घर का मंदिर वह स्थान होता है जहाँ हमें सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इसीलिए समय-समय पर हमारे वास्तु पंडित इस संबंध में शोध कार्य करते हुए हमें सीधा और सच्चा परामर्श देते रहते हैं। अपने घर में मंदिर बनाते समय हमें इस बात का ध्यान अवश्य देना चाहिए कि उस मंदिर में क्या रखा जाए और क्या नहीं ।
उदाहरण के लिए प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित रामकृष्ण शर्मा पूजा स्थल पर अपने माता-पिता या अन्य संबंधियों की तस्वीरों को रखना पूर्णतया वर्जित मानते हैं। हमें इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि हमारे घर के मंदिर में ऐसी कौन-कौन सी वस्तुएं हैं जो पॉजिटिव एनर्जी देती हैं।
इसके विपरीत ऐसी कौन सी वस्तुएं हैं जो हमें नकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं। इसी तरह लोगों के मन में कभी-कभी यह जिज्ञासा रहती है कि घर के मंदिर में माचिस रखना ठीक है अथवा नहीं? इस संबंध में आज हम ज्योतिष शास्त्र में जांच- पड़ताल करेंगे कि किसी भी ज्वलनशील वस्तु का घर के मंदिर में रखना कितना उचित है और कितना अनुचित?
आइए पहले हम थोड़ा यह विचार करते हैं कि हमारे घर के मंदिर में मुख्य रूप से कौन-कौन सी चीजें होती है । किसी भी घर के मंदिर में मुख्य रूप से देवी और देवताओं की तस्वीरें या मूर्तियां, नीचे बिछा हुआ पीला या लाल वस्त्र, आरती जलाने के लिए दीपक, धूपबत्ती, हवन सामग्री, शंख, घंटी, गंगा जल, कलश, पुष्प एवं आरती से संबंधित धार्मिक पुस्तकें आदि होती हैं।
घर के मंदिर में मूर्ति हों या तस्वीरें
घर के मंदिर में पूजा के लिए मूर्तियां रखी जाए या तस्वीरें, इस संबंध में ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि आप अपने इष्ट देवता की मूर्ति अथवा तस्वीर किसी एक को रख सकते हैं। लेकिन उनकी संख्या अधिक नहीं होनी चाहिए। साथ ही उन तस्वीरों या मूर्तियों की ऊंचाई चार-पाँच इंच से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
जहां तक घर के मंदिर में शिवलिंग रखने का प्रश्न है तो सामान्यतः घर के मंदिर में 2 इंच से बड़ा शिवलिंग नहीं रखना चाहिए। यदि आपको अपने घर के मंदिर में बजरंगबली हनुमान जी की मूर्ति रखनी है तो बाजार से खरीदकर ऐसी मूर्ति लाइए जो बैठी हुई आशीर्वाद देती हुई हो।
घर के मंदिर में रखी जाने वाली देवी -देवताओं की मूर्तियां या तस्वीरों के मुख प्रसन्नचित्त होने चाहिए। घर के मंदिर में शनिदेव और भैरव जी की मूर्तियाँ रखा जाना पूर्णतया वर्जित है। मंदिर में जो भी मूर्ति या तस्वीरें रखी जाए उनके बीच में आपस में कुछ दूरी अवश्य होनी चाहिए। किसी एक देवता की यदि एक ही मूर्ति या तस्वीर हो तो ठीक रहता है ।
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घर में कौन–कौन सी मूर्तियाँ होनी चाहिए?
हिन्दू धर्म में प्राचीन काल से माना जाता रहा है कि हमारे सामने यदि हमारे आराध्य की एक छवि हो तो हम ज़्यादा अच्छे तरीके से ध्यान और प्रार्थना कर सकते हैं, जो कि मनोवैज्ञानिक रूप से देखें तो बहुत ही प्रामाणिक बात है। देवों की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा करना ऐसा ही एक संबल है।
यदि हम शास्त्र-सम्मत नियमों का पालन करके अपने घर में भगवान की मूर्ति की सही तरीके से उपासना करें तो निश्चित रूप से हम अपने जीवन में शाँति और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। हम यहाँ आपके लिए तथ्यों पर आधारित जानकारी दे रहे हैं, जिससे आप सही तरीके से अपने घर में देव प्रतिमा लगा कर पूजा कर सकें।
पूजा कमरे में किन देवों की मूर्तियाँ लगायें?
