वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय किधर होना चाहिए

शौचालय न सिर्फ हमारे जीवन को बचाने का काम करते हैं बल्कि कई तरह की बीमारियों के प्रसार को भी रोकने में मदद करते हैं। खुले में शौच करना, कई बीमारियों को न्योता देने के बराबर होता है। अतः शौचालय का उपयोग, वैश्विक स्वच्छता के संकट से निपटने के लिए किया जाता है।

शौचालय एक ऐसी सुविधाजनक जगह होती है जो मानव के नित्य क्रम के समुचित व्यवस्था के लिये प्रयोग की जाती है। ‘शौचालय’ शब्द का प्रयोग उस कक्ष के लिये किया जा सकता है जिसमें मल-मूत्र विसर्जन कराने वाली युक्ति बनाई गयी होती है।

अगर यही सही दिशा में, या सही प्रकार से निर्मित न की जाये तो व्यक्ति को बहुत सी समस्याओ का भी सामना करना पड़ सकता है। तो चलिए जानते है कि वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय किधर होना चाहिए और उसका टैंक किधर होना चाहिए।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा से भी पहले बाथरूम का स्थान तय करना चाहिए। घर का उत्तर-पश्चिम कोना या उत्तर दिशा वह स्थान है जहां कचरा रखा जा सकता है। इसलिए आपका बाथरूम हमेशा घर के उत्तर-पश्चिमी कोने में या आपके घर के उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। इससे आपका घर नकारात्मक ऊर्जा से बचा रहता है तथा घर में सकारात्मकता आती है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा में दूसरा स्थान, टॉयलेट सीट की दिशा का स्थान तय करना होता है। वास्तु के अनुसार शौचालय की दिशा पर विचार करना भी महत्वपूर्ण है। शौचालय का निर्माण, घर की पश्चिम दिशा मे होनी चाहिए। शौचालयके लिए घर की पश्चिम दिशा ही सर्वश्रेष्ठ है।

इसके अलावा टॉयलेट की सीट हमेशा ऐसी दिशा में होनी चाहिए कि इसका उपयोग करने वाले का मुख घर के उत्तर या दक्षिण दिशा में हो। अर्थात सीट की दिशा ‘पश्चिम, दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम’ सबसे उत्तम मानी जाती है। इससे परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य हमेशा ठीक रहेगा।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय किधर होना चाहिए

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा में तीसरा स्थान, वह दिशा है, जिससे हमें हमेशा बचना चाहिए। घर के पूर्वी या उत्तर-पूर्वी कोने को धार्मिक तथा आध्यात्मिक कार्यों के लिए सही माना जाता है। इसलिए घर के इस हिस्से में कभी भी शौचालय नहीं बनवाना चाहिए। इससे आपके परिवार के सदस्यों की भलाई तथा आपके घर की समृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा में चौथा स्थान, बहुत ही महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल में महिलाओं तथा पुरुषों के बाथरूम अलग-अलग होते थे। वास्तु शास्त्र में कहा गया है कि महिलाओं का शौचालय दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण-पूर्वी और दक्षिण हिस्से में नहीं होना चाहिए। इससे महिलाओं के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा में पांचवा स्थान, टॉयलेट सीट के ऊपर की खिड़की का है। शौचालय का मुख घर की उत्तर दिशा में होना चाहिए और इसके ठीक ऊपर खिड़की बनवाना आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा के संबंध में छठे नियम के अनुसार, टॉयलेट को थोड़ा ऊंचाई पर बनवाना होता है। वास्तु के अनुसार शौचालय की दिशा तय करने के पश्चात् बाथरूम को घर की सतह से थोड़ा ऊंचा बनवाना बेहतर होता है लेकिन कभी-कभी ऐसा करने से आपके घर का डिजाइन बिगड़ सकता है। इसलिए अपने शौचालय की सीट को ऊपर लगाकर एक सीढ़ी जैसा बनवाएं।

