आप सब ने शिव जी के मंदिर में नंदी महाराज को विराजित देखा ही होगा। ऐसा माना जाता है कि यदि आप भगवान शंकर से अपनी मनोकामना कहना चाहते हैं तो पहले आपको नंदी महाराज को प्रसन्न करना होगा। ऐसी भी मान्यता है कि नंदी स्वयं भगवान शंकर के अंश हैं, इसलिए वह अजर और अमर हैं|
नंदी जी का महत्व
नंदी जीवन में प्रसन्नता और सफलता के प्रतीक हैं। उनके दोनों सींग विवेक और वैराग्य के प्रतीक हैं| हिंदू शास्त्रों की माने तो भगवान शंकर के दर्शन करने से पहले व्यक्ति को नंदी जी के दर्शन जरूर करना चाहिए। आप अपने अहंकार, मोह, ईर्ष्या, और छल कपट जैसे विकारों को नंदी जी के चरणों में समर्पित कर यदि आप भगवान शंकर से मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा करेंगे तो वह जल्दी ही प्रसन्न होंगे।
नंदी जी का जन्म
हिंदू पुराणों के अनुसार जब ऋषि शिलाद पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी हो गए तो उनके पूर्वजों को वंश समाप्त होने का डर सताने लगा। उन्होंने अपना डर ऋषि शिलाद के सामने व्यक्त किया। अतः ऋषि शिलाद ने इंद्र भगवान की घोर तपस्या की और उनसे जन्म और मृत्यु से परे संतान की कामना की, परंतु इंद्रदेव ने ऐसा करने में अपनी असमर्थता जताई और उन्हें भगवान शंकर की तपस्या करने की सलाह दी।
तब ऋषि शिलाद ने शंकर भगवान की घोर तपस्या की और उनसे उन्हीं के समान पुत्र पाने की इच्छा प्रकट की। शंकर भगवान ने स्वयं उनसे उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने का वादा किया।
कुछ समय पश्चात हल जोतते समय शिलाद ऋषि को एक पुत्र मिला जिसका नाम उन्होंने नंदी रखा। कुछ समय पश्चात कुछ मुनि आश्रम में आए और उन्होंने आते ही आकाशवाणी सुनी कि नंदी अल्पायु है। ऐसा सुनते ही नंदी जी शंकर भगवान की घोर तपस्या में लीन हो गए क्योंकि उन्होंने मृत्यु से विजय पाने का मन बना लिया था।
उनकी घोर तपस्या से भोले शंकर अति प्रसन्न हुए और उन्होंने नंदी को वरदान दिया कि तुम जन्म और मृत्यु से परे और दुखों से बिल्कुल दूर रहोगे। फिर भगवान शंकर ने गणों के अधिपति के रूप में नंदी जी को नियुक्त कर दिया। इस प्रकार नंदी से वह नंदीश्वर हो गए।
नंदी जी का मुख किस दिशा में होना चाहिए?
आपने अक्सर शिव मंदिरों में देखा होगा कि नंदी जी का मुख हमेशा शिवलिंग की ओर होता है। शिव जी के वाहन भगवान नंदी परिश्रम का प्रतीक हैं। वह यह भी दर्शाते हैं कि जिस प्रकार वे भगवान शंकर की सवारी है, उसी प्रकार आपका शरीर आपकी आत्मा की सवारी है।
जिस तरह नंदी जी की दृष्टि हमेशा शंकर जी की और होती है, उसी प्रकार हमारी दृष्टि भी हमारी आत्मा की ओर होनी चाहिए। ऐसा करने से आपका मन एकाग्रचित्त और शरीर स्वस्थ रहता है। यदि शरीर का ध्यान आत्मा की ओर बना रहे तो व्यक्ति का चरित्र और उसका व्यवहार पवित्र बना रहता है।
अतः अगली बार जब आप शिव मंदिर जायें तो आप अपने अहंकार और अपने विकार नंदीश्वर के चरणों में समर्पित कर भोले बाबा के दर्शन करें, आपकी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होगी।