शीतला माता के दिन क्या क्या करना चाहिए ?

हिन्दू धर्म में शीतला अष्टमी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसको एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा का विधान है। इस व्रत को एक परंपरा (प्रचलन) यानी त्यौहार की तरह ही मनाया जाता है। शीतला अष्टमी व्रत पूजन को मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात में किया जाता है। इन जगहों के अलावा शीतला अष्टमी का त्यौहार देश के कई हिस्सों में भी मनाया जाता है।

क्या है बसोड़ा पूजा

शीतला अष्टमी को ‘बसोड़ा पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि शीतला माता की पूजा करने से चेचक (छोटी माता और बड़ी माता), खसरा इत्यादि बीमारियों से छुटकारा मिलता है। ऐसा भी माना जाता है जो भक्त माता शीतला की सच्चे और निर्मल मन के साथ पूर्ण श्रद्धा भाव से पूजा-आराधना करते है, माता शीतला उनके समस्त रोगों और कष्टों को हर लेती है।

इसलिए मान्यतानुसार शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी पर माता शीतला की पूजा होती है। माताएं अपनी संतान के उत्तम स्वास्थ्य के लिए विधिवत पूजा करके शीतला अष्टमी व्रत को संपन्न करती हैं। इस दिन बसौड़ा अर्थात् बासी भोजन का भोग लगाने की परंपरा है जो बहुत कम ही लोग ही जानते है।आइए इन्हीं बातों को ध्यान में रख कर जानते है कि शीतला अष्टमी कब है और क्यों अन्य देवी-देवताओं की तरह माता शीतला को ताजे भोजन का भोग नहीं लगता है।

शीतला माता की पूजा कब करनी चाहिए

फाल्गुन मास कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को ‘शीतला अष्टमी’ कहते हैं। इस दिन शीतला माता को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है इसलिये इसे बसोड़ा या बासी नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार, साप्ताहिक वार के अनुसार मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि शीतला माता का पूजन मंगलवार और शनिवार को नहीं किया जाता है।

शीतला माता

इस वर्ष अष्टमी तिथि  2 अप्रैल दिन मंगलवार को पड़ रही है इसलिए 1 अप्रैल सप्तमी तिथि दिन सोमवार को ही माता शीतला का व्रत और पूजन किया जायेगा। व्रत रखने के लिए शीतला माता का पूजन करें और बासी खाएं।

शीतला माता किसका अवतार हैं

पौराणिक कथाओं के अनुसार माता शीतला, मां पार्वती (भगवान शिव की संगिनी) का ही एक स्वरूप है। पुराणों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि संसार के सभी बच्चों को बीमार एवं महामारी बुख़ार (ज्वर) से तड़पते देख कर, महामारी दूर करने के उद्देश्य से मां पार्वती ने शीतला माता का अवतार लिया था।

स्कंद पुराण के अनुसार माता शीतला चेचक जैसे रोगों को दूर करने वाली देवी हैं। यह हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते धारण किए गधे पर अभय मुद्रा में विराजमान होती हैं (शीतला माता गधे की सवारी करती है जो धैर्य का प्रतीक है इसके अलावा मां शीतला के हाथ में एक झाड़ू है जो स्वच्छता का प्रतीक मानी जाती है।

इनके कलश में दाल के दानों के रूप में शीतल, स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणुनाशक जल होता है। शीतला माता के संग हैजे की देवी, रक्त वती देवी, ज्वरासुर दैत्य, चौंसठ रोग, त्वचा रोग के देवता (घेंटुकर्ण) भी विराजमान होते है।

शीतला माता की पूजा कैसे करें

माता शीतला की पूजा करने के लिए अष्टमी के दिन व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए। यदि संभव हो तो नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करे। यदि गंगाजल नहीं है तो शुद्ध जल से भी स्नान किया जा सकता है।

इसके बाद साफ सुथरे नारंगी रंग के वस्त्र धारण करे। पूजा करने के लिए दो थालियां सजाएं। एक थाली में दही, रोटी, नमक पारे, पुआ, मठरी, बाजरा और सप्तमी के दिन बने मीठे चावल रखें। वहीं दूसरी थाली में आटे से बना दीपक (बिना जलाये) रखें।

रोली, अक्षत, मेहंदी, वस्त्र, सिक्का और ठंडे पानी से भरा कलश रखें। घर के मंदिर में शीतला माता की पूजा करके आटे का बना दिया (बिना दीपक जलाकर) रख दें और थाली में रखा भोग चढ़ाए। इस दिन नीम के पेड़ पर जल चढ़ाना अत्यंत लाभकारी होता है। तत्पश्चात माता शीतला से हाथ जोड़कर अपने और अपने परिवार के अच्छे स्वास्थ्य की कामना हेतु प्रार्थना करे।

