जगन्नाथ मंदिर का रहस्य

जगन्नाथ मंदिर के रहस्य

ओडिशा के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित विश्व विख्यात जगन्नाथ मंदिर हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक है़। कहते हैं कि यहाँ भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री कृष्ण के दर्शन के पश्चात मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। बात जगन्नाथ मंदिर के इतिहास की हो अथवा उसके अदभुत बनावट की, इस मंदिर से जुड़ी हर बात आश्चर्य चकित करने वाली है़।

सबसे अदभुत बात यह है़ कि इस जगन्नाथ मंदिर में भगवान श्री कृष्ण अपने भाई बलराम और भगिनी सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। यह विश्व का एक मात्र मंदिर है़ जहाँ मधुसूदन अर्थात भगवान श्री कृष्ण अपने प्रिय भ्राता बलराम और बहन सुभद्रा के साथ भक्तों को दर्शन दे रहें हैं।

अब मन में यह प्रश्न उठता है़ कि इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण अपनी प्रिया राधा जी के साथ न होकर बलराम जी और सुभद्रा जी के साथ क्यों हैं ? इस बात के पीछे क्या रहस्य है़? जानेंगे आज इस अनोखे सत्य को। इस धाम में भगवान श्री कृष्ण जगन्नाथ के नाम से क्यों जाने जाते हैं? साथ ही यह भी जानेंगे कि इस बात के पीछे क्या रहस्य है़ कि इस मंदिर की मूर्तियाँ काष्ठ अर्थात लकड़ी की ही क्यों बनी हुईं हैं?

इस धाम के समुद्र तट पर होने के बाद भी मंदिर के अंदर समुद्र के लहरों की आवाज क्यों नहीं आती? इस जगन्नाथ मंदिर के शीर्ष पर लगी पताका हवा के विपरीत क्यों लहराती है़? इस मंदिर के भवन की परछाई किसी को क्यों नहीं दिखाई देती है? आज हम चर्चा करेंगे भगवान जगन्नाथ के मंदिर के उन सभी तमाम रहस्यों की, जिनके कारण यह मंदिर अपने आप में अदभुत और अनोखा है़।

जगन्नाथ मंदिर की कहानी

यह कहानी महाभारत युद्ध के बीस वर्ष बाद की है़। एक बार भगवान श्री कृष्ण वन में विश्राम कर रहे थे कि उधर से अज नाम का एक शिकारी निकला । उस शिकारी को सोये हुये भगवान श्री कृष्ण के पाँव के नीचे का तलवा दिखाई दिया। उस शिकारी को लगा कि पेड़-पौधों में छिपकर कोई जीव बैठा है़।

यह जानकर उस शिकारी ने अपने धनुष-बाण से भगवान श्री कृष्ण के पाँव पर निशाना लगा दिया। कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण के पाँव में धनुष का तीर लगने के कारण श्री कृष्ण बुरी तरह घायल हो गये। जिसके कारण भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया।

इसके बाद धनुर्धर अर्जुन और भीम एवं अन्य भाइयों ने भगवान श्रीकृष्ण के पार्थिव शरीर को अग्नि को समर्पित कर दिया और उसकी राख को समुद्र में प्रवाहित कर दिया। कहते हैं कि राख के समुद्र में प्रवाहित करते ही चमत्कार हो गया। देखते ही देखते समुद्र में भगवान श्री कृष्ण के पार्थिव शरीर की वह राख श्री कृष्ण की नील वर्ण की मूर्ति में परिवर्तित हो गयी।

जिस मूर्ति को समुद्र में तैरते हुये स्थानीय भीलों के सरदार ने सबसे पहले देखा। वह नीले रंग की भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति बहुत सुंदर थी । इस भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को भील समुदाय के लोग अपने साथ ले गये और उसको अपने एक मंदिर में स्थापित कर दिया।

जगन्नाथ मंदिर की फोटो

उन भील समुदाय ने भगवान श्री कृष्ण को नाम दिया नील माधव। जब इस राज्य के राजा इंद्र्धुम्न को भगवान श्री कृष्ण के नील माधव बनने का सारा किस्सा पता चला तो वह उस मूर्ति को पाने के लिए लालची हो उठा। उसने अपने सैनिकों से रात के अंधेरे में चोरी-छुपे भगवान कृष्ण की वह अदभुत मूर्ति मंदिर से उठवा ली।

