श्रीराम मंदिर अयोध्या

हमारे पौराणिक ग्रंथों के अनुसार अयोध्या वह नगरी है़ जिस स्थान पर भगवान विष्णु ने अपने सातवें अवतार में श्री राम के रूप में जन्म लिया था। अब मन में प्रश्न यह उठता है कि वह क्या रहस्य था जिसके कारण भगवान विष्णु ने अपने सातवें अवतार के लिए अयोध्या (पौराणिक काल का नाम कोशल देश ) का ही चयन किया।

एक जिज्ञासा है़ कि ऐसी क्या विशेष बात थी इस स्थान और इस जगह के लोगों में, जिसके कारण भगवान विष्णु ने स्वयं इसी स्थान पर जन्म लेने के लिए इसको चुना। आज हम आपको इसी सुखदायक मनोहर कथा को आपके सम्मुख रखने जा रहें हैं जो एक बार देवर्षि नारद ने भगवान श्री कृष्ण को सुनाई थी।

यह अदभुत कथा ऐसी है कि बहुत कम लोगों को पता हैं कि वह क्या रहस्य था जिसके कारण भगवान विष्णु अयोध्या नगरी में अवतार लेने के लिए इच्छुक हो गये? आज हम उसी रहस्य से परदा उठाने जा रहें हैं। जिसे पंडित सम्पूर्णानंद जी  अपनी श्री राम कथा में अक्सर अपने श्रोताओं को सुनाया करते हैं।

भगवान विष्णु के अयोध्या में ‘श्री राम’ के रूप में जन्म लेने के पीछे का रहस्य

कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु अपनी धर्मपत्नी लक्ष्मी जी के साथ आकाश मार्ग से इस स्वर्ग तुल्य अयोध्या नगरी से होकर गुजर रहे थे कि अचानक उनकी दृष्टि इस कोशल क्षेत्र पर पड़ी। उस समय यहाँ के महाराजा दशरथ की  पत्नी महारानी कौशल्या अपने किसी विशेष पूजन कार्य के लिए मंदिर की ओर जा रही थीं।

उस समय उनके साथ में उनकी कई अन्य सखियाँ भी थीं। वे सखियाँ अपने हाथों मे कुछ न कुछ सामग्री ली हुईं थीं। उनमें से किसी के हाथ में माला- फूल और किसी के हाथ में लड्डूओं से भरा हुआ थाल था। वे सभी राजकीय पथ से मंदिर की ओर आगे बढ़ रहे थे कि तभी उन्हें मध्य मार्ग में अयोध्या नगर के बाल- गोपालों की एक टोली आती हुई नजर आई।

उन बच्चों ने जब महारानी कौशल्या की सखियों के हाथ में स्वादिष्ट लड्डुओं से भरा हुआ थाल देखा तो वे सभी अपने आपको रोक न सके। उस टोली के सभी बच्चे लड्डुओं के लालच में आ गये। वे महारानी कौशल्या से उन लड्डुओं को खाने के लिए माँग करने लगे।

लेकिन जैसा की पहले ही उल्लेख किया गया था कि वह लड्डूओं का थाल महारानी कौशल्या मंदिर में भगवान को भोग लगाने के लिए ले जा रही थीं। ऐसे में भगवान को चढ़ाने से पहले उन लड्डूओं को किसी भी प्रकार से बाँटा नहीं जा सकता था !

महारानी कौशल्या अब अजीब दुविधा में फंस गईं। एक ओर उनका धर्म उन लड्डुओं को भगवान को चढ़ाए जाने से पहले लड्डुओं को जूठा करने से रोक रहा था। वहीं दूसरी ओर महारानी कौशल्या उन बाल- गोपालों को उस पूजा के थाल के लड्डुओं को देने से मना नहीं कर पा रही थीं।

अब महारानी कौशल्या के मन में अजीब धर्म संकट था। लेकिन थोड़ी ही देर में महारानी कौशल्या उस धर्म संकट से बाहर निकल आयीं। उन्होंने अपने मस्तिष्क की बात को अनसुना करते हुये अपने हृदय के स्वर को सुना और उन बाल-गोपालों को उस पूजा के थाल के लड्डुओं को देने का मन बना लिया।

