क्या आप जब भी कोई बिजनेस या व्यापार करने जाते हैं तो जल्दी ही आप पर कर्ज चढ़ जाता है या जब भी आप कोई व्यापार या बिजनेस शुरू करते हैं तो फायदे की जगह घाटा होने लगता है, और बिजनेस में आपने जितना निवेश किया है उतना निकलना भी मुश्किल हो जाता है।
अगर ऐसा है तो आपको अपनी जन्म कुंडली ध्यान से देखने की जरूरत है। आज हम आपको, अपने इस लेख में, इस समस्या का वह समाधान बताएंगे जो अचूक है और जो कई बार आपको प्रोफेशनल ज्योतिषी भी नहीं बता पाते।
कौन सा है वो योग आपकी कुंडली मे
सबसे पहले हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि लोगों को बिजनेस में घाटा क्यों होता है और हम यह जानने की कोशिश करेंगे ज्योतिषीय दृष्टिकोण से। तो चलिए अपनी जन्म कुंडली उठाइए और देखिए कि कहीं आपकी कुंडली में सातवें भाव के स्वामी का संबंध, छठे भाव के स्वामी के साथ तो नहीं बन रहा है।
अब सबसे पहले आपको बताते हैं की कुंडली में किस भाव का स्वामी कौन है, यह कैसे जानेंगे। देखिए, किसी भी कुंडली में कुल 12 खाने या 12 भाव होते हैं। यह 12 खाने (या भाव) 12 राशियों से संबंधित होते हैं। कुंडली के प्रत्येक भाव में कोई न कोई राशि अवश्य होती है, और कुंडली का प्रत्येक भाव जीवन के किसी ने किसी हिस्से का प्रतिनिधित्व अवश्य करता है।
उदाहरण के लिए यहां एक कुंडली दी गई है जिसके बारहों खाने में एक से लेकर 12 तक का नंबर लिखा हुआ है। जिस खाने में जो नंबर लिखा हुआ है, उस नंबर की राशि उस खाने या भाव का प्रतिनिधित्व करेगी। किस नंबर पर कौन सी राशि होती है और उस राशि का स्वामी कौन होता है, यह नीचे दिया गया है इसे आप ध्यान से पढ़ लीजिए।
नंबर | राशि | राशि स्वामी |
1. | मेष | मंगल |
2. | वृष | शुक्र |
3. | मिथुन | बुध |
4. | कर्क | चंद्रमा |
5. | सिंह | सूर्य |
6. | कन्या | बुध |
7. | तुला | शुक्र |
8. | वृश्चिक | मंगल |
9. | धनु | बृहस्पति |
10. | मकर | शनि |
11. | कुम्भ | शनि |
12. | मीन | बृहस्पति |
अब हम आपको बताएंगे की कुंडली में कौन सा भाव जिंदगी के किस हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।
प्रथम भाव
प्रथम भाव से जिन चीजों के बारे में विचार किया जाता है वह इस प्रकार से हैं। प्रथम भाव से शरीर, शरीर के अलग-अलग अंग, सुख, दुख, जरावस्था, वृद्धावस्था, ज्ञान, जन्म का स्थान, यश, स्वप्न, बाल, गौरव, राज्य, नम्रता, आयु, शांति, शरीर की आकृति, अभिमान, काम धंधा, दूसरों से जुआ खेलने, निशान, मान सम्मान, त्वचा, नींद, दूसरों का धन हर लेना, दूसरों का अपमान करना, स्वभाव, प्रकृति, आरोग्य, वैराग्य, कार्य का कारण, पशुपालन, मर्यादा का सर्वनाश, वर्ण (ब्राह्मण क्षत्रिय आदि जिसमें आप पैदा हुए हों) तथा स्वयं का अपमान आदि होता है।
प्रथम भाव से संपूर्ण रूप से शरीर आदि का विचार किया जाता है। संपूर्ण रूप से तात्पर्य न केवल पूरा शरीर होता है बल्कि शरीर के धातु, चर्म आदि में जो पदार्थ सामूहिक अथवा व्यापक रूप से शरीर में पाए जाते हैं, हो सकता है।