वास्तु के अनुसार शौचालय की दिशा के संबंध में सातवाँ नियम, सही दिशा में जल निकासी व्यवस्था है। जैसा कि हमने पहले बताया है कि घर का पश्चिमी हिस्सा वह क्षेत्र होता है जहां आपका शौचालय होना चाहिए। इसलिए बाथरूम का ड्रेनेज सिस्टम, चाहे वह शौचालय के लिए हो या वॉश बेसिन के लिए हो, पश्चिमी दिशा की तरफ होना चाहिए। वास्तव में आपके घर के सभी ड्रेनेज पाइप एक ही दिशा में होने चाहिए।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा के संबंध में आठवाँ नियम यह है कि शौचालय के दरवाजे बनाने के लिए लकड़ी का प्रयोग करें। अपने शौचालय में लकड़ी के दरवाजे लगाएं ताकि शौचालय से निकलने वाली नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव को कम किया जा सके।

वास्तु के अनुसार शौचालय की दिशा के संबंध में नौवां नियम, बाथरूम के दरवाजे की स्थिति के संबंध मे है। बाथरूम बनाते समय बाथरूम के दरवाजे की दिशा का ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। बाथरूम का दरवाजा हमेशा या तो उत्तर की ओर या पूर्व की ओर खुलना चाहिए। पूर्व दिशा धार्मिक कार्यों के लिए शुभ होती है इसलिए पूजा कक्ष कभी भी बाथरूम के सामने नहीं होना चाहिए।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा के संबंध में दसवां नियम है दीवार पर लगे शीशे की दिशा सही होना। वास्तु में दर्पण का बहुत महत्व है। दर्पण या शीशा नकारात्मक व सकारात्मक दोनों तरह की ऊर्जा को प्रतिबिंबित करते हैं इसलिए बाथरूम के पूर्वी दीवार पर पश्चिम दिशा की ओर मुख वाला या बाथरूम की दक्षिणी दीवार पर उत्तर दिशा की ओर मुंह वाला शीशा लगाने से सभी बुरी ऊर्जा वापस प्रतिबिंबित होती हैं।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा के संबंध में ग्यारहवाँ नियम यह है कि कभी भी अपने घर के बीच में बाथरूम न बनवाएं। आपके घर के केंद्र में ऊर्जा अधिक होती है तथा इसे ब्रह्मस्थान माना जाता है। कभी भी टॉयलेट सीट या बाथरूम को घर के मध्य भाग में लगाने की गलती न करें। इससे आपके घर व परिवार के सदस्यों पर खतरनाक प्रभाव पड़ सकता है। कमर्शियल जगहों पर भी ऐसा ही करें।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा के संबंध में बारहवाँ नियम यह है कि शौचालय तथा बाथरूम अलग-अलग स्थान पर होना चाहिए। हालांकि, ऐसा करना दिनों-दिन बढ़ती हुई आबादी को देखते हुए मुश्किल कार्य लगता है। किन्तु यदि आप ऐसा कर सकते है तो स्नान व शौचालय के लिए अलग-अलग जगह व्यवस्था करने पर अवश्य विचार करें।

वास्तु के अनुसार शौचालय की दिशा के संबंध में तेरहवाँ नियम है, आपके बाथरूम के लिए वैकल्पिक दिशा चुनना। यदि आपके पास वास्तु सिद्धांतों के अनुसार बाथरूम को फिर से बनाने का विकल्प नहीं है तो आप यहाँ बताया गया सुझाव मान सकते हैं। शौचालय बाथरूम के दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पूर्व दिशा में बनवाएं। हालांकि ये केवल विकल्प हैं, ऊपर बताया गई सही दिशा का उपयोग करना हमेशा बेहतर होगा।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा के संबंध में चौदहवाँ नियम है बाथरूम के ढलान का भी ध्यान रखना। आपके बाथरूम का ढलान उत्तर दिशा की ओर झुका होना चाहिए जहां जल निकासी पाइप जुड़ी हुई है। यदि ढलान का झुकाव ड्रेनेज पाइप की ओर नहीं है तो आपके बाथरूम में पानी जमा हो सकता है। इसलिए बाथरूम में ड्रेनेज पाइप से पानी निकलने की पूरी व्यवस्था करें।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा के संबंध में पंद्रहवाँ नियम है जगह खाली रखना। सीट के ऊपर की जगह पर पानी की टंकी के अलावा कुछ भी नहीं होना चाहिए। जगह खाली रहने से सीट के ऊपर की खिड़की से हवा अंदर और बाहर आ सकेगी। यह वास्तु और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण से सही है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा के संबंध में सोलहवां नियम है, शौचालय की जगह शावर से अलग होना। वास्तु के अनुसार, बाथरूम में शौचालय की जगह शॉवर से अलग होनी चाहिए। आप इस जगह को अलग करने के लिए टॉयलेट सीट तथा शॉवर एरिया के बीच ग्लास का पार्टीशन लगा सकते हैं। इससे वास्तु के नियमों का पालन करने और घर में पॉजिटिव एनर्जी लाने में मदद मिलती है।