महारानी कौशल्या की सखियों ने इसे भाँपते हुए उन्हें इस कार्य को करने के लिए बहुत रोका। लेकिन महारानी कौशल्या ने अपनी सखियों की एक न सुनी। उन्होंने कहा कि इस पूजा के थाल के लड्डुओं के खाने के बाद उन बाल गोपालों के मुख पर जो मुस्कान आयेगी उसे देखकर मेरे प्रभु भी बिना लड्डूओं के भोग लगाये ही प्रसन्न हो जाएंगे।

इसलिए आज इन लड्डुओं पर सर्वप्रथम अधिकार इन बच्चों का है़। अंततः यह निर्णय हुआ कि यह लड्डूओं का थाल को मंदिर में न ले जाकर यही मार्ग में मिलने वाले बाल- गोपाल में वितरित कर दिया जायेगा। इसके बाद उन लड्डूओं को बच्चों में वितरित कर दिया गया।

राम मंदिर अयोध्या फ़ोटो

कहते हैं कि उस समय भगवान विष्णु यह संपूर्ण मनोहारी दृश्य देख रहे थे। वह महारानी कौशल्या की इस अनुपम ममता से भरे हुए हृदय की भावना को देखकर अत्यंत भावुक हो गये। उनकी आंखें मारे प्रसन्नता के छलछला उठीं। उस समय उनके साथ लक्ष्मी जी भी थीं।

उन्होंने भगवान विष्णु से कहा कि हे नाथ, आपको अपने सातवें अवतार के रूप में इन्हीं माँ कौशल्या की कोख से जन्म लेना चाहिए। क्योंकि इस धरती पर ऐसी करुणामयी माँ अन्यत्र कहीं नहीं है। भगवान विष्णु को लक्ष्मी जी की यह बात बहुत पसंद आई। इसके बाद उन्होंने अपने सातवें अवतार में श्री राम के रूप में अयोध्या में जन्म लिया।

अयोध्या नगरी देवलोक से बढ़कर है

इस पावन नगरी अयोध्या के स्थान को ईश्वर की नगरी कहा गया है। जिसका उल्लेख ग्रंथों में ‘अष्ट चक्रा नवद्वारा देवनाम पूरयोध्या’ आदि पंक्तियों में किया गया है़। पूरे भारतवर्ष में अयोध्या से पावन नगरी अन्यत्र कहीं नहीं है। साथ ही अयोध्या के निकट बहने वाली सरयू नदी इस नगरी को और अधिक पवित्र बनाती है। यह वही नदी है जो कहीं घागरा तो कहीं शारदा के नाम से जानी जाती है। श्री रामचरितमानस में स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी ने सरयू नदी का गुणगान किया है।

राम जन्म भूमि का इतिहास

अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि का इतिहास अनेक उतार-चढ़ावों की घटनाओं से भरा हुआ है। इतिहास साक्षी है कि भारतवर्ष पर हमला करने वाली अनेक बुरी शक्तियों ने हमारी भारतीय संस्कृति को नष्ट -भ्रष्ट करना चाहा, लेकिन हमारी प्रबल दृढ़ शक्ति के समक्ष वे असफल रहे।

फिर जिस नगरी को स्वयं देवताओं ने बसाया हुआ हो उसका अस्तित्व कोई कैसे मिटा सकता है़। पुराणों में उल्लेख किया गया है कि इस पावन नगरी की स्थापना स्वयं आदि सम्राट महाराज मनु ने की थी। प्राचीन काल में इस स्थान को कोशल देश के नाम से जाना जाता था।

जहां सूर्यवंशी राजाओं ने अपना गौरव पूर्ण शासन किया। आज भी अयोध्या के कण-कण में भगवान श्री राम की गाथा विद्यमान है। हम सब जानते हैं कि श्री राम के पिता महाराजा दशरथ थे। महाराजा दशरथ के पिता का नाम राजा अज था। इस तरह श्री राम के दादाजी राजा अज थे, जो कोशल देश के यशस्वी सूर्य वंशी राजा रहे। उनकी पत्नी का नाम इंदुमती था। यहाँ सूर्यवंशी शासनकाल में अयोध्या में हर ओर सुख और समृद्धि की वर्षा होती रहती थी।