हरियाली तीज कब है

सावन का महीना शुरू होता है और भारत में कई सारे तीज-त्यौहार भी शुरू हो जाते हैं। इन में से सबसे विशेष और आकर्षक है उत्तरी भारत में मनाई जाने वाली हरियाली तीज। नाग पंचमी से 2 दिन पूर्व मनाये जाने वाले इसी विशेष आनंददायक उत्सव हरियाली तीज के बारे में हम आपके लिए उपयोगी जानकारी लाए हैं।

क्यों ख़ास है हरियाली तीज का त्यौहार

वैसे तो भारतवर्ष में सावन और माघ के महीने में कजरी तीज भी मनाई जाती है परंतु सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाने वाली हरितालिका तीज सबसे अधिक प्रचलित है। इसे कहीं-कहीं पर तीजा या बूढ़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार मनाया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि सावन के महीने की शुक्ल पक्ष की इस तृतीया तिथि को ही भगवान शंकर और मां शक्ति का मिलन हुआ था। शिव पुराण के अनुसार मां पार्वती ने भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए एक सौ सात जन्मों तक कठोर तप किया।

माता के 108वें जन्म में भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उनको अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया और तभी से इस दिन हरियाली तीज का त्योहार मनाया जाता है। औरतें अपने पति की लंबी आयु और सौभाग्य की कामना में हरियाली तीज का व्रत करती हैं।

hariyali_teez

कैसे करें हरियाली तीज की व्रत और पूजा

हरियाली तीज पर रखे जाने वाला व्रत बड़ा ही कठिन व्रत माना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सौभाग्य के लिए बिना अन्न और जल ग्रहण करे 24 घंटे का उपवास रखती हैं। इस व्रत को करने के लिए गीली काली मिट्टी, बेलपत्र, शमी के पत्ते, नारियल, धतूरे का फल, अकाव का फल और सुहाग की सामग्री चाहिए होती है।

विभिन्न प्रकार के फल और फूल भी आपको इकट्ठे कर लेना चाहिए। इसके अलावा आपको मिठाई और सूखे मेवे भोग के लिए रखने चाहिए। पूजा के लिए कलश, घी का दीपक और धूप भी ले लीजिए। सुबह स्नान के बाद लाल वस्त्र पहन कर, घर की स्त्रियाँ पूरा श्रृंगार करती हैं और फिर पूरे दिन निर्जला व्रत रहती हैं।

गीली मिट्टी से भगवान शंकर और मां पार्वती की प्रतिमा पूजा करने के लिए बना लें और उनका विधिवत पूजन करें। भगवान शंकर को धोती या गमछा अर्पित करें तथा मां पार्वती को सुहाग की सामग्री चढ़ाएं। इस दिन महिलाएं विशेष श्रृंगार करती हैं।

आपने देखा होगा कि इस दिन महिलाएं हरे रंग की साड़ी, सूट या लहंगा पहनती हैं। वह हरी चूड़ियां भी पहनती हैं और हाथों में मेहंदी रचा लेती हैं। स्त्रियों का यह श्रृंगार भी इसी हरियाली तीज के व्रत का हिस्सा होता है। इस दिन आप जगह-जगह बगीचों और पेड़ों पर झूले पड़े पाएंगे जिनमें महिलाएं झूलती और गीत गाती हैं।

 हरियाली तीज की व्रत कथा

जब मां पार्वती ने पर्वत राज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया तो वह बहुत प्रसन्न हुए। जब वे विवाह लायक हुईं तो नारद मुनि ने पर्वत राज हिमालय से कहा कि आप अपनी पुत्री का विवाह विष्णु भगवान से कर दीजिए। पर्वत राज हिमालय इसके लिए तुरंत तैयार हो गए परंतु मां पार्वती तो बचपन से ही शिव जी को अपना पति माने बैठी थीं।

जब उन्होंने यह बात अपनी सहेली को सुनाई तो उनकी सहेली उनका हरण कर उनको एक जंगल में ले गई। सहेली ने उन्हें एक गुफा में छुपा दिया। उस गुफा के भीतर मां पार्वती रेत के शिवलिंग बनाकर शिव जी की पूजा अर्चना करती रहीं। इस दौरान उन्होंने अन्न और जल कुछ भी नहीं ग्रहण किया।

भगवान शंकर मां पार्वती कि इस कठिन तपस्या से बहुत अधिक प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनाने के लिए सहमत हो गए। उधर पर्वत राज हिमालय अपनी पुत्री को ढूंढने में लगे हुए थे। तीनो लोक में माता पार्वती को खोजते हुए वो उस गुफा के पास पहुंच गए जहां मां पार्वती तपस्या कर रही थीं और उन्होंने माता पार्वती से घर चलने को कहा।

पार्वती जी ने कहा कि वह घर तभी चलेगी जब उनके पिता उनका विवाह भगवान शंकर से करने को तैयार होंगे। पुत्री के हठ से विवश हो कर हिमालय इस बात के लिए तैयार हो गए। अपने महल वापस आकर उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह भगवान शंकर के साथ कर दिया। तभी से कुंवारी लड़कियां मनचाहा वर पाने के लिए और विवाहित स्त्रियां अपने  पति की लंबी आयु के लिए हरियाली तीज का व्रत करती आ रही हैं।

हरियाली तीज का व्रत कठिन तो है परंतु इस व्रत और त्यौहार में स्त्रियों को खूब सजने संवरने को मिलता है और गाने-बजाने के साथ झूला झूलने का आनंदोत्सव होता है, इसलिए सब तरफ खुशियों का माहौल होता है और इसी कारण यह पर्व स्त्रियों के बीच बहुत लोकप्रिय होता है।