2024 महाशिवरात्रि की शुभ तिथि, मुहूर्त, महत्व और पूजन विधि क्या है?

मनोकामना पूर्ति के उपाय

“महाशिवरात्रि” प्रत्येक वर्ष के कुछ विशेष शुभ दिनों में से एक माना जाता है। महाशिवरात्रि, आत्मा और मन को गहरा विश्राम देती है। जब आपका मन और आत्मा पूर्णतया उदयमान और खिले हुए होते हैं तब आप सबसे पहले उस परम अवस्था “शिव तत्त्व” में पहुँच जाते हैं।

हमारे भीतर शिव तत्त्व का उत्सव ही शिवरात्रि है। “महाशिवरात्रि”, शिव भक्तों की अपने आराध्य देव ‘भगवान शिव’ की उपासना के लिए उत्सव का दिन है। भगवान शिव, सर्वशक्तिमान और सबसे उदार है। लेकिन शिव, वो तत्त्व है जो संपूर्ण सृष्टि की ‘परम-दिव्यता’ है तथा समस्त ब्रह्माण्ड में विद्यमान है।

शिव जीवन का सार है तथा सभी जीवों के भीतर उपस्थित है। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि यह शक्ति हमारे भीतर उपस्थित है। ‘महाशिवरात्रि’ हमें शांति, अनंत, सुंदरता और अद्वैत ‘शिव’ में शरण लेने का अवसर देती है। स्वयं में शिव तत्त्व को मानना ही ‘महाशिवरात्रि’ का सार है।

हम अपने भीतर शिव भक्ति में डूबकर, आनन्दित होकर तथा शिव ऊर्जा के ध्यान में लीन होकर ‘शिव-तत्त्व’ का महा-उत्सव मनाते हैं। महाशिवरात्रि केवल शारीरिक आराम का समय नहीं है बल्कि मन और अहंकार के विश्राम का समय भी है। महाशिवरात्रि की रात्रि को जागरण की परंपरा है। शिवरात्रि सौंदर्य, प्रेम और सत्य का आह्वान है।

2024 महाशिवरात्रि

हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को ‘महाशिवरात्रि’ का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव की विधिवत पूजा की जाती है। यह वर्ष के 12 शिवरात्रि में से सबसे महत्वपूर्ण शिवरात्रि होती है और वर्ष में एक बार आती है इसलिए इसे “महाशिवरात्रि” कहते हैं।

इस दिन शिवभक्त व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखने और पूजा-पाठ करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साधक इस लोक मे सुख व ऐश्वर्य भोग कर अंत मे मुक्ति को प्राप्त करता है।

महाशिवरात्रि की तिथि

इस वर्ष, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि का आरंभ- 8 मार्च को रात 9:57 पर शुरू होगा। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि का समापन- 9 मार्च को शाम 6:17 पर होगा। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि इस वर्ष महाशिवरात्रि की तिथि- 8 मार्च होगी।

महाशिवरात्रि की पूजन विधि

महाशिवरात्रि में सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, नहा धोकर स्वच्छ वस्त्र पहनकर सबसे पहले घर में भगवान शिव की पूजा करके, उसके उपरांत मंदिर में जाकर भगवान को पंचामृत (केसर युक्त जल मे कच्चा दूध ,शहद, घी, शक्कर, दही), सफेद चंदन का तिलक, बेलपत्र, भांग, धतूरा ,बेर, फल ,पान, गन्ने क रस, मदार के फूल , सफेद पुष्प आदि समस्त सामग्री लेकर, पंचाक्षर मंत्र  “नमः शिवाय” का जाप करते हुए शिवलिंग पर चढाये। फिर भगवान शिव से हाथ जोड़कर अपनी मनोकामना हेतु प्रार्थना करे और पूजा में किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करे।