टॉयलेट सीट और बाथरूम, आम तौर पर ऐसी जगह होते हैं जहां नेगेटिव एनर्जी का संचार होता है। यदि दोनों की दिशा गलत है तो इससे आपके घर में नेगेटिव एनर्जी आ सकती है। कई मामलों में अधिकांश लोग, घर का लेआउट और डिजाइन बनाते समय बाथरूम और टॉयलेट सीट की दिशा पर ध्यान नहीं देते हैं और भविष्य में भारी नुकसान कर बैठते है।

घर के उत्तर-पूर्व दिशा में टॉयलेट होना गंभीर प्रभाव डालता है, इसलिए आपको कभी भी इस दिशा में शौचालय नहीं बनवाना चाहिए। उत्तर-पूर्व दिशा में टॉयलेट सीट रखने से ये नुकसान हो सकते हैं जैसे – परिवार के लोगों में न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती है। निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है। बुरे विचार आते हैं और अच्छे विचार आना बंद हो जाते हैं।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा के संबंध में सत्रहवाँ नियम है, बाथरूम का सही रंग चुनना। वास्तु स्वीकृत बाथरूम रंग जैसे -बाथरूम में हल्के रंगों जैसे कि सफेद, क्रीम, बेज व ब्राउन चुनें। काला, लाल और गहरा नीला जैसे रंगों का इस्तेमाल शौचालय या बाथरूम मे न करें।

वास्तु शास्त्र के अनुसार शौचालय की दिशा के संबंध में अठारहवें नियम के अनुसार शौचालय और बाथरूम के टाइल्स या वॉल पेंट हेतु गहरे रंग का इस्तेमाल न करें। इसके अलावा, हल्के रंग से धूल साफ नजर आती है जिससे आपको साफ करने में आसानी रहती है। साथ ही ऐसे रंग से माहौल शांत बनता है। दूसरी ओर, गहरे रंग नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करते हैं और इससे जगह कॉम्पैक्ट व तंग नज़र आती है।

वास्तु शास्त्र मे शौचालय की दिशा के संबंध में उन्नीसवें नियम के अनुसार यदि घर में शौचालय दक्षिण पश्चिम दिशा में है, तो आप शौचालय की बाहरी दीवार पर एक वास्तु पिरामिड लगा सकते हैं। बाथरूम का दरवाजा हर समय बंद रखना चाहिए।

वास्तु शास्त्र मे शौचालय की दिशा के संबंध में बीसवें नियम के अनुसारआप बाथरूम को उत्तर पूर्वी में बनवा सकते हैं लेकिन शौचालय या टॉयलेट सीट नहीं। वास्तु में सुझाव दिया गया है कि इस दिशा पर जल तत्व का प्रभाव होता है। अतः इस दिशा में स्नान करना लाभकारी होता है। टॉयलेट सीट की दिशा शरीर में अपान एवं समान वायु के प्रवाह के साथ शरीर के चक्रों पर पड़ने वाले दबाव के आधार पर भी तय की जाती है।

वास्तु शास्त्र मे शौचालय की दिशा के संबंध में इक्कीसवें नियम के अनुसारआप शौचालय का दरवाजा हमेशा बंद रखें। अक्सर लोग अपने बाथरूम का दरवाजा बंद करने के बजाय खुला रख कर भूल जाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि दरवाजे का बंद हिस्सा खुला रहना चाहिए ताकि घर का परिसर बड़ा दिखे। लेकिन शौचालय का दरवाजा खुला होने से आपके घर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

वास्तु शास्त्र मे शौचालय की दिशा के संबंध में बाइसवें नियम के अनुसार यदि आपके शौचालय में कमोड लगा है तो सुनिश्चित करें कि आप टॉयलेट सीट को उत्तर या उत्तर-पश्चिम की ओर रखें। बाथरूम के स्थान की तरह ही, कमोड का स्थान भी उतना ही महत्वपूर्ण है। आपके बाथरूम का ड्रेनेज सिस्टम हमेशा उत्तर पश्चिम दिशा में होना चाहिए।

