केदारनाथ मंदिर किसने बनवाया

केदारनाथ मंदिर

कहा कहा जाता है कि यदि मनुष्य अपने जीवन काल में चारों धामों की यात्रा कर लेता है तो उसका संपूर्ण जीवन सफल हो जाता है। उन्हीं चार धामों में से एक है केदारनाथ, जिसकी महिमा का वर्णन  शब्दों में नहीं किया जा सकता। इसे बद्रीनाथ धाम से भी ऊँचा स्थान दिया गया है़। क्योंकि यह वह पावन धाम है जहाँ भगवान शिव ने स्वयं निवास करने के लिए इसे चुना है।

केदारनाथ मंदिर का रहस्य

भारत के उत्तराखण्ड राज्य में हिमालय की गोद में बसे हुये केदारनाथ धाम के मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ  लिखा हुआ है। जिसकी लिपि सदियों पुरानी लगती है़। यहाँ यह सब मंदिर की सीढ़ियों पर किसने लिखा ? कब लिखा ?और क्या लिखा ? इस बात को आज तक नहीं जाना जा सका है़।

दरअसल ये वे शब्द हैं जिसमें छिपा है केदारनाथ धाम का अदभुत रहस्य। क्योंकि इस धाम का मंदिर का इतिहास कितना पुराना है इस संबंध में कोई निश्चित प्रमाण  नहीं मिलता है। कोई कहता है कि इस केदारनाथ धाम  के मंदिर की सीढ़ियों पर लिखे हुए शब्द स्वयं ब्रह्मा जी ने लिखे हैं।

केदारनाथ मंदिर का फोटो

केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने किया

भारत के चार धामों में से एक इस केदार नाथ धाम के मंदिर की स्थापना के संबंध  में अनेकों अद्भुत कथायें प्रचलित हैं। लेकिन ऐसा अनुमान अवश्य लगाया जाता है कि द्वापर युग में इस स्थान पर नर नारायण नाम  के दो जुड़वाँ संत भ्रमण करते हुये आये थे। जो भगवान विष्णु के चौथे अवतार थे।

नर और नारायण दोनों महात्मा धर्म प्रचार के उद्देश्य से पद यात्रा करते हुये हिमालय की इन ऊँची श्रृंखलाओं में जा पहुंचे। तब हिमालय के केदार श्रृंग में उन्हें एक आत्म प्रेरणा का अनुभव हुआ। उन्हें लगा कि कोई उनसे कह रहा है कि हे भक्तों, तुम इस स्थान पर ठहर जाओ और तपस्या करो मैं तुम्हें दर्शन दूंगा।

पहली बार जब नर और नारायण ने यह आवाज सुनी तो उन्हें लगा कि यह संभवतः उनके कानों का भ्रम होगा। इसलिये उस आवाज को अनसुना करके वे उस स्थान से आगे बढ़ने लगे तो फिर वही आवाज आयी कि हे संतो! रुक जाओ, इस हिमालय शिखा पर; मैं तुम्हें इसी स्थान पर दर्शन दूंगा।

दरअसल यह आवाज देवों के देव महादेव की थी। नर नारायण समझ गये कि स्वयं भगवान शिव का आदेश है कि हम कुछ समय  हिमालय पर्वत की इन करंदाओं में रुककर ईश भक्त में तल्लीन हो जायें । नर नारायण ने सोंचा कि प्रभु स्वयं यह संकेत दे रहें हैं कि संभवतः इसी पावन स्थान  से धरतीवासियों  के कल्याण का मार्ग खुलेगा।

केदारनाथ मंदिर का फोटो

कहते हैं कि नर नारायण ने 20 वर्षों तक भगवान शंकर की घोर तपस्या की। इस तपस्या के बीच उन्हें यहाँ की प्रतिकूल जलवायु का का सामना करना पड़ा। तेज बारिश, बर्फीली ठंड और जंगली जानवरों के डर के बावजूद नर नारायण वर्षों तपस्या में तल्लीन रहे।

कहते हैं कि इस घनघोर जंगल में  विषैले सर्प, खूंखार जंगली जानवर आदि उनके आसपास से गुजर जाया करते थे। लेकिन महादेव की कृपा के कारण नर नारायण का कुछ अहित नहीं कर पाते। बताते हैं कि तपस्या में तल्लीन नर नारायण के तेज से उस समय हिमालय पर्वत पर रात्रि में भी उजाला रहता था।

भगवान शंकर ने नर नारायण की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। तो नर और नारायण, भगवान के पैरों में पड़ गए। उन्होंने शिव जी से प्रार्थना की हे भगवन, आप हमारे साथ कुछ दिन रहें। बताते हैं कि भगवान शिव ने एक त्रिभुजाकार शिला पर अपना हाथ रखा और नर नारायण से कहा कि इस शिला खंड को इस हिमालय पर्वत पर स्थापित कर दो।

मैं शिवलिंग के रूप में सदा तुम्हारे साथ रहूंगा। कहते हैं कि उस पर्वत पर शिव धाम स्थापित करने के लिए नर नारायण ने रात-दिन मेहनत की। उसके बाद केदारनाथ धाम अस्तित्व में आया। आज भी वहाँ त्रिभुजाकार शिवलिंग की पूजा की जाती है।