महाशिवरात्रि का धार्मिक महत्व

माना जाता है कि महाशिवरात्रि को शिव जी ने वैराग्य जीवन से गृहस्थ जीवन में कदम रखा था। इस रात्रि को शिवजी और मां पार्वती का मिलन (विवाह) हुआ था, इसलिए यह शिवजी और माता पार्वती के साथ शिव भक्तों के लिए भी खास रात्रि है। कहते हैं जो भी भक्ति भाव से इस दिन जागरण, पूजा और आराधना करता है, उसको शिव-पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

मन की शांति के लिए इस रात बहुत से साधक अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा करके ध्यान मुद्रा में बैठकर शिवजी की आराधना करते हैं जिससे शिवजी प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामना को पूरा करते हुए उनके कष्टों को हर लेते हैं ।

धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव को परम पुरुष कहा जाता है और मां पार्वती आदि शक्ति महामाया का स्वरूप हैं। शिव और उनकी शक्ति माता पार्वती ही समस्त सृष्टि का आधार है, इसलिए इस महारात्रि पर प्रकृति मनुष्य को परमात्मा से जोड़ती है।

महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व

वर्ष भर में कुछ विशेष दिन समस्त मानव जाति के आध्यात्मिक और मानसिक विकास के लिए बहुत पवित्र माने जाते हैं। महाशिवरात्रि उन सभी शुभ अवसरों में विशेष है। महाशिवरात्रि, उस शिव ऊर्जा की आराधना का दिन है जो हमारे भीतर तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सर्वव्याप्त है।

शिवरात्रि को ग्रहों और नक्षत्रों की एक विशिष्ट स्थिति और गति, हमें शिव-ऊर्जा और सहज-ध्यान का अनुभव कराती है। यह दिन अपने भीतर जाने का, ध्यान में डूबने का और परम-तत्व का उत्सव मनाने के लिए एक आदर्श दिन है।

जब आप ध्यान करने बैठते है तब ध्यान, आपको मन और बुद्धि के परे ले जाता ह। ध्यान के दौरान एक ऐसा बिंदु आता है जहाँ हम ‘अनंत’ में प्रवेश कर जाते हैं; यह वो अनंत है जहाँ ‘प्रेम’ भी है और ‘शून्यता’ भी। यह अनुभव, हमें चेतना के चौथे स्तर पर ले जाता है, जिसे “शिव” कहते हैं।

महाशिवरात्रि के दिन, शिव तत्व का पृथ्वी से संपर्क होता है। ऐसा कहा जाता है कि हमारी चेतना और हमारा आभामंडल भौतिक स्तर से कुछ 10 इंच ऊपर होता है और महाशिवरात्रि के दिन ब्रह्माण्डीय चेतना पृथ्वी तत्व को छूती है। मौन में रहने का या अपनी चेतना के साथ रहने का यह सबसे उत्तम समय होता है। इसलिए महाशिवरात्रि का उत्सव साधक के जीवन में विशेष महत्व रखता है।

महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व

वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो इस रात ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार स्थित होता है कि मनुष्य के भीतर की ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाने लगते हैं। यानी प्रकृति स्वयं मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में सहायता कर रही होती है।

महाशिवरात्रि के व्रत में क्या खाना चाहिए

महाशिवरात्रि के व्रत में आप फलाहार कर सकते हैं। इसके अलावा आप मखाना, कुट्टू के आटे की पूरी, आलू की सब्जी, नट्स, या मूंगफली खा सकते हैं। कुट्टू की पूरी में पोटेशियम, कैल्शियम, प्रोटीन ,फैट ,कार्ब्स और फाइबर होता है।

मखाने और मेवा में प्रोटीन ,फाइबर, कैल्शियम ,आयरन ,होता है। कुछ भक्त पूर्ण उपवास (निर्जला) का पालन करना चुनते हैं जहां वे जल और भोजन दोनों से परहेज करते हैं। हालांकि व्रत में हाइड्रेट रहना जरूरी है इसलिए कुछ भक्तगण पानी पी लेते हैं।

