2024 कुम्भ संक्रांति की तिथि, मुहूर्त, महत्व और पूजन विधि क्या है

नवग्रहों के राजा सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते है तो उस दिन को ‘संक्रांति’ कहा जाता है। पंचांग के अनुसार साल में 12 ‘संक्रांति’ मनाई जाती है। पूरे साल में पड़ने वाली 12 संक्रांतियों में से ‘कुंभ संक्रांति’ फाल्गुन मास के 11वें क्रम पर आती है।

कुम्भ संक्रान्ति हमेशा एक तिथि पर नहीं मनाई जाती है। हमेशा सूर्य की दिशा और उसकी स्थिति के अनुकूल ही कुम्भ संक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है। ज्यादातर कुम्भ संक्रांति का पर्व फरवरी व मार्च के महीने में पड़ता है। शास्त्रों में बताया गया है कि जब सूर्य मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश करते है तो उस तिथि को ही ‘कुम्भ संक्रान्ति’ के रूप में मनाया जाता है।

कुम्भ संक्रांति के दिन पूजा जप, तप, दान का विशेष महत्व बताया गया है। सूर्य देव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। प्रातः काल स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करते है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान कर पूजा करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

कुम्भ संक्रान्ति 2024 –

2024 कुम्भ संक्रांति की तिथि,

पंचांग के अनुसार सूर्य देव इस वर्ष यानी 2024 मे, 13 फरवरी के दिन, मंगलवार को दोपहर 3:54 बजे से शनि की राशि कुंभ में प्रवेश करेंगे। उसी समय ‘कुम्भ संक्रान्ति’ का पर्व होगा । इस साल कुम्भ संक्रान्ति 13 फरवरी के दिन, मंगलवार को मनाया जाएगा।

कुम्भ संक्रांति का शुभ मुहूर्त

13 फरवरी के दिन, मंगलवार को कुम्भ संक्रांति का शुभ काल – 5 घंटे 56 मिनट तक रहेगा ।
पुण्य काल – 13 फरवरी को सुबह 9 बजकर 57 मिनट से दोपहर 3 बजकर 54 मिनट तक है |
महा पुण्य काल – 13 फरवरी को दोपहर 2 बजकर 2 मिनट से दोपहर 3 बजकर 54 मिनट के बीच रहेगा।

कुम्भ संक्रान्ति को स्नान दान का समय

कुम्भ संक्रांति के दिन पुण्य काल में स्नान और दान करने की परम्परा है, इसलिए 13 फरवरी को सुबह 9 बजकर 57 मिनट से कुम्भ संक्रान्ति का अपने सामर्थ्य अनुसार स्नान दान शुरू हो जायेगा। कुम्भ संक्रांति के दिन सूर्य देव से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए |

इस दिन गेहूं, गुड़, लाल फूल, लाल कपड़े, तांबा, तेल आदि का दान किया जाता है। इससे कुंडली में ‘सूर्य दोष’ दूर हो जाता है और सूर्य के मजबूत होने से करियर में तरक्की मिलती है। पिता का प्यार सहयोग मिलता है। राजनीति से जुड़े लोगों को बड़े पद मिलने की भी संभावनाएं बढ़ जाती है।

कुम्भ संक्रांति का धार्मिक महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार कुम्भ संक्रांति के दिन पवित्र नदी में स्नान करके दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन दान का विशेष महत्व रहता है। दान करने से 2 गुना ज्यादा पुण्य की प्राप्ति होती है। कुम्भ संक्रांति के दिन से विश्व के सबसे बड़े मेले अर्थात ‘कुम्भ मेले‘ का आरम्भ होता है इस मेले को देखने और पवित्र नदी में स्नान करने के लिए लाखों श्रद्धालु नदी के किनारे इकट्ठा होते है।

कुम्भ संक्रांति पूजन विधि

इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके सूर्य देव को जल अर्पित करें, इसके उपरांत ‘आदित्य हृदय स्त्रोत’ का पाठ करें। इस ‘आदित्य हृदय स्त्रोत’ का पाठ करने से जीवन के हर मोड़ पर सफलता मिलती है और जीवन सुखमय रहता है।

इस दिन सूर्य भगवान के मंत्र, सूर्य भगवान की आरती, सूर्य भगवान की कथा और सूर्य कवच पढ़कर भी उनको प्रसन्न किया जाता है। इस दिन खाने से संबंधित वस्तुएं, वस्त्र धन इत्यादि गरीबों में दान देना अत्यंत पुण्य दायक होता है। इसके अतिरिक्त शुद्ध देसी घी का दान करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

इसके अलावा कुम्भ संक्रांति के दिन सोने, चांदी, पीतल, तांबा, कांसे के छोटे कलश दान देना भी अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने का बहुत महत्व है। गंगा नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। समृद्धि घर में लाने के लिए मां गंगा का भी ध्यान करना चाहिए। अगर गंगा स्नान करना संभव न हो तो यमुना, गोदावरी या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करके पुण्य प्राप्त किया जा सकता है।

कुम्भ संक्रान्ति से जुड़ी कुछ विशेष बातें

1- कुम्भ संक्रांति के दिन सभी लोग अपने उज्जवल भविष्य की कामना के लिए भगवान से प्रार्थना करते है।
2- कुम्भ संक्रांति के दिन धार्मिक स्थल पर आम दिनों की अपेक्षा बहुत ज्यादा भीड़ भाड़ होती है।
3- भारत के महान प्रतापी राजा हर्षवर्धन के शासनकाल से ही कुम्भ मेले का आयोजन शुरू हुआ था।
4- कुम्भ मेले का आयोजन हर तीन साल में हरिद्वार में गंगा, इलाहाबाद में यमुना, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी जैसी नदी के तट पर किया जाता है।
5- पश्चिम बंगाल में रहने वाले लोग तो कुम्भ संक्रान्ति को शुभ फाल्गुन मास के आरंभ के रूप में मनाते है ।
6- पूरे भारत वर्ष में कुम्भ संक्रान्ति का पर्व बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। पूर्वी भारत के इलाकों में तो इस पर्व को अत्यधिक महत्व दिया जाता है।

कुम्भ संक्रान्ति एक बहुत ही पुण्य फलदायी अवसर होता है। इसका उल्लेख भागवत पुराण में किया गया है।