उदाहरण के लिए जब किसी व्यक्ति का सिंह लग्न होगा तो उसका स्वामी सूर्य, यद्यपि आंख, हृदय, हड्डी सबका प्रतिनिधित्व करता है फिर भी जब हम सामूहिक शरीर का विचार करेंगे तो लग्नेश सूर्य को आंख तथा दिल की अपेक्षा हड्डी का अधिक प्रतिनिधित्व करता हुआ मानेंगे क्योंकि वह आंख और हृदय की अपेक्षा शरीर में अधिक व्यापक है।
इसी प्रकार से कर्क लग्न का स्वामी चंद्रमा यद्यपि मन, छाती तथा रक्त आदि सभी का प्रतिनिधित्व करता है फिर भी सामूहिक शरीर के रूप में विचार करने पर चंद्रमा रक्त का अधिक प्रतिनिधित्व करेगा क्योंकि रक्त शरीर में मन तथा छाती की अपेक्षा अधिक व्यापक क्षेत्र में कार्य करता है।
इसी प्रकार से लग्नेश मंगल से शरीर के पठ्ठे, लग्नेश बुध से शरीर का चमड़ा, लग्नेश गुरु से शरीर की वसा (मोटापा), मेद और लग्नेश शुक्र से वीर्य, लग्नेश शनि से शरीर की नसें या नर्वस सिस्टम को सामूहिक शरीर के अर्थ में लेना चाहिए।
द्वितीय भाव
अब बात करते हैं कुंडली के द्वितीय भाव की। कुंडली में द्वितीय भाव से वाणी, धन, आस्तिकता, दूसरों का पालन पोषण, नाखून, खाने-पीने का पदार्थ, सच और झूठ, जीव, आंख, कपड़ा, हीरा, तांबा, मणियां, मोती, हठ, अगरबत्ती आदि धूप, कुटुंब यानी परिवार संबंधी बातें, क्रय विक्रय अर्थात व्यापार, मृदु वचन, दानशीलता, वित्त यानी धन संबंधी उद्यम, सहायता, मित्रता, शरीर की कांति, कृपणता यानी कंजूसी, स्पष्ट व्याख्यान शक्ति, विद्या, सोना, अच्छी प्रकार की चांदी, अन्न, विनम्रता, नाक एवं मन की स्थिरता, अपने पर आश्रित व्यक्ति, कमाई के तरीके व जीवन शक्ति के बारे में विचार किया जाता है।
मुख्य रूप से द्वितीय भाव से विद्या का विचार करना चाहिए। कुछ विद्वान लोग पंचम भाव को विद्या का भाव मानते हैं, लेकिन पंचम भाव तो बुद्धि का भाव है। यद्यपि बुद्धि और विद्या का घनिष्ठ संबंध है फिर भी यह कोई आवश्यक नहीं की अच्छी बुद्धि वाला सर्वदा अधिक पढ़ा लिखा हुआ ही हो।
इसी प्रकार कुछ विद्वान लोग कुंडली के चतुर्थ भाव को विद्या का भाव मानते हैं। चतुर्थ भाव, भावनाओं का भाव है, विद्या का नहीं। मेरे विचार से विद्या ग्रहण शक्ति को पंचम भाव अथवा चतुर्थ भाव से देखा जा सकता है परंतु विद्या की मात्रा तो द्वितीय भाव से ही देखनी चाहिए।
तृतीय भाव
अब बात करते हैं कुंडली के तृतीय भाव की। कुंडली का तीसरा भाव धैर्य, छोटे भाई, युद्ध, दोनों कान, दोनों टांगे, रास्ते में आने वाला स्थान, चित्त का भ्रम, सामर्थ्य, स्वर्ग, दूसरों को कष्ट पहुंचाना, स्वप्न, सिपाही, शूरवीरता, साहस, अपने भाई बंधु, मित्र, यात्रा, कंठ यानी गला, दोषपूर्ण खाना पीना, शक्ति, धन का विभाजन, आभूषण, सदगुण, विद्या, रुचि, शारीरिक बल, लाभ, शरीर का बढ़ना, अच्छे कुल में पैदा होना, नौकर, तर्जनी उंगली और अंगूठे का मध्य भाग, दासी, अच्छी गाड़ी, छोटी यात्रा, महान कार्य, स्वयं का धर्म आदि इन बातों का विचार कुंडली के तीसरे भाव से करना चाहिए।
