले के जड़ से लेकर तने तक उसकी एक-एक कण में भगवान का वास होता है इसीलिए जो व्यक्ति अपने जन्म मरण के बंधन से मुक्त होना चाहता है या भगवान के श्री चरणों में स्थान प्राप्त करना चाहता है तो उस व्यक्ति को आमलकी एकादशी के दिन व्रत और पूजन अवश्य करना चाहिए क्योकि यह व्रत अत्यंत शुभ फलदायक माना गया है।

भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव की पूजा का कारण

आमलकी एकादशी को आंवला एकादशी और रंगभरी एकादशी भी कहते है। यह एक ऐसा व्रत है जब भगवान विष्णु के अलावा भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा भी की जाती है। यदि आप आमलकी एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा करते है किन्तु भोलेनाथ की पूजा करना भूल जाएंगे तो यह एकादशी आपके लिए न तो अत्यधिक फलदाई होगी न ही इस व्रत का सम्पूर्ण पुण्य आपको प्राप्त हो सकेगा।

सनातन धर्म में आमलकी एकादशी अत्यधिक शुभ मानी गई है। यह पर्व शुक्ल पक्ष के 11वें दिन मनाया जाता है। इस दिन वाराणसी में रंगभरी एकादशी मनाई जाती है जहां बाबा विश्वनाथ और माता गौरी को पूजा में गुलाल अर्पित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन विवाह के बाद पहली बार भगवान शिव, माता पार्वती को काशी लेकर गए थे (अर्थात इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती की शादी के बाद उनका गौना हुआ था)।

आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी

काशीवासियों ने काफी हर्ष के साथ रंग और गुलाल के उत्सव से उनका स्वागत किया था, इसीलिए आमलकी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार किया जाता है और उनकी आरती होती है। इसी दिन से ही काशी में होली का पर्व आरंभ हो जाता है जो अगले 6 दिनों तक चलता है।

इसीलिए इस एकादशी में माता पार्वती और भगवान शिव को गुलाल भी अर्पित किया जाता है। वहां के लोग हर्ष और उत्साह के साथ होली खेलते हैं एक दुसरे को गुलाल लगाते है इसीलिए आमलकी एकादशी के दिन भगवान नारायण के साथ भगवान भोलेनाथ की पूजा करने का भी प्रचलन है।

शिव की पूजा के पश्चात रंग और गुलाल भी चढ़ाया जाता है। जैसा कि हम सबको पता है कि भगवान भोलेनाथ बैरागी है। उनको कभी भी गुलाल हल्दी कुमकुम जैसी वस्तुएँ नहीं चढ़ाई जाती परन्तु विशेष पर्व पर जैसे रंगभरी एकादशी यानी आंवला एकादशी है तो बाबा विश्वनाथ के विशेष श्रृंगार में भस्म के साथ-साथ गुलाल और रंग भी चढ़ाया जाता है।

इसलिए आमलकी एकादशी के दिन अपने घर के मंदिर में या बाहर मंदिर जाके भगवान भोलेनाथ की पूजा अवश्य करें और साथ ही रंग गुलाल भी अर्पित कर सकते है।

निष्कर्ष

हिन्दू सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। उन्हीं एकादशी व्रतों मे मार्च माह अर्थात् फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली दूसरी एकादशी को आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी कहा जाता है। इस दिन विष्णु जी के साथ मां लक्ष्मी की पूजा का और भगवान् शिव के साथ माता पार्वती की पूजा का विशेष विधान है।

इस दिन मनुष्य, नियम पूर्वक व्रत करके और पूजा पाठ करके अपने जीवन के समस्त प्रकार के विघ्नों और कष्टो को दूर करने की भगवान से कामना करता है। आशा है आमलकी एकादशी से जुडी यह सम्पूर्ण जानकारी आपके लिए मंगलकारी हो।