भोलेनाथ का पसंदीदा रंग

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव को हरा रंग अत्यंत प्रिय है। हालांकि इसका कोई प्रमाण नहीं है। भगवान शिव को प्रकृति के अन्य रंग भी जैसे नीला, लाल, पीला रंग आदि भी प्रिय है जैसे अक्सर हम भगवान शिव को बाघ चर्म पहने हुए देखते हैं जो कि पीला और नारंगी रंग का होता है तो यह रंग भी भगवान शिव को प्रिय हो सकता है (ये सिर्फ अनुमान है)। शास्त्रों में शिवजी के पसंदीदा रंग का कोई विशेष उल्लेख नहीं है।

महाशिवरात्रि पर कौन से रंग नहीं पहनना चाहिए

महाशिवरात्रि पर नीला, काला जैसे गहरे रंगों से परहेज किया जाता है। भारतीय संस्कृति, त्योहार यानी उत्सव और रंगों से समृद्ध है इसलिए यहां त्योहारों और परंपराओं का उत्सव मनाने के कई अवसर मिलते हैं। हिंदू धर्म में रंगों का बहुत महत्व है।

इसीलिए लोग पूजा में ऐसे रंग पहनते हैं जो मन मे खुशी, ऊर्जा, सकारात्मकता, विश्वास और आनंद भर दे । काला रंग अंधकार, नकारात्मकता, शोक, मातम, विलाप से जुड़ा है इसलिए महाशिवरात्रि में लोग काला रंग पहनने से परहेज करते हैं। कुछ लोग उसको अशुभ भी मानते हैं और ऐसा माना जाता है शिव जी रुष्ट हो जाते है।

महाशिवरात्रि के अचूक महाउपाय

1- मनोकामना पूर्ति के लिए 21 बेल पत्र लेकर उस पर सफेद चंदन से राम नाम लिखकर शिवजी को अर्पित करने से समस्त प्रकार की मनोकामना की पूर्ति होती है।

२- सुख समृद्धि के लिए तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें जौ डालकर भगवान शिव का अभिषेक करने से घर में सुख समृद्धि आती है।

३- भगवान शिव के प्रिय नंदी महाराज (बैल) को हरा चारा खिलाने से भी घर में सुख समृद्धि का वास होता है।

४- विवाह में अड़चन आ रही हो तो उसको दूर करने के लिए कच्चे दूध में केसर डालकर शिवलिंग पर चढ़ाने से विवाह संबंधित समस्त प्रकार की अड़चन दूर हो जाती है।

५- मन की शांति और डिप्रेशन दूर करने के लिए एक लोटा जल में कच्चा दूध, फूल, बेलपत्र, फल, भांग, धतूरा सहित समस्त सामग्री लेकर नमः शिवाय का जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ाने से मन शांत रहता है और मनोकामना भी पूरी होती है। वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर भी ये माना गया है कि शिवलिंग पर ये समस्त सामग्री चढाने से डिप्रेशन की समस्या भी दूर हो जाती है।

६- घर में धन आगमन के लिए 108 साबुत चावल के दाने को लेकर भगवान शिव पर चढ़ाने से अपार धन की प्राप्ति हो सकती है।

७- शमी के वृक्ष के पत्तों तथा चमेली के फूल से शिव जी का पूजन करने पर अपार धन-संपदा का आशीष मिलता है।

८- महाशिवरात्रि पर सायंकाल के समय शिव मंदिर में दीया जलाने से परिवार संबंधी समस्त समस्याएं दूर होकर अपार खुशियों की प्राप्ति होती हैं।

९- महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर यदि संभव हो तो मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं। इस दौरान भगवान शिव का ध्यान करते रहें। इससे धन के आगमन के नए अवसर प्राप्त होते है |

१०- महाशिवरात्रि के दिन गरीबों, असहाय व्यक्तियों को भोजन अवश्य कराएं। इससे घर में कभी अन्न एवं धन की कमी नहीं होगी और पितरों की आत्मा को भी शांति मिलेगी।

११- महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को तिल व जौ चढ़ाएं। तिल चढ़ाने से समस्त पापों का नाश व जौ चढ़ाने से सुख में वृद्धि होती है।