चतुर्थ भाव
अब बात करते हैं कुंडली के चौथे भाव की जो की एक महत्वपूर्ण भाव है। कुंडली के चौथे भाव से हम विद्या, राज्य, घर, घर से निकलना अथवा यात्रा, रिक्शा, सुंदर नौका, कार आदि बड़े तथा महंगे वाहन तेल मलना, माता, भाई, बंधु, मित्र, जाती, कपड़ा, छोटा कुआं, पानी, दूध, सुगंध, सुखी होना, यश, दिव्य औषधि, विश्वास, झूठा आरोप, मंडप, जय, कष्ट मय खेती, खेत, बाग बगीचे, का ध्यान हम चतुर्थ भाव से करते हैं।
इसके अलावा जनता के हित के लिए तालाब अथवा कुएं का खुदवाना, मातृ पक्ष, शुद्ध बुद्धि, पिता की आय, भार्या यानी पत्नी, अपना बचा हुआ गड़ा हुआ धन, महल, शिल्प कला, गृह प्रवेश, परिणाम, शील स्वभाव, घर छोड़ना, पैतृक संपत्ति, देव भोजन, चुराई गई वस्तु के स्थान की ओर निर्देश करने की कला, बालों में पढ़ने वाले जूएं, वेद आदि शास्त्रों की वृद्धि, भैंस, गाय, घोड़ा गाड़ी, मस्त हाथी, गीले क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली अच्छी धान्य संपदा यानी चावल आदि का ध्यान भी कुंडली के चतुर्थ स्थान से ही किया जाता है।
वैसे तो यश का संबंध चतुर्थ स्थान से रखा गया है और इसका कारण यह है कि वास्तव में चतुर्थ स्थान किसी भी कुंडली में जनता अर्थात सर्वसाधारण का होता है और यश भी जनता द्वारा ही अधिकतर प्राप्त होता है इसी प्रकार झूठा आरोप भी इसी चतुर्थ भाव से इसलिए संबंधित है कि झूठ आरोप भी तो ज्यादातर जनता द्वारा ही लगाया जाता है।
पंचम भाव
अब हम बात करते हैं कुंडली के पंचम भाव की। पंचम भाव से संतान, पिता के पुण्य कर्म, राजा, मंत्री, सदाचार, शिल्प कला, मन, विद्या, गर्व, विवेक, छत्र, धार्मिक कथा, खुशखबरी, कपड़े, कोई महान इष्ट कार्य, पिता का धन, दूरदर्शिता, वह वैभव जो स्त्री मूलक हो, दरबारी स्त्रियों से संग, गंभीरता, दृढ़ता, रहस्य, विनम्रता का विचार हम पंचम भाव से करते हैं।
इसके अलावा समाचार का लिखना, संभालना, मित्रता, प्रबंध काव्य रचना, किसी कार्य में लग जाना, पेट, मंत्र से पूजा, प्रसन्नता पूर्ण वैभव, अन्न दान, पाप पुण्य में विवेक, मंत्र जाप, समालोचना की योग्यता, धन कमाने का ढंग, मृदंग वाद्य, महान संतोष, पांडित्य, परंपरा से प्राप्त मंत्री पद आदि का विचार भी हम पंचम भाव से ही करते हैं।
षष्ठम भाव
अब बात करते हैं कुंडली के छठे भाव की। जन्म कुंडली के छठे भाव से हम, रोग, विघ्न बाधा, लड़ाई, मामा, कफ, शरीर के किसी अंग में सूजन, उग्र कर्म, पागलपन, फुंसी फोड़ा, शत्रु, शत्रुता, कंजूसी, बीमारी, उपदंश का व्रण यानी घाव, मेहनत, ऋण यानी कर्ज, बदनामी, शत्रु का संतोष, क्षय रोग, गर्मी, घाव, मानसिक व्यथा आदि का विचार कुंडली के छठे भाव से किया जाता है।
इसके अलावा बहुत लोगों से शत्रुता, दीर्घकालीन नेत्र रोग, भिक्षा ग्रहण करना, अकाल भोजन, कला से भ्रष्ट हो जाना, अपने सपिंडों से डर लगना, लाभ, परिश्रम, विष,पेट में अतिशूल का दर्द, पांव की बेड़ी, अपने यश की रक्षा करना, मूत्र का रोग, दस्त लग जाना, महान निंदा करना, दास, चोरी, विपत्ति कारीगर, भाइयों आदि से झगड़ा होना आदि का विचार भी कुंडली के छठे भाव से ही किया जाता हैं।
