क्या आप जानते हैं कि साल भर में 24 एकादशी व्रत माने जाते हैं और उन सभी व्रतों में जो सबसे बड़ा और कठिन व्रत माना जाता है, वह है निर्जला एकादशी का व्रत। आइये इस महत्वपूर्ण व्रत के बारे में और अधिक जानकारी हासिल करें जिसको सही तरीके से करने वाले पर मनुष्य अवश्य ही बैकुंठ धाम को जाता है।
इस साल विद्वानों के बीच इस बात को ले कर बहुत मतभेद रहा कि निर्जला एकादशी किस तारीख़ को मानी जानी चाहिए। अलग-अलग पंचांगों की अलग तरह की गणनाओं के कारण कुछ लोग यह मान रहे हैं कि इस साल यह 10 जून को होगी तो वहीं कुछ लोग इसको 11 जून मान रहे हैं।
आप जिस पंचांग के अनुसार तिथियाँ मानते हों, उसके अनुसार इस व्रत को करें। सही तिथि में व्रत या पूजा-पाठ करना निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण है पर उससे भी अधिक ज़रूरी है उचित श्रद्धा और समर्पण भाव से की गयी प्रभु की भक्ति। यदि आप पूरी निष्ठा और श्रद्धा से इस व्रत को करें तो आप दोनों में से किसी भी तिथि में करें, प्रभु की असीम कृपा आपको अवश्य प्राप्त होगी।
निर्जला एकादशी का महत्व
हिन्दू धर्म में व्रत रखने की बहुत महिमा बतायी गयी है और उनमें भी एकादशी के व्रतों का बहुत श्रेष्ठ स्थान है। उन सभी श्रेष्ठ व्रतों में से भी निर्जला एकादशी व्रत कितना महान व्रत है, इसका अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि जो भी मनुष्य इस व्रत को करता है, उसको साल के अन्य सभी एकादशी व्रतों का पुण्य फल प्राप्त हो जाता है।
उसको अधिक आयु का वरदान प्राप्त होता है, सभी पापों से मुक्ति मिलती है और हर साल सही तरीके से इस व्रत को करने से अंत में उसको मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। मृत्यु के बाद निर्जला एकादशी व्रत को करने वाले श्रद्धालु भक्तों को ले जाने के लिए श्री हरी भगवान विष्णु के दूत स्वयं आते हैं और उन्हें विष्णु लोक ले जाते हैं।
इस व्रत को करने के साथ आप तिल और जल से भरे घड़े में शक्कर मिला कर प्यासे यात्रियों को पानी पिलायें। साथ ही गरीब औरआवश्यक पात्रों को दान भी करें तो यह बहुत ही शुभ दान माना जाता है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा
यदि सार रूप में कहा जाए तो पद्म पुराण में वर्णित निर्जला एकादशी की यह व्रत कथा इस प्रकार है। एक बार पाँच पांडव भाइयों में से एक महाबली भीम ने जब अपनी समस्या ऋषि श्रेष्ठ व्यास जी से बतायी कि वो एकादशी व्रत रखने चाहते हैं लेकिन हर बार व्रत में भूखे नहीं रह सकते परंतु एक बार अगर कठिन व्रत भी करना हो तो वह एक बार का कठिन संयम रख सकते हैं।
महर्षि व्यास ने इसका उपाय बताते हुए कहा कि बेटा तुम्हें साल के सभी 24 एकादशी व्रत रखने की ज़रूरत नहीं है, तुम बस निर्जला एकादशी का व्रत करो जिससे तुम्हें साल के बाकी सभी एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त हो जाएगा। इस व्रत को रखने वाला लम्बी उम्र पाता है और अंत में उसको मोक्ष भी मिलता है। महर्षि व्यास के बताये गए इस एक बार के कठिन व्रत से भीम की कई बार व्रत ना कर पाने की समस्या का समाधान भी हो गया और उनको इस कठिन व्रत को करने से कई गुना अधिक पुण्य फल भी मिला।
निर्जला एकादशी व्रत को करने की विधि
शास्त्रों में वर्णित विधि के अनुसार निर्जला एकादशी व्रत में सूर्य के उदय होने से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक जल का त्याग करना चाहिए और अगले दिन सूर्योदय के बाद पूजा करके पारण के समय जल ग्रहण करना चाहिए। जैसा कि नाम से ही आप समझ गए होंगे, इस एकादशी का व्रत 24 घंटे तक बिना पानी पिए किया जाता है।
जिसका समय एकादशी के सूर्योदय से लेकर अगली सुबह तक होता है क्योंकि ‘निर्जला’ का अर्थ होता है बिना जल का। केवल कुल्ला करने और आचमन करने के लिए ही जल को मुँह के अंदर डाल सकते हैं। निर्जला एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके साफ-सुथरा पीला वस्त्र पहन लें और मंदिर या पूजा स्थल पर जाकर ईश्वर को साक्षी मान कर व्रत करने का संकल्प लें।
उसके बाद भगवान विष्णु को पीले चंदन और पीले फूल चढ़ा कर पूजा एवं आरती करें। पूरे दिन बिना कुछ भी खाए या पिए रह कर अगले दिन सूर्योदय होते ही स्नान कर के पूजा करने के बाद आपका व्रत पूरा हो जायेगा और उसके बाद ही आप फिर से अन्न-जल ग्रहण करें।
यह व्रत कठिन है परंतु इसका माहात्म्य बाकी सभी व्रतों से बहुत ज़्यादा है। इस व्रत को आप तभी करें जब हष्ट-पुष्ट हों, यदि आपके डॉक्टर ने व्रत करने से मना किया हो या अधिक पानी पीने की सलाह दी हो तो इस व्रत को आप बिल्कुल ना करें क्योंकि यदि आप पहले से ही कमज़ोर हैं तो ये आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक भी हो सकता है।
आम तौर पर कोई भी स्वस्थ व्यक्ति इस व्रत को कर सकता है और पुण्य कमाने के अलावा यदि वैज्ञानिक तौर पर भी देखें तो अन्न-जल त्याग करने की इस कठिनाई से इच्छा-शक्ति बहुत मज़बूत होती है और एक दिन के लिए पाचन तंत्र को आराम मिलता है।