पैसे कैसे बनते हैं

पैसे, रूपए (इनको मुद्रा या करेंसी भी कहते हैं) की बात तो सबको अच्छी लगती है क्योंकि ये जिसके पास जितने ज़्यादा होते हैं, वो उतना ही शक्तिशाली होता है और उसकी ज़िंदगी उतनी ही आरामदायक होती है। क्या आपको मालूम है ये पैसे, रुपए बनते कहाँ हैं? तो चलिए, आज हम आप को बताते हैं पैसे के बनने के बारे में कुछ ऐसी रोचक जानकारियां जो कम ही लोगों को पता होती हैं।

दुनिया में और भारत में करेंसी नोट कैसे और कब शुरू हुए?

करेंसी नोटों के शुरू होने के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। दुनिया में सबसे पहले पेपर करेंसी नोटों का इस्तेमाल लगभग 7वीं शताब्दी में चीन में शुरू हुआ। चीन ने जैसे सिल्क के कपड़ों की तकनीक को हज़ारों सालों तक गुप्त रखा, ठीक उसी तरह करेंसी नोटों के इस्तेमाल का ज्ञान भी लंबे समय तक दुनिया से छुपाये रखा।

लगभग 700 साल बाद जब इटली के महान एक्स्प्लोरर मार्को पोलो ने चीन पहुँच कर वहाँ के मंगोल सम्राट कुबलाई खान के दरबार में अपनी अच्छी पकड़ बनायी और 15वीं शताब्दी में वापस इटली पहुँच कर यूरोप के लोगों को सिल्क के कपड़े, करेंसी नोट, इत्यादि के बारे में बताया तो वहाँ भी इनका इस्तेमाल शुरू हुआ।

आइए अब जानते हैं कि करेंसी नोट शुरू करने के मामले में भारत कहाँ पर है? ऐसा माना जाता है, रुपया शब्द बना है संस्कृत के शब्द ‘रूप्य’ से और कुछ वामपंथी इतिहासकार मानते हैं कि करेंसी के तौर पर शेर शाह सूरी ने इस शब्द का सबसे पहला इस्तेमाल किया था।

उसने 1540 में अपने 5 साल के राज के दौरान जिस चांदी के सिक्के की शुरुआत की, उसका नाम ‘रुपिया’ रखा था, जिसके नाम पर बाद में भारतीय रुपए का नाम पड़ा। बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेज़ चार्ल्स कैनिंग ने पहली बार 1861 में आधिकारिक रूप से पेपर करेंसी की शुरुआत की, जो कि बैंक ऑफ़ इंग्लैंड से प्रिंट हो कर आती थी।

उस समय के नोटों पर इंग्लैंड की क्वीन की फोटो छपी होती थी। 1939 में अंग्रेज़ों ने जब कोलकाता में इम्पीरियल बैंक ऑफ़ इंडिया का नाम बदल कर रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया किया तो उसने करेंसी नोटों को छापने और कंट्रोल करने का काम शुरू किया।

वैसे एक और रोचक बात यह है कि भारत में केवल अंग्रेज़ों ने ही नहीं नोट जारी किये थे बल्कि ऐसा करने वाले फ्रेंच और पुर्तगाली भी थे। पुर्तगालियों ने ‘रूपिया’ नाम का नोट चलाया जो उनके द्वारा शासित भारतीय राज्यों में 1961 तक चलता रहा। सन 1890 में फ्रेंच बैंक Banque de l’Indochine ने भी भारत में अपने कब्जे वाले कुछ राज्यों के लिए ‘रोपी’ नाम से एक करेंसी नोट जारी किया जो भारतीय मार्किट में 1954 तक रहा।

भारतीय रुपये का इतिहास

ऊपर दिए विवरणों से एक बात तो स्पष्ट है कि भारतवर्ष में जिस भी बाहरी आक्रांता या आक्रमणकारी ने नयी मुद्रा चलाने का प्रयास किया, उसने उस मुद्रा का नाम ‘रूपया’ या इससे मिलता-जुलता ही रखा। और ऐसा केवल तभी हो सकता है जब मुद्रा के लिए यह नाम, भारतीय जनमानस में पहले से प्रचलित रहा हो।

भारतीय जनमानस, उन बाहरी और असभ्य आक्रमणकारियों द्वारा चलायी गयी मुद्रा को स्वीकार कर ले इसीलिए उन्होंने तत्कालीन सभ्य और सुसंस्कृत हिन्दू समाज में मुद्रा के लिए पहले से प्रचलित नाम रुप्या को ही लिया और उसमे अपने अनुसार परिवर्तन (जैसे प्रतीक, चिन्ह, और चित्र आदि) करके उसे भारतीय जनमानस में लोकप्रिय कराने का प्रयास किया।

भारत में कितनी जगह पर नोट छपते हैं?