सप्तम भाव
अब आते हैं कुंडली के सातवें भाव पर। सातवें भाव से हम विवाह, व्यभिचार, काम यानी सेक्स से संबंधित विचार, व्यभिचारी स्त्री से शत्रुता, रास्ते से भटक जाना, सुगंध, संगीत, फूल, पौष्टिक पदार्थों का खाना पीना, पान चबाना, यात्रा का टूट जाना, दही, भूल, कपड़ों आदि की प्राप्ति, वीर्य, पति, पवित्रता, दूसरी स्त्री का होना अथवा ना होना, स्त्री अथवा पुरुष का यौन अंग, मूत्र, गुदा, लिंग, संभोग आदि का विचार जन्मकुंडली के सप्तम भाव से किया जाता है।
इसके अलावा व्यापार, मीठा पेय पदार्थ, सुधा, सूप, घी आदि का खाना, दान, शूरवीरता, पराजित शत्रु, विजय, दूसरे स्थान पर रखा हुआ धन, झगड़ा, मैथुन क्रिया यानी सेक्स, गोद लिए हुए पुत्र, घी में बनी वस्तुओं का स्वाद, अन्य देश, पत्नी, मैथुन क्रिया यानी संभोग से उत्पन्न समस्त छिपी बातें तथा चोरी आदि का विचार भी हम कुंडली के सप्तम भाव से ही करते हैं।
सप्तम भाव का विवाह से विशेष संबंध है। विवाह किस घर से होगा, धनवान स्त्री से होगा या निर्धन स्त्री से होगा, स्त्री कैसी रहेगी सुंदर अथवा कुरूप होगी, विवाह पितृपक्ष से होगा या मातृ पक्ष से होगा या कहीं और से विवाह होगा, यह सारी बातें कुंडली के सप्तम भाव से विचार की जाती हैं।
यदि कुंडली में कुंभ लग्न हो और सूर्य पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो विवाह अपने से बहुत ऊंचे घरानों में होता है। यदि सप्तम में वृषभ राशि हो और शुक्र, कर्क या कन्या आदि सम राशियों में हो तथा चंद्रमा भी ऐसे ही सम राशियों में हो, तो सुंदर स्त्री की प्राप्ति होती है। यदि सप्तम भाव तथा सप्तमेश एवं शुक्र पर चतुर्थ, चतुर्थेश तथा चंद्रमा का प्रभाव हो तो स्त्री मातृ पक्ष से मिलती है।
अष्टम भाव
अब बात करते हैं कुंडली के अष्टम भाव की। कुंडली में आठवें स्थान से इन विषयों का विचार करना चाहिए। आयु, सुख, पराजय, बीमा का धन, पीड़ित मुख, मृत्यु तथा मृत्यु का डर, मृत्यु के कारण, झगड़ा, मूत्र रोग, अज्ञानता, भाई के शत्रु, पत्नी का शारीरिक कष्ट, बने हुए स्त्री के बाल, शत्रु का दुर्ग स्थल, मानसिक क्लेश, आलसी, राज्य का दंड, भय, वस्तुओं का नाश, ऋण देना, अज्ञानता से प्राप्त दूसरों का धन, देर से पड़ा हुआ धन, पापी पुरुष से मिलना, पाप करना, जीव हत्या, अंग हीन या अपंग हो जाना, सर कट जाना, उग्र और तीव्र दुखों की प्राप्ति होना, चित्त का दुखदाई होना, लगातार कष्ट भोगना, क्रूर कर्मों में विशेष उद्यम दिखाना आदि हम अष्टम भाव से विचार करते हैं।
मारण विधि का विचार अर्थात इस बात का विचार करना कि व्यक्ति की मृत्यु साधारण रीति से होगी अथवा किसी दुर्घटना वश होगी। उसकी मृत्यु किस रोग से होगी? मृत्यु पानी में डूब कर होगी अथवा आग में जलकर होगी? मृत्यु स्वयं अपने हाथों से होगी या मृत्यु किसी दूसरे व्यक्ति के हाथों तो नहीं होगी?