क्योंकि उस मूर्ति को वह अपने राज्य में स्थापित करना चाहता था। कहते हैं कि राजा के सैनिक उस मूर्ति को एक कपड़े में छिपा कर राज महल में ले आये। लेकिन राजमहल पहुँचा कर जब उस मूर्ति को कपड़े से बाहर निकाला गया तो सबके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।

दरअसल अब वह मूर्ति लकड़ी का एक लठ्ठा बन चुकी थी। यह सब देखकर राजा इंद्र्धुम्न बहुत दुखी हुआ, वह रोया। उसे अपने किये पर बहुत ग्लानि हुई। कहते हैं कि अगली सुबह ही भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए राजा इंद्र्धुम्न एक अखंड जाप करने बैठ गया।

कहा जाता है कि उस राजा ने लगभग 11 वर्षों तक बिना अन्न-जल ग्रहण किये हुये भगवान श्री कृष्ण के मंत्र का कठोर जाप किया। तब उस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण स्वयं राजा इंद्र्धुम्न के सामने प्रकट हुये। वे जानते थे कि राजा इंद्र्धुम्न की मनोकामना क्या है़?

इसीलिए भगवान श्री कृष्ण अपने साथ विश्वकर्मा जी को भी लाये थे। कहते हैं कि स्वयं विश्वकर्मा जी ने उस लकड़ी के लठ्ठे से भगवान श्री कृष्ण, बलराम और भगिनी सुभद्रा की मूर्ति बनायी। जिसकी स्थापना के लिए राजा इंद्र्धुम्न ने भव्य मंदिर बनवाया और इस प्रकार भील समुदाय के नील माधव भगवान जगन्नाथ के रूप में स्थापित हो गये।

जगन्नाथ मंदिर में बलराम और सुभद्रा की मूर्ति की स्थापना का रहस्य

कहते हैं कि यह जगन्नाथ मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है़। भगवान श्री कृष्ण के अधिकांश मंदिरों में वे अपनी अर्धांगिनी राधा जी के साथ विराजमान हैं तो फिर ऐसा क्या रहस्य है़ कि इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण अपनी राधा जी के साथ न होकर अपने भाई एवं बहन के साथ हैं।

कहते हैं कि जिस राजा ने इस मंदिर की स्थापना की उसे बार-बार एक स्वप्न आता था जिसमें बलराम जी और सुभद्रा अपने भाई कान्हा से लड़ते-झगड़ते दिखाई देते थे। अपने इस विचित्र स्वप्न के रहस्य को जानने के लिए राजा ने अपने राज ज्योतिषी को दरबार में बुलाया । इसके बाद राजा ने विस्तार से अपने उस स्वप्न के बारे में राज ज्योतिषी को बताया।

तब उस राज ज्योतिषी ने राजा को स्वप्न के संकेत को समझाते हुए राजा से पूछा कि क्या आप निकट भविष्य में भगवान श्री कृष्ण के एक भव्य मंदिर की स्थापना का विचार कर रहें हैं? राजा ने राज ज्योतिषी के इस प्रश्न पर ‘हाँ’ कहा। क्यों कि वह राजा वास्तव में कृष्ण मंदिर के स्थापना की योजना बना रहा था।

जगन्नाथ मंदिर की फोटो

राज ज्योतिषी ने फिर राजा से पूछा कि क्या आप उसमें भगवान कृष्ण और राधा जी की मूर्ति लगवाने जा रहें हैं ? राजा ने राज ज्योतिषी के इस प्रश्न पर भी ‘हाँ’ कहा। राजा, राज ज्योतिषी के प्रश्नों का उत्तर देता जा रहा था। लेकिन उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि उनका राज ज्योतिषी यह सब क्यों पूछ रहा है?

