लगभग सभी हिंदू घरों में यदि परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो मृत्यु सूतक का समय माना जाता है जिसके दौरान शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है। मृत्यु सूतक की इस अवधि के दौरान परिवार का कोई भी सदस्य बाहरी लोगों से नहीं मिलता है और ना ही किसी पूजा-पाठ में शामिल होता है।
एक बहुत बड़ा प्रश्न जो अक्सर ही लोगों को विचलित करता है वह ये है कि मृत्यु सूतक के दौरान उपवास किया जाना चाहिए या नहीं। जब भी किसी विषय में संशय हो तो हमें समय की कसौटी पर खरे उतरे दिव्य ज्ञान के भंडार प्राचीन शास्त्रों में बताए गए मार्गदर्शन को समझना चाहिए और उसका पालन करना चाहिए, आइए समझ लें कि इस विषय में शास्त्र क्या कहते हैं।
मृत्यु सूतक के नियम
हिंदू धर्म में सुख, दुःख, उत्सव जैसे हर एक अवसर पर कुछ नियमों और रीति-रिवाज़ों का पालन कर के उचित भावना के साथ संस्कारों को निभाया जाता है। परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होने पर भी कुछ दिनों तक शोक मनाने का रिवाज़ रहता है, जिसे मृत्यु सूतक कहते हैं और आमतौर पर यह 12 से 13 दिनों तक चलता है।
इस अवधि के दौरान, वातावरण को शुद्ध करने और मृतक की जीवात्मा की शांति के लिए कुछ पवित्र नदी के किनारे अनुष्ठान, घर में शांति पाठ, इत्यादि किए जाते हैं। चूंकि ऐसे माहौल में पूजा-पाठ और शुभ कर्म नहीं किए जाते तो इसलिए ऐसे दुःख के माहौल में आम तौर पर व्रत करना भी ठीक नहीं माना जाता है।
आप वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो पायेंगे कि हमारे ऋषि-मुनियों ने यह परंपरा कितनी व्यावहारिक और सही आधार पर निर्धारित की थी। इससे बेहतर प्राचीन काल से चली आ रही वैज्ञानिक, व्यावहारिक और चिकित्सकीय रूप से बिल्कुल सही परंपरा का उदहारण नहीं मिल सकता।
इन लगभग 2 हफ़्तों तक मृत्यु वाले घर में पूजा-पाठ जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते, साथ ही शोक के माहौल के कारण घर में कोई स्वादिष्ट खाना ना बना कर सिर्फ उबला खाना खाया जाता है जो स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक होता है।
मृत्यु सूतक कितनी पीढ़ी तक लगता है
मृत्यु के बाद होने वाले रीति-रिवाजों को गरुड़ पुराण में विस्तार से बताया गया है। उसमें वर्णित है कि मृत्यु सूतक मृतक के पैतृक वंश की तीन पीढ़ियों तक लागू होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि मृतक के बच्चों, पोते-पोतियों और परपोते–परपोतियों को जो मृतक के निकटतम रिश्तेदार थे, उन सब को सूतक काल में सूतक के नियमों का पालन करना चाहिए।
आजकल पंडित जी लोग हर रीति-रिवाज की विस्तृत प्रक्रिया को छोटा कर के लघु रूप में करा देते हैं, आजकल की तेज़ भागती-दौड़ती जिंदगी में समय के अभाव में व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो यह सही भी है।
समय और देशकाल के अनुसार कर्त्तव्य बदल जाते हैं। बदली हुई परिस्थितियों जैसे नौकरी या व्यापार से जुड़ी रोजी-रोटी की व्यस्तताओं, छात्रों का अपनी पढ़ाई पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत, इत्यादि जैसे अनिवार्य कार्यों के कारण शहरों में सूतक के नियमों का पालन परिवार के कुछ ही लोग कर पाते हैं, यही युगधर्म है और सही भी है।
मृत्यु के कितने दिन बाद शुभ कार्य करना चाहिए?
वैसे तो जन्म और मृत्यु के नियम अभी भी लगभग सभी हिंदू परिवारों में पालन किए जाते हैं परंतु पिछले 15-20 सालों में इसकी अवधि और परिवार के कितने लोग इसका पालन करेंगे, यह विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके से किया जाने लगा है।
पिछली पीढ़ी के लोगों में इन नियमों के प्रति अधिक प्रतिबद्धता थी। इन रीति-रिवाजों के प्रति श्रद्धा तो अभी भी सभी रखते ही हैं परंतु नौकरीपेशा लोगों को, विशेषकर कि शहरी क्षेत्रों में जल्दी काम पर वापस जाना पड़ता है क्योंकि 10-12 दिनों की छुट्टी आजकल किसी भी नौकरी में मिल नहीं पाती। ग्रामीण इलाकों में शहरों के लोगों की तुलना में अभी भी इन नियमों का अधिक कड़ाई से पालन किया जाता है।
यदि समय का अभाव ना हो तो जो 12 दिन की सूतक अवधि शास्त्रों में बताई गयी है, उतने दिनों के लिए सूतक नियमों का पालन अवश्य किया जाना चाहिए। पहले के दिनों में संयुक्त परिवार में ऐसा हो पाना आसान था परंतु अब जब अगली पीढ़ी के लोग शादी कर के अलग रहने लगते हैं और दो-तीन दिनों की ही छुट्टी मिल पाती है तो इन परिस्थितियों में जो भी संभव हो पाए वह करें। जब भी आवश्यक हो, आप अपने क्षेत्र में किसी विद्वान पंडित से संपर्क कर के उनकी सलाह के अनुसार विधि-विधान से सूतक के संस्कारों को पूरा करें।
सूतक समय समाप्त होने और घर के लोगों के संभल जाने के बाद, परिवार के लोग धीरे-धीरे शुभ कार्यों में शामिल होने सहित अपनी सभी दैनिक गतिविधियों को फिर से शुरू कर सकते हैं। आम तौर पर व्रत करना शुभ कार्य माना जाता है जिसकी मृत्यु सूतक काल में मनाही रहती है, इसलिए इस काल में व्रत ना करें और कुछ दिनों बाद सूतक अवधि समाप्त होने के बाद आप व्रत, पूजा-पाठ जैसे शुभ कार्य फिर से शुरू कर सकते हैं।