शीतला माता का दिन कौन सा होता है

शीतला माता की पूजा को बसोड़ा पूजन के नाम से भी जाना जाता है। यह होली के बाद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। आमतौर पर यह होली के आठ दिनों के बाद पड़ती है, लेकिन कई लोग इसे होली के बाद पहले सोमवार या शुक्रवार को मनाते हैं। बसोड़ा परंपरा के अनुसार, इस दिन खाना पकाने के लिए आग नहीं जलाते हैं। शीतला अष्टमी के एक दिन पहले यानी सप्तमी के दिन ही खाना बनाते हैं और बासी भोजन का सेवन करते हैं।

शीतला अष्टमी के दिन का वैज्ञानिक महत्व

शीतला माता की पूजा से संबंधित वैज्ञानिक महत्व की बात करें तो यह समय ठंड के जाने और गर्मी के मौसम के आने का समय है। इन दोनों मौसम के संधिकाल में खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। सर्दी और गर्मी की वजह से कई तरह की मौसमी बीमारियों के होने का खतरा रहता है।

इसलिए इस दिन व्रत करके और एक दिन ठंडा खाना खाने से  ज्वर, चेचक, फोड़े, नेत्र विकार और खसरा इत्यादि रोग होने का खतरा कम हो जाता है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस मौसम के लिए जरुरी होता है।

शीतला माता के पीछे क्या कहानी है

हिन्दू धर्म में शीतला अष्टमी व्रत से जुड़ी यह धारणा है कि व्रत रखने वाली महिलाएं एक रात पहले ही शीतला माता के लिए भोग और प्रसाद तैयार कर लेती है और अगले दिन माता शीतला को बसौड़ा (उसी बासी भोजन का) का भोग लगाती हैं। कहते है कि इस दिन घर में चूल्हा जलाना भी शुभ नहीं होता है। ऐसा करने के पीछे एक प्राचीन कथा बताई जाती है वो इस प्रकार है –

एक समय की बात है एक गांव था जहाँ शीतला माता की पूजा बहुत ही उत्साह के साथ की जा रही थी। गाँव के लोगो ने पूजा करने के पश्चात माता शीतला को ताजे और गर्म-गर्म पकवान का भोग लगा दिया था। कहा जाता है कि उस गर्म-गर्म व ताजे भोग से माता शीतला का मुंह जल गया था और वे क्रोधित हो गई थी।

ऐसी मान्यता है कि उसी रात गांव में आग लग गई थी जिससे सभी के घर जल गए थे परंतु एक झोपड़ी ऐसी थी जिसका बाल भी बांका नहीं हुआ था। तब सभी को आश्चर्य हुआ कि एक वृद्ध महिला की कुटिया भला इतने भीषण आग से कैसे बच सकती है।

जब उस वृद्ध महिला से पूछा गया तो उसने बताया कि उसने शीतला माता को ताजा नहीं बल्कि बासी भोजन खिलाया था। वृद्ध महिला के बासी भोजन (बसौड़ा) खिलाने के कारण ही माता शीतला उससे रुष्ट नहीं हुईं थी और उसकी कुटिया बच गयी थी।

तभी से इस दिन माता शीतला को बसौड़ा खिलाने की परंपरा शुरू हुई और ये मान्यता हो गयी कि माता शीतला बसौड़ा खाने से प्रसन्न होती हैं और सभी को निरोगी रहने का और उत्तम स्वास्थ्य का आशीर्वाद भी  प्रदान करती है।

शीतला माता का कौन सा मंत्र है

पुराणों के अनुसार, एक विशेष मंत्र का जाप करने से शीतला माता प्रसन्न होकर व्यक्ति की हर तरह की मनोकामना पूर्ण करती हैं। ऋषि मुनि योगी भी माता शीतला की स्तुति करते हुए इस मंत्र का जाप करते हैं –

शीतले त्वं जगन्माता

शीतले त्वं जगत्पिता।

शीतले त्वं जगद्धात्री

शीतलायै नमो नमः ।।

अर्थात हे माता शीतला, आप ही सम्पूर्ण संसार की आदिमाता है, आप ही संपूर्ण संसार की पिता हैं, आप ही चराचर जगत को धारण किये है अतः आपको मेरा बारंबार नमन है।

शीतला माता कौन है

मां दुर्गा के अनेक रूपों में से एक है शीतला माता। उनकी आराधना के दिन को शीतला अष्टमी (बसौड़ा) कहा जाता है। माता शीतला को आरोग्यता और शीतलता की प्रदाता माना जाता है। माता शीतला की पूजा करने से सुख-समृद्धि का वरदान प्राप्त होता है।

माता शीतला व्यक्ति के अंदर छिपे रोग रूपी असुर का नाश करती है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त माता शीतला की सच्चे मन से और पूरे विधि-विधान से उपासना करता है, उसको व उसके परिवार को समस्त प्रकार के रोगों से निवारण मिल जाता है।