यदि आपका बाथरूम और शौचालय एक साथ बने है तो दैनिक उपयोग के लिए गीजर, स्टीमर और कुछ अन्य बिजली के उपकरणों की आवश्यकता होती है ऐसे में वास्तु शास्त्र मे शौचालय की दिशा के संबंध में तेइसवें नियम के अनुसार, विद्युत उपकरण को रखने का सही स्थान निश्चित है और वह है दक्षिण दिशा। सभी उपकरणों को दक्षिण पूर्व दिशा में फिट करें।

वास्तु शास्त्र मे शौचालय की दिशा के संबंध में चौबीसवें नियम के अनुसार हमेशा शौचालय , पूजा कक्ष से दूर रहना चाहिए। यह नियम घर और कार्यालय दोनों जगह में लागू होता है। शौचालय से जुड़ी दीवार पर किसी मूर्ति की तस्वीर भी न लगाएं। शौचालय के सामने धार्मिक चिन्ह लगाना भी उतना ही नकारात्मक है।

वास्तु शास्त्र मे शौचालय की दिशा के संबंध में पचीसवें नियम के अनुसार, शौचालय के पानी को व्यर्थ बहने न दें। वास्तु के अनुसार पानी को धन का प्रतीक भी माना जाता है। पानी का अनावश्यक प्रवाह दर्शाता है कि आपका पैसा तेजी से व्यर्थ में घर से बाहर निकल रहा है।

शौचालय हमारे घर का सबसे कम देखा जाने वाला हिस्सा है इसलिए इस स्थान में उचित प्रकाश व्यवस्था जोड़ने की उपेक्षा कर बैठते हैं। यह गलती कभी न करें क्योंकि वास्तु उसे दृढ़ता से अस्वीकार करता है। वास्तु शास्त्र मे शौचालय के छब्बीसवें नियम के अनुसार,अपने शौचालय में उपयुक्त प्रकाश की व्यवस्था हमेशा रखे।

शौचालय के क्षेत्र को साफ रखना वास्तु शास्त्र के सबसे महत्वपूर्ण भागों में से एक है। अनिष्ट शक्तियां जहां भी अव्यवस्था पाती हैं वहां अपना घोंसला बनाना शुरू कर देती हैं। इसलिए वास्तु शास्त्र मे शौचालय के सत्ताइसवें नियम के अनुसार अपने शौचालय को हमेशा साफ और अव्यवस्था मुक्त रखे।

शौचालय की सीट पश्चिम की ओर और पीठ पूर्व की ओर रखने से बचना सबसे अच्छा है। वास्तु के इन सुझावों का पालन करने से आपका घर सुरक्षित रहेगा। इसमें रहने वाले लोग स्वस्थ व समृद्ध होंगे। हमें पूरी उम्मीद है कि आप अपने घर को बनवाने के दौरान वास्तु के अनुसार शौचालय के इन सुझावों का पूरी तरह से पालन करेंगे।

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की डिजाइनिंग, इसके सिद्धांत को ध्यान में रखकर बनायीं जाती है जिससे घर में सुख-शांति बनी रहती है। यह परंपरा न केवल भारत में बल्कि एशिया के अधिकांश देशों में भी व्यापक रूप से लोकप्रिय है। अब आते है एक महत्वपूर्ण चर्चा पर कि वास्तु शास्त्र के अनुसार, शौचालय का टैंक किधर होना चाहिए।

वास्तु शास्त्र के अनुसार से शौचालय टैंक किधर होना चाहिए

वास्तु शास्त्र में जल निकासी प्रबंधन अर्थात वाटर ड्रेनेज सिस्टम, सेप्टिक टैंक और वाटर टैंक के विषय में बहुत ही विस्तार से समझाया गया है। बड़े बड़े शहरो और महानगरो में तो घर के अंदर ही शौचालय के ड्रेनेज सिस्टम का स्थान दिया गया है।

शहरों में अविकसित कॉलोनियों या गांव में बने हुए शौचालय में सीवर व्यवस्था नहीं है। शौचालय के गंदे पानी को इकट्ठा करने के लिए सेप्टिक टैंक की व्यवस्था करनी पड़ती है। ऐसे में सवाल है कि नई जीवनशैली में वास्तु को किस तरह से समायोजित किया जा सकता है। आइये इन बातो को ध्यान में रख कर जानते है कि वास्तु शास्त्र के अनुसार से शौचालय का टैंक और ड्रेनेज सिस्टम किधर होना चाहिए।