इन सब बातों का विचार जहां लग्न, लग्नेश पर पड़ने वाले प्रभाव से किया जाता है तो वहीं इसका निर्णय अष्टम भाव तथा उसके स्वामी पर पड़ने वाले प्रभावों से भी किया जाता है। यदि कुंडली के अष्टम भाव तथा उसके स्वामी दोनों पर सूर्य, मंगल तथा केतु की युति अथवा दृष्टि का प्रभाव हो अथवा इन ग्रहों के अधिष्ठित राशियों के स्वामियों का प्रभाव हो तो मृत्यु किसी प्रकार के दाह से, आग से, या ज्वर से या अत्यधिक गर्मी से हो सकती है।
नवम भाव
अब बात करते हैं कुंडली के नवम भाव की। जन्म कुंडली के नवम भाव से दान, धर्म, तीर्थ में जाना, तपस्या, गुरुजनों में भक्ति, औषधि, चित्त की पवित्रता, देव पूजा, विद्या के लिए श्रम, वैभव, सवारी, भाग्य, विनम्रता, प्रताप, धार्मिक कथा, यात्रा, राज्याभिषेक आदि, पुष्टि, साधु संग, पुण्य, पिता का धन, पुत्र, पुत्री आदि का विचार किया जाता है।
इसके अलावा हर प्रकार का ऐश्वर्य, कई तरह के महंगे वाहन, हवाई जहाज में सफर, राज्याभिषेक का स्थान, ब्रह्म ज्ञान की स्थापना, वैदिक यज्ञ, धन का दान आदि का विचार करते हैं। कुंडली में लग्न और तृतीय भाव का संबंध जब नवम भाव से हो जाता है तो ऐसा मनुष्य साधु और महात्माओं की संगति अधिक करता है।
दशम भाव
कुंडली के दशम भाव की बात करें तो दशम भाव से वाणिज्य, राज्य की ओर से मिलने वाला मान सम्मान, बड़े वाहनों की सवारी, कुश्ती आदि मल्ल युद्ध तथा खेलों में दक्षता, राज्य से संबंधित कार्य, नौकरी, सरकारी नौकरी, खेती, चिकित्सा, यश, खजाने को विशेष स्थान में रखना, यज्ञ आदि शुभ कार्य का विचार दशम भाव से किया जाता है।
इसके अलावा उत्तमता, बड़े बूढ़े लोग, यंत्र और मंत्र, माता, विस्तार, पुण्य कर्म, औषधि, शरीर में कमर वाला हिस्सा, देवता, मंत्र सिद्धि, वैभव, गोद लिया हुआ पुत्र, मालिक, मार्ग यानी सड़क, मान सम्मान, शुभ जीवन, युवराज, अत्यधिक ख्याति, पढ़ाना (आजीविका के लिए), मोर, गौरव, दूसरों को काबू करना, आज्ञा तथा बुद्धि आदि इन चीजों का विचार भी दशम भाव से किया जाता है।
यहां एक बात ध्यान देने की है की मान सम्मान का विचार तो दशम भाव से करना चाहिए परंतु मान सम्मान की प्राप्ति पर विचार तभी पूर्ण रूप से समझ में आएगा जबकि दशम भाव के अतिरिक्त सूर्य तथा लग्न और लग्नेश पर भी विचार कर लिया जाए।
एकादश भाव
अब चलते हैं 11वें भाव की ओर। कुंडली का 11वां भाग हर प्रकार का लाभ, बुरी आशा, हर प्रकार की प्राप्ति, पराधीनता, बड़ा भाई, बड़ी बहन, पिता के भाई, देव पूजा, सात्विक व्यक्तियों की उपासना, विद्या, सोना तथा धन उपार्जन करने में दक्षता, पैतृक धन, दोनों पैर के घुटने, विशिष्ट पदवी या सम्मान आदि का विचार हम एकादश भाव से करते हैं।