आम तौर पर हर देश में सभी बैंकों से ऊपर एक मुख्य केंद्रीय बैंक होता है और भारत में उस मुख्य बैंक की भूमिका रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) की है। भारत में पैसों और करेंसी नोटों को छापने की ज़िम्मेदारी RBI की है और यही मुख्य बैंक तय करता है कि किसी शहर की अलग-अलग बैंक ब्रांचों में कितना पैसा भेजना है।

जहाँ RBI करेंसी नोटों की छपाई संभालती है, वहीं सिक्कों को बनाने और एक रूपए का नोट प्रिंट करने का काम भारत सरकार अपने नियंत्रण में रखती है।

भारत में बैंक के जरिए सिक्के बनने सबसे पहले कोलकाता में 1757 में और करेंसी नोट महाराष्ट्र के नासिक में 1928 में छपने शुरू हुए थे पर ज़रूरत बढ़ने के साथ ही 3 अन्य शहरों में शुरू हुआ नोटों के छपने का काम, जो थे देवास (मध्य प्रदेश), सालबोनी (पश्चिम बंगाल) और नर्मदापुरम (मध्य प्रदेश) जिसको पहले होशंगाबाद कहते थे। वर्तमान में सिक्के, भारत सरकार चार शहरों मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और मुंबई में बनाती है।

भारतीय करेंसी के बारे में कुछ रोचक तथ्य

भारतीय करेंसी के बारे में कुछ रोचक तथ्य

आइए इन पैसे रुपयों के बारे में कुछ और रोचक जानकारी भी ले ली जाए।

  • क्या आप जानते हैं की मोदी सरकार के शासन में हुए प्रसिद्ध डिमॉनेटाइज़ेशन (कुछ बड़े नोटों को अमान्य करना) से पहले भी भारत में ये हो चुका था। हमारे देश में डिमॉनेटाइज़ेशन 3 बार 1946, 1978 और 2016 में किया गया था।
  • भारतीय नोटों पर 17 भाषाओँ में लिखा गया होता है और ये नोट पेपर से नहीं बनते बल्कि इन्हें मज़बूत बनाने के लिए कॉटन से बनाया जाता है।
  • भारत में कभी 10,000 रूपए का (अब तक प्रिंट हुए सभी नोटों में सबसे ज़्यादा कीमत का नोट) भी चलन में हुआ करता था, जो कि सन 1978 में हुए डिमॉनेटाइज़ेशन के दौरान हटा दिया गया था।
  • रूपए का अपना लोगो भारत सरकार ने 2010 में जारी किया जब देश भर में आयोजित की गयी एक प्रतियोगिता में आईआईटी-गुवाहाटी के डिजाइन विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. डी. उदय कुमार के डिज़ाइन को सबसे ज़्यादा पसंद किया गया, जो उन्होंने भारतीय तिरंगे से प्रेरित हो कर भारतीय कल्चर और परंपरा पर आधारित बनाया था।
  • भारतीय नोटों को जालसाज़ी से बचाने की लिए भारत सरकार और RBI ने नोटों के अंदर बहुत सारे सिक्योरिटी फीचर्स लगाए हैं। बैंक नोटों पर आधिकारिक तस्वीर वॉटरमार्क तकनीक से बनाई जाती है, जैसे कि अधिकतर नोटों पर आप महात्मा गाँधी की तस्वीर बनी देखेंगे।
  • नोटों पर नंबर पैनल्स एक खास तरह की चमकने वाली इंक से लिखे जाते हैं। सभी नोटों के ऊपर कोने पर उभरे हुए प्रिंट (इंटाग्लिओ प्रिंटिंग) में एक कोडेड डिज़ाइन बनी होती है, जिससे दृष्टिहीन लोग उसको छू कर जान सकते हैं कि वह कौन सा नोट है।
  • अगर आपके पास आधा फटा नोट हो यानी 50% तक भी फटे नोट को आप बैंक से ऐक्सचेंज कर सकते हैं, तो अगली बार फटे नोट को फेंकने से पहले एक बार बैंक से ज़रूर पूछ लें, शायद बैंक में उसको बदल कर आपको सही नोट मिल जाए।
  • स्वतंत्रता हासिल करने के बाद पाकिस्तान के पास अपनी करेंसी प्रिंट करने की मशीन नहीं थी, इसलिए कुछ समय तक उनकी करेंसी (उसको भी रुपया ही बोलते हैं) भारत से ही सप्लाई होती थी।

करेंसी नोटों के बारे में आम तौर पर लोगों की जिज्ञासा

लोगों को अक्सर करेंसी नोटों से संबंधित ग़लतफ़हमियां होती हैं जिनके कारण उन्हें सही जानकारियां नहीं होतीं। ऐसी ही कुछ जानकारियां हम यहाँ दे रहे हैं जिनकी अक्सर लोगों को जिज्ञासा होती है।

सरकार भारत के हर नागरिक को ढेर सारे रुपए छाप के क्यों नहीं दे देती?