१२- महाशिवरात्रि के दिन जूही के फूल से भगवान शिव का पूजन करें तो घर से दरिद्रता दूर भाग जाती है।

१३- महाशिवरात्रि के दिन कनेर के पुष्पों से भगवान भोलेनाथ का पूजन करने से मनचाहा धन लाभ पाने का आशीष मिलता है।

१४- महाशिवरात्रि पर 21 बिल्व पत्रों पर चंदन से ‘नमः शिवाय’ लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। इससे आपकी मन की इच्छा अवश्य पूरी हो सकती हैं।

१५- महाशिवरात्रि पर एक लोटे में पानी में काले तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें व ‘नमः शिवाय’ मंत्र का जप करें। इससे मन को शांति मिलती है तथा पितृ प्रसन्न होकर अपार धन प्राप्ति का आशीर्वाद देते है।

१६- महाशिवरात्रि पर गरीबों को भोजन कराएं, इससे आपके घर में कभी भी अन्न की कमी नहीं होगी। साथ ही माता पार्वती और भगवान शिव का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा।

१७- महाशिवरात्रि के दिन गंगा जल में पानी और काले तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें व “नमः शिवाय “मंत्र का जप करें। इससे मन को शांति मिलेगी।

१८- महाशिवरात्रि पर घर में किसी योग्य ब्राह्मण से सलाह करके तथा विधिवत पूजा करके शिवलिंग स्थापित करें फिर प्रतिदिन पूजन अवश्य करे। इससे आपकी आमदनी बढ़ाने के योग बनते हैं ।

१९- महाशिवरात्रि के दिन आटे से 11 शिवलिंग बनाएं व 11 बार इनका जलाभिषेक करें। इस उपाय से संतान प्राप्ति के योग बनते हैं ।

भगवान शिव को पूजा में भूलकर भी न चढ़ाएं ये वस्तुए

महाशिवरात्रि में विधि विधान से शिव जी की पूजा-अर्चना की जाती है। सभी लोग उनकी पूजा में गाय का कच्चा दूध, गंगाजल, बेलपत्र, भांग और धतूरा चढ़ाते हैं लेकिन कई बार लोग अनजाने में शिव जी की पूजा में ऐसी वस्तुएं भी चढ़ा देते हैं जो उनके लिए वर्जित मानी गई हैं।

शिव पूजा में भूलवश भी उन वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए। देवताओं को सदैव उनकी प्रिय वस्तुएं ही अर्पित करते हैं ताकि वे प्रसन्न होकर मनोकामना पूर्ति के लिए आशीर्वाद प्रदान करें। हिन्दू धर्म में सभी हिन्दू देवी-देवताओं को प्रसन्न करने और उनकी आराधना करने के नियमो का विधिवत वर्णन किया गया है।

किन्तु कुछ ऐसी सामग्रियां भी होती हैं जिनका प्रयोग करना विपरीत फल प्रदान कर सकता है। जहां कुछ चीजें आराध्य देवी-देवताओं को पसंद आती हैं वहीं कुछ उन्हें नापसंद भी होती हैं। ऐसे में अगर उन्हें वे अर्पित की जाएं या उनकी पूजा में उन वस्तुओ का प्रयोग किया जाए तो यह समस्या का कारण तो बनता ही है साथ ही साथ विशिष्ट आराध्य देव के क्रोथ को भी बढ़ाने का काम कर देता है।

भगवान शिव जिन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है और विनाशक भी। जहां वे अपने भक्तों से बहुत ही जल्दी प्रसन्न होते हैं तो अत्यंत क्रोध आने पे रौद्र रूप भी धारण कर लेते हैं। भगवान शिव को भांग धतूरे का चढ़ावा बहुत पसंद है।

परन्तु वहीं कुछ ऐसी वस्तुए भी हैं जिनका उपयोग भगवान शिव की आराधना के दौरान बिल्कुल नहीं करना चाहिए। आइए अब धार्मिक तथ्यों के माध्यम से जानते है कि आप को भूल वश भी भगवान शिव को किन-किन वस्तुओ को नहीं चढ़ाना चाहिए।