इसके अलावा भूषण तथा मंदिरों के प्रति लगाव, मालिक का धन, सूद की हानि, प्रेमिका के लिए सोने चांदी के आभूषण बनवाना, प्रज्ञा, मंत्री पद, ससुर से लाभ, भाग्योदय, अभीष्ट वस्तु की सिद्धि, बिना कष्ट के लाभ प्राप्त होना, खाना पकाना, आशा करना, माता की आयु, दोनो कान, दोनो जंघा, चित्रकला में निपुणता आदि का विचार भी कुंडली के 11वें भाव से किया जाता है।
कुंडली में 11वां स्थान जहां लाभ का स्थान होता है वही यह स्थान मूल्य का भी होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस स्थान का स्वामी यदि शुभ ग्रह होगा तो वह जिस भाव में बैठेगा अथवा जिस ग्रह से युति बनाएगा या जिस ग्रह से दृष्टि द्वारा संबंध स्थापित करेगा, उसको यह मूल्यवान, धनी या उच्च स्तरीय बना देगा।
द्वादश भाव
अब बात करते हैं कुंडली के अंतिम भाव यानी बारहवें भाव की। जन्म कुंडली के 12वें भाव से नींद, नींद का टूटना, मन की व्यथा, दोनों पैर, शत्रु से भय, किसी प्रकार का बंधन या कैद, दर्द से छुटकारा, कर्ज से छुटकारा, हाथी, घोड़े, पिता की संपत्ति आदि का विचार हम जन्मकुंडली के द्वादश भाव से करते हैं।
इसके अलावा शत्रु, स्वर्ग यात्रा, बाई आंख, जनता की ओर से शत्रुता, शरीर के किसी अंग का भंग हो जाना, मित्रता, विवाह, नाश होना, सो जाना, त्याग, अधिकार की समाप्ति, शत्रु का जंजीरों वाला घर, मानसिक बेचैनी, स्वभाव में दीनता का आ जाना, हानि, पिता तथा भाई के समीप होने के चिंतन का नाश होना, झगड़ा, क्रोध, शारीरिक क्षति, मृत्यु, अन्य देश को जाना यानी विदेश में रहना, सर्व प्रकार व्यय तथा पत्नी की हानि आदि बातों का विचार भी हम कुंडली के बारहवें भाव से करते हैं।
तो मेरे प्यारे मित्रों, मेरे इस लेख को यहां तक पढ़ने के बाद आप इतना तो समझ ही गए होंगे कि यदि आपको अपने जीवन में घट चुकी, या घटने वाली किसी घटना के बारे में जानना है तो आपको अपनी कुंडली के किस भाव, किस राशि या किस ग्रह का अध्ययन करना होगा।
मुख्य समस्या का समाधान
आइए अब आते हैं इस लेख के मूल प्रश्न पर की क्या आप जब भी कोई बिजनेस शुरू करते हैं तो कर्ज के मकड़ जाल में फंस जाते हैं, या बिजनेस शुरू करने के बाद आप कभी प्रॉफिट में नहीं आ पाते? तो चलिए सबसे पहले उदाहरण में दी गई कुंडली को देखते हैं।
अगर आप इस कुंडली में देखेंगे तो पाएंगे कि इसमें व्यापार का प्रतिनिधित्व करने वाले सप्तम भाव का स्वामी शुक्र ग्रह है, क्योंकि सप्तम भाव में जो राशि है वह तुला राशि है और उसका स्वामी है शुक्र। इसी प्रकार से कुंडली में कर्ज यानी ऋण का प्रतिनिधित्व करने वाले छठे भाव का स्वामी है बुध ग्रह क्योंकि छठे भाव में कन्या राशि है और कन्या राशि का स्वामी बुध ग्रह होता है।
