प्राचीन काल से ही हमारे देश भारत के ऋषि- मुनियों ने जड़ी -बूटियों द्वारा मनुष्य के उपचार के लिए अनेक शोध कार्य किये। इसीलिये वह खुद भी हिमालय की तलहटी में रहते थे। जहाँ वह पर्वतों, वनो और जंगलों में स्वयं अनेक रोगों के निदान के लिए जड़ी-बूटियाँ खोजा करते थे।
लेकिन समय के साथ-साथ मनुष्य इन पौधों की महत्ता को भूलता गया। लेकिन आज फिर लोगों में जागरूकता बढ़ी है। लोग गिलोय, पपीते, तुलसी, एलोवेरा आदि के पौधों की गुणवत्ता को पहचानने लगे हैं। क्या आपको पता है कि एक ऐसा जंगली पौधा भी है जो पक्षाघात अर्थात लकवा जैसे गंभीर रोग को भी दूर कर देता है। कमाल की बात यह है कि यह गुणों से बहुमूल्य पौधा आपके घर के आसपास ही उपलब्ध है।
क्या है पौधे का नाम
यह जंगली पौधा है लटजीरा। जो मैंदानों, पार्कों तथा सड़क के किनारे आसानी से मिल जाता है। इस पौधे को अपामार्ग भी कहा जाता है। यह पौधा स्वयं धरती पर उगाता है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘अचिरांथिस अस्पेरा’ (ACHYRANTHES ASPERA) है। इसे ‘चिरचिटा’, ‘लटजीरा’, ‘चिरचिरा ‘ आदि नामों से जाना जाता है। इसे लहचिचरा भी कहा जाता है। कहीं-कहीं इसे कुकुरघास भी कहा जाता है। लटजीरा का यह पौधा लकवा ग्रस्त मरीजों के इलाज के लिए पूरी तरह सक्षम है। लटजीरा के पौधे के द्वारा पक्षाघात से पीड़ित व्यक्ति का उपचार कठिन नहीं है क्योंकि इस पौधे का रस लकवे क़े गंभीर से गंभीर रोगियों को चुटकियों में चंगा कर देता है।
औषिधीय गुण
इसे वज्र दन्ती भी कहते हैं। इसकी जड़ से दातून करने से दांतों की जड़ें मजबूत और दाँत मोती की तरह चमकते हैं। बिच्छू के काटने पर एक कटोरी में ५० ग्राम लाही के तेल को उबलते हैं और उस उबलते हुए तेल में लटजीरा के पौधे को उखाड़ कर और उसका रस निचोड़ कर डालते हैं, इससे जो वाष्प निकलती है उसमें बिच्छू से कटे हुए भाग की सिंकाई करने से शीघ्र लाभ होता है।
आयुर्वेद के जानकर दीपक कुमार जी ने मुझे इस लटजीरा के पौधे के बारे में बताया। उन्होंने साथ में वह किस्सा भी सुनाया कि किस प्रकार उन्होंने अपने गाँव के एक लकवाग्रस्त व्यक्ति को ठीक कर दिया। उन्होंने बताया कि वह उस दिन अपने रायबरेली स्थित गांव में पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनके पड़ोसी राघव जी के पिताजी को आज सुबह लकवे का असर हो गया है।
पौधे ने चमत्कारी असर दिखाया
कुछ लोग शहर से डॉक्टर को लाने चले गये थे। राघव के पिताजी की खराब तबीयत सुनकर वह भी उन्हें देखने चला गये। उनकी स्थिति देखकर दीपक जी ने लटजीरा के पौधे के द्वारा उनका उपचार करने के बारे में सोचा। उस घर के बड़े बच्चों से दीपक जी ने कहा कि वह घर के बाहर से लटजीरा का पौधा उखाड़ लायें। लेकिन शर्त यह है कि वह पौधा जड़ सहित उखड़े।
बच्चों ने दीपक जी की बात सुनी और लटजीरा का पौधा लेने निकल गये। कुछ समय पश्चात वे लटजीरा का पौधा लेकर वापस आये। दीपक जी ने पौधा वही रखवा दिया। उस जंगली जैसे पौधे ने उपचार के लिए काम करना शुरू कर दिया था। सबसे पहले मैंने लटजीरा के उस पौधै को खूब अच्छी तरह से धोया ताकि उसकी मिट्टी और गंदगी पौधे से दूर हो जाये।
इसके बाद मैंने उस के पौधे के तीन हिस्से किये और फिर उसे सिलबट्टे पर पीसने लगा ताकि उसका रस निकाला जा सके। रस निकालने के बाद मैंने एक-एक बूंद लकवे से प्रभावित व्यक्ति के नाक में टपकायी। फिर उस पूरे रस का एक तिहाई भाग उन्हें पीने को दिया।
इस प्रकार मरीज, लटजीरा से उपचार की प्रथम डोज़ प्राप्त कर चुका था। उसके बाद राघव के पिता जी को लटजीरा का बचा हुआ रस तड़के सुबह दिया गया। दवा अपना असर दिखाने लगी शाम को राघव के पिता जी स्वयं चलकर वॉशरूम जाने के लिए तैयार हो गये अर्थात उनके बेकार हो चुके अंग फिर से काम करने लगे थे।