केतकी के फूल

पौराणिक कथा के अनुसार केतकी फूल ने ब्रह्मा जी के झूठ में साथ दिया था, जिससे नाराज होकर भोलनाथ ने केतकी के फूल को श्राप दिया था कि शिवलिंग पर कभी भी केतकी के फूल को अर्पित नहीं किया जाएगा। इसी श्राप के बाद से शिवजी को केतकी के फूल कभी भी अर्पित नहीं किए जाते हैं।

तुलसी की पत्ती

हिन्दू धर्म में तुलसी जी को अति पूजनीय माना जाता है और तुलसी जी को माँ तुलसी भी कहा जाता है। इसलिए तुलसी की पत्तियां लगभग प्रत्येक पूजा में आवश्यक माना जाता है किन्तु भगवान शिव की पूजा में इसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। अलौकिक और दैवीय गुणों से भरपूर तुलसी जी शिव पूजन में वर्जित है।

शंख से जल चढ़ाना

दैत्य शंखचूड़ के अत्याचारों से देवता परेशान थे। भगवान शंकर ने त्रिशूल से उसका वध किया था, जिसके बाद उसका शरीर भस्म हो गया, उस भस्म से शंख की उत्पत्ति हुई थी। शिवजी ने शंखचूड़ का वध किया इसलिए कभी भी शंख से शिवजी को जल अर्पित नहीं किया जाता है।

कुमकुम या सिंदूर

विवाहित स्त्रियों का अहम् गहना सिन्दूर है। स्त्रियां अपने पति की लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना हेतु अपनी मांग में सिंदूर लगाती हैं और भगवान को भी अर्पित करती हैं। लेकिन शिव तो विनाशक हैं शिव स्वयं संन्यासी और तपस्वी हैं यही वजह है कि सिंदूर से भगवान शिव की सेवा नहीं की जाती है और न ही उनकी किसी भी पूजा में सिन्दूर का उपयोग होता है।

नारियल का पानी या श्रीफल

शिवलिंग पर नारियल अर्पित किया जाता है लेकिन इससे अभिषेक नहीं करना चाहिए। अधिकतर देवताओं को चढ़ाये जाने वाले प्रसाद भक्तो को ग्रहण करना आवश्यक और फलदायक होता है लेकिन शिवलिंग का अभिषेक जिन पदार्थों से होता है उन्हें ग्रहण नहीं किया जाता है।

इसलिए भगवान शिव पर नारियल का जल नहीं चढ़ाना चाहिए। एक कारण ये भी है कि नारियल या श्रीफल का संबंध माता लक्ष्मी से है और वे भगवान विष्णु की पत्नी हैं इस वजह से भगवान शिव को नारियल अर्पित नहीं किया जाता है।

हल्दी

शिवजी के अतिरिक्त लगभग सभी देवी- देवताओं के पूजन में हल्दी को गंध और औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुष तत्व का प्रतीक है और हल्दी स्त्रियोचित वस्तु है। स्त्रियोचित यानी स्त्रियों से संबंधित। इसी वजह से शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है।

लाल फूल

भगवान शिव को लाल फूल चढ़ाना वर्जित होता है। भगवान शिव की पूजा में कमल का फूल, लाल फूल, केतकी और केवड़े का फूल चढ़ाना वर्जित माना जाता है।

टूटे अक्षत

भगवान शिव की पूजा में टूटे हुए अक्षत का उपयोग नहीं करते हैं। अक्षत् का अर्थ “क्षति से रहित” होता है अर्थात् आप जो भी चावल अक्षत के रूप में चढ़ाते हैं वह पूरा होना चाहिए न कि टूटा हुआ।

निष्कर्ष

महाशिवरात्रि पर शिव जी के पूजन से श्रद्धालुओं की घर परिवार सम्बन्धी, धन संबंधी, विवाह संबधी आदि समस्त प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं। शिव भक्ति करने वाले व्यक्ति को कभी भी किसी भी संकट का सामना नहीं करना पड़ता है ।