इसके बाद देखिए की कुंडली में छठे भाव का स्वामी बुध और सातवें भाव का स्वामी शुक्र कहां बैठा है। कुंडली में देखने के बाद आप पाएंगे कि इसके दूसरे भाव में बुध और शुक्र एक साथ बैठे हैं। तो अगर कुंडली में कुछ ऐसा योग बन जाए की सप्तम भाव का स्वामी और षष्ठ भाव का स्वामी दोनों एक साथ, एक ही भाव में बैठ जाएं तो ऐसा व्यक्ति व्यापार शुरू करने के बाद शीघ्र ही कर्ज में डूब जाता है।
मान लीजिए कि ऐसा योग अपनी कुंडली में लिए कोई व्यक्ति अपना व्यापार शुरू करता है और वह कोई कर्ज भी नहीं लेता, अपने पैसे से ही वह व्यापार शुरू करता है और उसे आगे बढ़ाता है, तो ऐसे में उसके बिजनेस में प्रॉफिट आने या लाभ होने की संभावना बहुत कम होगी।
वह कभी भी अपने बिजनेस में निवेश किए गए कुल धन से अधिक धन नहीं कमा पाएगा या अगर कमा भी लेता है तो लाभ के रूप में कमाई गई धनराशि किसी न किसी माध्यम से इस व्यापार में पुनः निवेश हो जाएगी किंतु उसके व्यापार में बढ़ोतरी नहीं हो पाएगी।
अब यहां कुछ और बातें भी ध्यान रखनी जरूरी है, जैसे कि व्यापार में घाटा होना या कर्ज के मकड़ जाल में फंस जाना, केवल इसी योग की वजह से नहीं होता बल्कि शष्ठेश और सप्तमेश के कुछ और कांबिनेशन भी है जिनके बनने से ऐसा योग बनता है, जैसे कुंडली में षष्ठेश जहां बैठा है, वहां से ठीक सातवें खाने में सप्तमेश बैठा हो यानी यदि षष्ठेश दूसरे भाव में बैठा है तो सप्तमेश अष्टम भाव में बैठा होगा।
ऐसी स्थिति में दोनों ग्रहों की एक दूसरे पर परस्पर दृष्टि होगी और जीवन में ऐसी ही परिस्थितियों का निर्माण होगा की व्यापार में लाभ होने की संभावना बहुत कम होगी। इसके अलावा इनका एक और कांबिनेशन है जिनकी वजह से व्यापार में लाभ होने की संभावना बहुत कम होती है।
उस योग में षष्ठेश, सप्तमेश की राशि में बैठा होता है और सप्तमेश षष्ठेश की राशि में। उदाहरण कुंडली में देखें तो ऐसा तब होगा जब बुध ग्रह दूसरे या सातवें भाव में बैठा हो और शुक्र ग्रह तीसरे या छठे भाव में बैठा हो। तो इस लेख में बताई गई ग्रह स्थितियों अगर जन्म कुंडली मैं बन रही है तो व्यापार में लाभ होने की संभावना बहुत कम होती है।
इस ज्योतिषीय समस्या का समाधान आप इस प्रकार से कर सकते हैं कि आप छठे भाव से संबंधित वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार कर सकते हैं। कुंडली में छठा भाव जिन चीजों का प्रतिनिधित्व करता है, यह आप इस लेख में देख सकते हैं।
इसके अलावा छठे भाव का स्वामी कौन सा ग्रह है उसके प्रतीकों को आप अपने व्यापार में शामिल कर सकते हैं, या उस ग्रह से संबंधित वस्तुओं एवं सेवाओं का व्यापार कर सकते हैं। उदाहरण के लिए इस लेख में दी गई कुंडली में षष्ठेश ग्रह बुध है और बुद्ध, पढ़ाई लिखाई, बुद्धि, कपड़ा, त्वचा, फाइनेंस, रिसर्च आदि को रिप्रेजेंट करता है। तो जातक इससे संबंधित वस्तुओं एवं सेवाओं का व्यापार कर सकता है।