देवशयनी एकादशी की कथा

वैसे तो हिंदू धर्म में हर एक महीने में एकादशी तिथि आती है, परंतु दो एकादशी तिथियाँ ऐसी हैं जिनका असर हमारे हर रोज़ के जीवन पर पड़ता है और वह हैं देवशयनी एकादशी और देव उत्थान एकादशी। आइए आज हम देव शयनी एकादशी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें जानते हैं।

देवशयनी एकादशी का महत्व

इस एकादशी को कई और नामों से भी जाना जाता है जैसे नारायण एकादशी, पद्मा एकादशी और हरीश शयन एकादशी। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवशयनी एकादशी से लेकर 4 माह तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन रहते हैं।

भगवान के शयन के दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं संपन्न किए जाते हैं। आपने अक्सर देखा होगा कि इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश, जनेऊ आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। देव शयनी एकादशी से चतुर्मास की शुरुआत हो जाती है और इस समय योगी लोग भ्रमण करना बंद कर देते हैं और इस समयावधि के दौरान आम तौर पर लोग सिर्फ ब्रज की ही यात्रा करते हैं।

देवशयनी एकादशी की कथा

क्या देव शयनी एकादशी से प्रभु सच में सो जाते हैं?

जैसा कि आपने अभी जाना कि देव शयनी एकादशी से श्री हरि भगवान विष्णु योग निंद्रा में चले जाते हैं। वास्तव में यदि आप गौर करें तो आप पायेंगे कि इस समय में हमारी प्रकृति, सूर्य देव और चंद्र देव के तेज यानी उन की रौशनी में कमी आ जाती है और इसी कारण से हमारे वातावरण का तेज भी कम होने लगता है।

जब इन शुभ और तेजस्वी तत्वों में कमी आ जाती है तो शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य भी शुभता के साथ संपन्न नहीं हो पाते हैं और इनके परिणाम भी आपको बहुत शुभ नहीं मिलते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि आप कोई शुभ कार्य इस समय सम्पन्न करना चाहते हैं तो उसमें अक्सर बाधाएं आती हैं।

 देव शयनी एकादशी पूजन विधि

देव शयनी एकादशी का पूजन बड़े विधि और विधान के साथ रात के वक्त किया जाता है। भगवान विष्णु को पीली वस्तुओं विशेषकर पीला वस्त्र अर्पित करें, पीले फल और पीली मिठाइयों का भोग लगाएं। भगवान विष्णु के मंत्रों का जप करें, फिर व्रत कथा सुनें और उनकी आरती उतारें। अंत में श्रीहरि से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि प्रभु भले ही आप योगनिद्रा में लीन हैं परंतु आप अपनी कृपा हमारे घर और परिवार पर बनाए रखें।

देवशयनी एकादशी व्रत कथा

आइए अब हम देवशयनी एकादशी व्रत कथा के बारे में जानते हैं और यह समझते हैं कि एकादशी कहां से शुरू हुई। एक बार सभी देवी देवता एकत्र होकर भगवान विष्णु के पास गए और विनती करने लगे कि भगवान एक बहुत ही विशाल राक्षस जिसका नाम है मुर, वह तीनों लोकों में हाहाकार मचाये हुए हैं।

उसने सभी लोगों और देवी-देवताओं को परेशान कर रखा है। यह सुनकर भगवान उस राक्षस से युद्ध करने के लिए निकल पड़े। भगवान उसके साथ युद्ध करते करते बद्रिकाश्रम पहुंच गए जहाँ पर आश्रम में एक बहुत ही लंबी गुफा थी, जिसका नाम था सिंहवती गुफा और वह 12 योजन लंबी गुफा थी।

भगवान ने उस गुफा में प्रवेश किया और थकान होने के कारण सो गए। राक्षस भगवान को ललकारता हुआ गुफा में घुसा और जैसे ही उन पर हमला करना शुरू किया, उसी समय भगवान के शरीर से एक देवी प्रकट हुईं जिन्होंने उस मुर नामक राक्षस का वध कर दिया।

भगवान विष्णु जैसे ही जागृत अवस्था में आए उन्होंने पूछा कि हे देवी तुम कौन हो और कहाँ से आई हो? तब देवी ने कहा मैं तो आपकी ही दासी हूं और मैं आपके ही शरीर से प्रकट हुई हूं। भगवान अति प्रसन्न हुए और उन्होंने एकादशी देवी को वरदान दिया कि जो मनुष्य एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा आराधना करेगा और उपवास करेगा उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होगी और उसके जीवन के समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे।

तब पाप पुरुष ने श्री हरी से पूछा कि भगवान यदि सब एकादशी की पूजा उपासना करके हर प्रकार के पापों से मुक्त हो जाएंगे तो दुनिया में मेरा क्या काम रह जाएगा? मुझे भी कहीं जगह दें तब श्री हरि ने कहा कि तुम्हारा वास अन्न में होगा। तभी से ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दिन जो व्यक्ति अन्न ग्रहण करता है, उसे पाप कर्म ना करने पर भी उसको पापों का दोष लगता है।

देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सामूहिक पापों का नाश होता है, साथ ही व्रत करने वाले व्यक्ति और उसके परिवार का उत्थान होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य का मन शांत रहता है और कई सारी दुर्घटनाओं के योग कट जाते हैं, इसलिए सही विधि से इस व्रत को करें।