फिर राज ज्योतिषी ने जो कुछ बताया वह चौंकाने वाला था। उस ज्योतिषी ने बताया कि हे राजा, आपको यह विचित्र स्वप्न आने तभी बंद होंगे जब आप श्री कृष्ण का मंदिर बनवाएंगे। लेकिन उस मंदिर में श्री कृष्ण भगवान के साथ राधा जी की मूर्ति के स्थान पर बलराम जी और सुभद्रा जी की मूर्ति होनी चाहिए। राजा ने अपने राज ज्योतिषी की बात मानी और भगवान जगन्नाथ के ऐसे ही मंदिर की स्थापना की।

जगन्नाथ मंदिर के वे अदभुत रहस्य, जिससे वैज्ञानिक भी अचंभित हैं

इस जगन्नाथ मंदिर को सैकड़ों साल पूर्व निर्मित किया गया था लेकिन इस मंदिर की रचना न जाने किस विधि से की गयी है़ जिसे आज तक कोई समझ नहीं पाया है़। हम जानते है़ कि यह वैज्ञानिक रूप से प्रामाणिक तथ्य है कि किसी भी भवन पर सूर्य का प्रकाश पड़ने पर उसकी परछाई अवश्य बनती है़।

लेकिन इस पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर के गुंबद पर सूर्य का प्रकाश पड़ने पर भी उसकी छाया नहीं दिखाई पड़ती। है न यह अदभुत रहस्य की बात। अनुमान लगाया जाता है़ कि यह भव्य जगन्नाथ मंदिर ऐसे कोण पर बनाया गया है़ कि उस पर सूर्य का प्रकाश तो पड़ता है़ लेकिन उसकी छाया नहीं बनने पाती।

इसी तरह इस जगन्नाथ मंदिर की पताका का हवा के बहाव के विरुद्ध लहराना देखने वाले को अचंभे में डालता है़। कहते है़ कि इस धाम में हवा के दबाव का प्रभाव इस मंदिर के पताका पर विपरीत पड़ता है़। जिसके कारण वह उल्टा लहरने लगता है़। लेकिन यह अनबूझ पहेली है़ कि वास्तुकारों ने ऐसी कौन सी रीति अपनायी, जिसके कारण हवा के बहाव के विरुद्ध झंडे का फहरना संभव हो पाया।

इस जगन्नाथ मंदिर का एक और अदभुत रहस्य, जिसे जानकर आप आश्चर्य चकित रह जाएंगे। यह मंदिर समुद्र तट पर बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित है़। जब आप इस जगन्नाथ मंदिर के बाहर खड़े होते हैं तो समुद्र के तेज बहाव की आवाज सुनाई देती है़।

लेकिन जैसे ही भक्त अपना पाँव मंदिर के अंदर रखता है़ तो उसे समुद्र के बहाव की तेज आवाज सुनाई देना बंद हो जाती है़। इस मंदिर को बनाते समय वास्तुकारों ने ऐसी कौन सी तकनीकी अपनायी, जिससे मंदिर के अंदर एक स्वर निरोधक स्थापित हो गया है़।

जगन्नाथ मंदिर की विशेषता

इस जगन्नाथ मंदिर में विश्व की सबसे बड़ी रसोई स्थापित की गयी है़ जहाँ लाखों लोगों के लिए नित्य प्रसाद बनाया जाता है़। कहते हैं कि इस रसोई की न जाने क्या विशेष बात है़ कि यहाँ बनाया गया प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता। कहते हैं कि लगता है़ कि इस रसोई का संचालन स्वयं माता अन्नपूर्णा कर रहीं हैं।

हजारों लोग इस रसोई में कार्य करते हैं। यहाँ के प्रसाद का स्वाद अदभुत है़ जो दुनिया के किसी होटल आदि में नहीं मिल सकता। कहते हैं कि प्रसाद बनाने वाली सामग्री कभी खत्म नहीं होती।

जगन्नाथ मंदिर किसने बनाया था

यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण का है़। निश्चित रूप से वह इस जगत के नाथ अर्थात रखवाले हैं इसीलिए उनको जगन्नाथ कहा जाना आश्चर्य उत्पन्न नहीं करता है। कहते हैं कि जिस राजा ने इस मंदिर की स्थापना की ,उसकी रानी भगवान कृष्ण कन्हैया को सदैव जगन्नाथ के नाम से पुकारती थीं । इसीलिए उनका यह नाम राजा को भगवान श्री कृष्ण के मंदिर के लिए सर्वथा उपयुक्त लगा।