हिन्दू धर्म के प्राचीन शास्त्रों में घर में बच्चे के जन्म के बाद लगने वाले सूतक और मृत्यु के बाद लगने वाले पातक सूतक, दोनों में ही पूजा-पाठ करने और व्रत शुरू करने को वर्जित बताया है। आइये समझें, इस बहुत महत्वपूर्ण विषय पर हमारे प्राचीन ग्रंथ क्या कहते हैं।
सूतक में व्रत कैसे करें
- व्रत पहले से चल रहा हो: यहाँ ध्यान देने योग्य बात ये है कि व्रत आरंभ करना वर्जित है परंतु यदि कोई ऐसा व्रत जो पहले से किया जा रहा हो और पूरा ना हुआ हो तो वह व्यक्ति उस व्रत को बीच में छोड़ना नहीं चाहेगा। इसके लिए भी प्रावधान दिया गया है और वो ये है कि ऐसे समय में केवल व्रत ही किया जाए पर उससे जुड़ी पूजा ना की जाए।
- व्रत की पूजा/उद्यापन किसी अन्य विश्वासपात्र से पूरी करा दें: सूतक के कठिन समय में ऐसा कहा जाता है कि यदि आपकी कोई विवाहित बहन या पुत्री है तो वह अपने घर जाकर आपकी तरफ से व्रत की पूजा या उद्यापन कर सकती है। यदि ऐसा ना हो पाए तो आप अपने किसी करीबी मित्र या अपने अच्छे पड़ोसियों से भी मदद ले सकते हैं कि वो आपके नाम से उस दिन की पूजा कर दें।
- कुछ अलग प्रकार के सूतक में व्रत: महिलाओं के मासिक धर्म और ग्रहण काल को भी एक प्रकार का सूतक (अशुद्धता) ही माना जाता है जब घर से बाहर निकलना और बाहरी लोगों से मिलने-जुलने से बचना चाहिए, परंतु ये सूतक अलग प्रकार के होते हैं जिनके दौरान आप व्रत या किसी देवी-देवता के नाम का मानसिक जाप कर सकते हैं।
सूतक के नियम
समय तेज़ी से बदलता है और इसके साथ बदलती है लोगों की सोच। शास्त्रों में लिखे जिन नियमों को लोग दृढ़ विश्वास से मानते थे और इनका पूरी लगन से पालन करते थे, वही नियम आजकल की नयी पीढ़ी को कांटे की तरह चुभते हैं। आम तौर पर ऐसे अनुभवी लोग जिन्होंने बहुत से बसंत देखें हैं।
उन्हें इनके बारे में पता ही होता है और आजकल के युवा वर्ग के लोग इनके बारे में जानना नहीं चाहते फिर भी जो बहुत थोड़े नौजवान इन नियमों का वैज्ञानिक महत्त्व समझते हैं और सम्मान करते हैं, उनको हम इसके बारे में विस्तार से अवश्य बतायेंगे।
सूतक का अर्थ
सूतक का अर्थ समझने के लिए आजकल फैली हुई कोरोना की महामारी का उदहारण सबसे ज़्यादा प्रासंगिक है। कोरोना फैलते ही WHO और डॉक्टरों ने संक्रमित लोगों को 14 दिन क्वॉरेंटीन में रहने की सलाह दी। अब सोचिए, जब आज के आधुनिक तकनीक के युग में हम सब मिल कर एक महामारी नहीं संभाल पा रहे हैं तो प्राचीन काल में जब इलाज की बेहतरीन सुविधा नहीं थी और बहुत सी महामारियाँ फैलती थीं तब बिना किसी WHO या वाइरोलॉजिस्ट के प्राचीन लोगों को पता था कि लगभग इतने दिन तक जिस घर में मृत्यु या बच्चा पैदा हुआ है, उस घर के लोगों को किसी से मिलना जुलना नहीं है।
ये बात आसानी से समझी जा सकती है कि सूतक भी एक तरह का क्वॉरेंटीन ही है क्योकि कभी-कभी ये पता नहीं होता कि जिसके घर में मृत्यु हुई वह कौन से संक्रमण से ग्रसित था और बच्चे के जन्म के समय भी जच्चा-बच्चा दोनों कमजोर होते हैं जिस समय किसी वाइरल बीमारी के संक्रमण के बहुत खतरे होते हैं।
ये बच्चे की सुरक्षा के लिए भी ज़रूरी है कि बाहरी लोग कुछ समय उससे दूर ही रहें यानी कह सकते हैं कि हमारे पूर्वजों को क्वॉरेंटीन के बारे में प्राचीन काल से ही पता था, है ना कितनी कमाल की बात! देखा आपने कि हमारे पूर्वजों ने कितनी दूरदर्शिता से सूतक और पातक के नियम बनाए थे, वो सभी की सुरक्षा के लिए थे।
ये पूर्वज कई-कई सालों तक तपस्या और अध्ययन करने वाले ऋषि-मुनि थे, जिन्होंने सबके भले के लिए इन नियमों को शास्त्रों और ग्रंथों में संकलित किया। इसलिए हम सबको प्राचीन शास्त्रों में वर्णित इन महान नियमों को समझना चाहिए और पालन करना चाहिए।