जब भी कोई देश मनमाने तरीके से करेंसी नोट छापता है तो वहाँ इनफ्लेशन यानी मंहगाई दर इतनी अधिक बढ़ जाती है कि फिर उसको कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है। उदहारण के लिए ऐसा कुछ साल पहले अफ़्रीकी देश ज़िम्बाब्वे और हाल ही में दक्षिण अमेरिका के वेनेज़ुएला में हो चुका है।

अब इन देशों में मंहगाई दर आसमान छू रही है, जिसके कारण वहाँ के हर तीसरे व्यक्ति के लिए 1 लीटर दूध या 1 छोटी ब्रेड जैसे छोटे-छोटे सामान भी हज़ारों लाखों रूपए में मिल रहे हैं जो उनकी खरीदने की क्षमता से बाहर है। इन देशों की करेंसी की वैल्यू भी बहुत कम है, विशेषकर कि वेनेज़ुएला की तो करेंसी बोलिवर इस समय दुनिया की सबसे कमज़ोर करेंसी हो गयी है और वहाँ बड़ी संख्या में लोग देश छोड़ कर भाग रहे हैं।

भारतीय करेंसी नोटों पर किसके सिग्नेचर होते हैं?

भारत में एक करेंसी नोट को छोड़ कर सभी नोटों पर RBI के गवर्नर के सिग्नेचर होते हैं, तो वो नोट कौन सा है जिस पर RBI गवर्नर के सिग्नेचर नहीं होते हैं? वो नोट है एक रूपए का नोट, जिस पर भारत सरकार के वित्त सचिव के सिग्नेचर होते हैं।

सिर्फ 1 रूपए के नोट पर ऐसा क्यों किया जाता है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एक रूपए का नोट ही सब नोटों का आधार है और बाकी सभी नोट इसके मल्टीपल्स हैं, इसलिए इस नोट की वैल्यू की गारंटी भारत सरकार देती है। स्वतंत्र भारत में एक रूपए का नोट ही सबसे पहले प्रिंट हुआ था।

एक कारण ये भी है कि यह नियम ब्रिटिश राज के ज़माने में 1940 बना था जब एक रूपया बहुत बड़ा नोट माना जाता था और विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार को लोगों को करेंसी के बारे में आश्वस्त करने की ज़रूरत थी, इसलिए उन्होंने 1 रूपए के नोट को भी सिक्के का दर्ज़ा दिया और उसकी कीमत की गारंटी दी।

आप विदेश जा रहे हैं तो कितनी विदेशी करेंसी खरीद सकते हैं?

यदि आप विदेश सिर्फ घूमने के उद्देश्य से जा रहे हैं तो बिना RBI से अनुमति लिए भी सेल्फ-सर्टिफाई कर के 10,000 डॉलर तक की विदेशी मुद्रा ख़रीद सकते हैं। आप नेपाल और भूटान में 500 रूपए से कम वाले भारतीय मुद्रा के किसी भी संख्या के नोट ले जा सकते हैं (कई एशियाई देशों में भारतीय करेंसी बिना ऐक्सचेंज के भी अधिकतर दुकानदारों द्वारा स्वीकार की जाती है)।

विदेश में पढ़ने जा रहे हैं तो 30,000 डॉलर विदेशी मुद्रा ख़रीद सकते हैं जिसका आपको डॉक्यूमेंट दिखाना होगा और अनुमति लेनी होगी। इलाज के लिए 50,000 डॉलर विदेशी मुद्रा ख़रीद सकते हैं और वहाँ के हॉस्पिटल द्वारा ऐस्टीमेट देने पर अधिक मात्रा खरीदने की भी परमिशन RBI से मिल जाती है। विदेश में नौकरी के लिए लेटर ऑफ़ ऐम्प्लॉयमेंट आप दिखा कर 5,000 डॉलर की विदेशी मुद्रा ख़रीद सकते हैं।

ज़ीरो रुपया का नोट (zero rupee note) क्या होता है?

ये बैंक का करेंसी नोट नहीं है और इस की कोई लीगल वैल्यू नहीं है। ये आम तौर पर किसी सरकारी संस्थान में रिश्वत का विरोध जताने के लिए दिया जाता है। इस नोट की डिज़ाइन 50 रूपए के नोट जैसी होती है पर उस पर एक ही साइड प्रिंट होता है, जिस पर 50 की जगह 0 लिखा होता है।

यह नोट रिश्वत लेने वाले को एक शॉक वैल्यू देता है और देखा गया है कि अक्सर शर्मिंदगी में ऐसे लोग फिर रिश्वत नहीं लेते। इस नोट को एक NGO 5th पिलर द्वारा बनाया गया और इसको सरकारी मान्यता प्राप्त नहीं है, इसलिए यह कोई करेंसी नहीं है पर रिश्वत का विरोध जताने का एक असरदार तरीका है जो अब बहुत से देशों में इस्तेमाल हो रहा है, जहाँ भी भ्रष्टाचार है।