केदारनाथ मंदिर कब खुलेगा 2024

केदारनाथ मंदिर फोटो

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले मे स्थित केदार नाथ धाम का प्रताप अवर्णनीय है़। यह हिंदू धर्म का प्रसिद्ध मंदिर है़। जो देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। साथ ही केदारनाथ भारत के प्रसिद्ध चार धामों में से एक है। पौराणिक ग्रंथों में लिखा है कि जब तक केदारनाथ धाम की यात्रा न की जाये तब तक चारों धामों की यात्रा का प्रतिफल प्राप्त नहीं होता।

हिमालय पर्वत की ऊँची चोटी पर बसा केदारनाथ, महादेव प्रभु का धाम है़। इसे पंच केदार में से एक कहा जाता है। यह धाम भक्तों के लिए उसी समय खोला जाता है जिस समय इस स्थान की जलवायु भक्तों के लिए अनुकूल होती है। यह केदारनाथ प्रत्येक वर्ष अप्रैल माह से नवंबर माह तक 8 महीने ही खोला जाता है।

शेष 4 माह में इस स्थान पर बर्फ गिरती रहती है। जिसके कारण मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। कहा जाता है कि केदारनाथ के पट बंद हो जाने के बाद भी मंदिर के अंदर दीपक स्वयं जलते हैं और शंख की आवाज गूंजती है़। ये एक ऐसा रहस्य है जिसे आज तक कोई सुलझा नहीं पाया ।

2024 की गर्मियों मे ही केदारनाथ मंदिर के पट खुल पाएंगे। जन सामान्य के दर्शन के लिए केदारनाथ मंदिर, 2024 की गर्मियों से ही उपलब्ध हो पाएंगे और अभी से ही दर्शनार्थियों की उत्सुकता मंदिर मे भगवान के दर्शन के लिए बढ़ी हुई हैं । संभावना है कि नवंबर 2024 तक केदारनाथ मंदिर के द्वार, जन सामान्य के दर्शन के लिए  बंद हूँ जाएंगे ।

केदारनाथ का महाभारत से क्या संबंध है

केदारनाथ मंदिर फोटो

जब पांडव महाभारत का युद्ध जीतने के पश्चात वापस अपने राज महल पहुंचे तो बहुत दुखी थे। उनके मन में इस बात को लेकर बहुत ग्लानि थी कि इस महाभारत युद्ध में उन्होंने अपने सैकड़ों भाइयों एवं अग्रजों की हत्या कर दी। अब पांडव इस हत्या का प्रायश्चित करना चाहते थे।

तब उनके परम मित्र भगवान कृष्ण ने उन्हें यह परामर्श दिया कि समस्त पांडव भाई भगवान शंकर की शरण में जायें। वही उन्हें इस पाप से मुक्ति दिला सकते हैं। कहते हैं कि तब पांडव भाइयों ने भगवान शिव को पाने के लिए आकाश- पाताल एक कर दिया।

लेकिन भगवान शिव के कहीं भी दर्शन नहीं हुए। कहते हैं कि उस समय भगवान शिव स्वयं पांडवों से रुष्ट थे। इसलिए वह पांडवों से मिलना नहीं चाहते थे। तब किसी तरह पांडवों को यह पता चला की भगवान शिव इस समय केदार पर्वत  पर हैं। लेकिन जब पांडव केदार पर्वत पर पहुंचे तो भगवान शिव एक बैल का रूप धारण कर उस स्थान से अंतर्ध्यान होने की चेष्टा करने लगे।

केदारनाथ मंदिर फोटो

कहते हैं कि तब भीम ने अपना भीमकायरूप धारण कर लिया और भगवान शंकर के बैल रूप का रास्ता रोक लिया। बताते हैं कि उसके पश्चात उस बैल स्वरूप में भगवान शिव धरती के अंदर अंतर्ध्यान होने लगे। पांडव भगवान शंकर को ढूढ़ ढूढ़ कर थक चुके थे।

उनके मन में निराशा के भाव जाग्रत हो गये। भीम के अश्रु बहने लगे। भीम की आँखो से निकले आँसू  उन बैल का स्वरूप धारण किये हुए भगवान शिव की पीठ पर पड़े। भीम के उन आंसुओं ने भगवान शिव को वहां से अंतर्ध्यान होने से रोक लिया।

कहते हैं कि तब भगवान शिव ने पांडवों को उनके हत्या के पाप से मुक्ति प्रदान की। आज भी उस बैल की पीठ के आकार का त्रिभुजाकार शिवलिंग केदारनाथ धाम में स्थित है़। जहाँ शिव जी आज भी अपने भक्तों के कल्याण के लिए विराजमान हैं। कुछ लोगों का ऐसा मानना है़ कि इस उत्तराखण्ड के हिमालय पर्वत पर बसे केदार नाथ धाम की स्थापना पांडव वंशज राजा जनमेजय ने की थी।

किन्तु सच्चाई ये है कि पांडवों के वंशज राजा जनमेजय ने केवल इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था । वास्तव मे इस क्षेत्र मे भगवान शिव के अद्भुत सिद्ध मंदिर का निर्माण और वहाँ भगवान की शिवलिंग रूप मे स्थापना नर और नारायण ने ही करवाया था ।

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