शौचालय के लिए सेप्टिक टैंक की सबसे उत्तम दिशा पश्चिम उत्तर (वायव्य), पश्चिम, और दक्षिण दिशा है, किन्तु यहाँ दक्षिण दिशा का प्रयोग केवल तभी करना चाहिए जब शौचालय के लिए सेप्टिक टैंक के लिए पश्चिम, उत्तर या उत्तर-पश्चिम का कोना उपलब्ध न हो।

शौचालय के लिए सेप्टिक टैंक के लिए सबसे अच्छी दिशा वायव्य (कोण) होती है। इस दिशा में सेप्टिक टैंक बनाने से घर में कोई वास्तु दोष उत्पन्न नहीं होता है। यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि उत्तर-पश्चिम में द्वार के सामने या द्वार के अंदर सेप्टिक टैंक होना नहीं चाहिए क्योंकि उसके ऊपर से गुजर कर आने वाला व्यक्ति हमारे लिए शुभ नहीं होता। मुख्य द्वार से दाएं-बाएं सेप्टिक टैंक बनाना उत्तम रहता है।

पश्चिम दिशा भी सेप्टिक टैंक के लिए शुभ है। दक्षिण दिशा सेफ्टी टैंक का केवल एक विकल्प हैं, यद्यपि वहां सेप्टिक टैंक शुभ नहीं माना जाता। किंतु दक्षिण या दक्षिण पूर्व में यह टैंक बनाना ज्यादा हानिकारक भी नहीं है।

ध्यान यह रहे कि दक्षिण अथवा दक्षिण पूर्वी दीवार से मिलाकर सेप्टिक टैंक का निर्माण न करें। दक्षिणी दीवार से कम से कम 3 से 4.5 फुट तक की जगह छोड़कर सेप्टिक टैंक का निर्माण करें। सेप्टिक टैंक के ऊपर कोई कमरा, या रसोई का निर्माण नहीं करना चाहिए।

स्थानीय निकाय अथवा नगर निगम के द्वारा बनाए हुए कई भवनों में देखा गया है कि आसपास के चार-पांच घरों का सामूहिक टैंक किसी एक भवन के अंदर होता है। उसके ऊपर कमरा बना दिया जाता है। ऐसे मकान में कभी भी उस गृह स्वामी का विकास नहीं हो पाता और कई बार तो यह गृह स्वामी के स्वास्थ्य के लिए लिए बहुत ही हानिकारक होता है। उत्तर-पूर्व दिशा, ईशान कोण की दिशा है। यहां सेफ्टी टैंक होना घर के प्रगति को ग्रहण लगाना होता है। यदि ऐसा हो तो यह घर में धन धान्य,संतान आदि के लिए शुभ नहीं होता है।

दक्षिण-पश्चिम अर्थात नैऋत्य कोण में सेप्टिक टैंक बनाना बहुत ही हानिकारक है क्योंकि यह दिशा ऊंची और बड़ी होनी चाहिए। इसलिए वहां पर सीवर का गड्ढा होने से गृह स्वामी के लिए बहुत ही हानिकारक हो जाता है। यदि आपके घर में सेफ्टी टैंक गलत दिशा में बना हुआ है तो उसके ढक्कन को नीचे की ओर तांबे की प्लेट से कवर कर दें और उसके ऊपर हरे पौधों के गमले रखे दें। इससे वास्तु दोष कुछ सीमा तक कम हो जाएगा।

निष्कर्ष

शौचालय चाहे कितना भी सुंदर क्यों न हो, यदि इसका निर्माण वास्तु के ऊर्जा नियमों के अनुसार नहीं हुआ है तो ये नकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि करता रहेगा , जो उस घर की खुशहाली, समृद्धि और वहां के निवासियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करेगा।

साथ ही साथ बच्चों का करियर और पारिवारिक रिश्ते भी खराब हो सकते हैं। वास्तुशास्त्र के हिसाब से दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम दिशा को विसर्जन के लिए उत्तम माना गया है। अतः इस दिशा में टॉयलेट का निमाण करना वास्तु की दृष्टि में उचित है। आप शौचालय और शौचालय का टैंक को सही दिशा में स्थापित करके अपने घर के वास्तु दोष को ख़तम कर सकते है।