हमारे प्राचीन हिन्दू शास्त्रों में पाँच देवों की प्रतिमा पूजा बतायी गयी है। पहले हैं सूर्य देव, जिनकी आम तौर पर बहुत कम घरों में उपासना के लिए मूर्ति लगी पायी जाती है। दूसरे हैं गणपति, तीसरे हैं भगवान विष्णु, चौथी हैं माँ पार्वती और पांचवें देव हैं भोले बाबा यानी भगवान शंकर।
प्राचीन शास्त्रानुसार, इन पाँच देवताओं के अलावा किसी भी अन्य देवता की मूर्ति घर के पूजाघर में नहीं रखनी चाहिए और इन पाँच देवताओं का (या इनमे से किसी एक का, जो आपके आराध्य हों) हमें प्रतिदिन ध्यान और पूजा आराधना करनी चाहिए।
पूजाघर में मूर्तियाँ किस आकार–प्रकार की हों?
शास्त्रों में यह भी वर्णित है कि पूजा घर में देवी-देवताओं की प्रतिमायें हमारे अंगूठे से बड़ी नहीं होनी चाहिए। यदि इससे बड़ी मूर्तियाँ हम रखते हैं तो उनकी प्राण-प्रतिष्ठा करानी चाहिए और उनकी विशेष पूजा के नियमों का पालन करना चाहिए।
हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम भगवान की सौम्य मुस्कराहट वाली ही मूर्तियाँ ही अपने घर में रखें और वो मूर्तियाँ सुन्दर एवं अखंडित हों। देव प्रतिमा पर छायी सौम्यता और तेज वहाँ उपस्थित सभी लोगों पर प्रभाव डालता है और वातावरण को शुद्ध करता है जिससे सभी के अंदर सकारात्मकता आती है।
देव प्रतिमा लगाते वक्त ध्यान रखने योग्य बातें
हमें किसी भी देवता की टूटी चिटकी मूर्ति या कटे-फटे धुंधले चित्र भी नहीं लगाने चाहिए। ऐसा करने पर पारिवारिक कलह बनी रहती है और आर्थिक नुकसान भी होते हैं। इसी प्रकार से घर में कभी भी भगवान की रौद्र रूप वाली मूर्तियाँ या चित्र नहीं लगाने चाहिए, इससे नकारात्मकता आती है।
इसके लिए एक तर्कपूर्ण बात यह है कि भगवान का रौद्र रूप बुरी शक्तियों और दैत्यों के लिए था और आप इनमें से नहीं हैं। प्रचलित मान्यताओं की मानें तो इन्हीं कारणों से घर में भैरव बाबा, नटराज भगवान और शनि देव की मूर्ति भी ना लगायें और इनका दर्शन बाहर के मंदिरों में ही करें, क्योंकि ये भगवान के रौद्र रूप माने जाते हैं।
इसके साथ ही हमें एक और महत्वपूर्ण बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जो भी मूर्ति लगायें वह खोखली ना हो अन्यथा ऐसी मान्यता है कि घर में लक्ष्मी जी वास नहीं करेंगी। अंतिम परंतु अति महत्वपूर्ण बात, घर के मंदिर में हमें एक देवता का एक ही स्वरुप रखना चाहिए।
कभी भी अधिक मूर्तियाँ, विशेषकर कि गणेश जी की तीन मूर्तियाँ, दो शिवलिंग, दो शँख, दो सूर्य प्रतिमायें और देवी की तीन मूर्तियाँ रखने से बचें क्योंकि इन देवों की इन संख्याओं की मूर्तियाँ लगाना अशुभ माना जाता है। गहन अध्ययन से निकाली गयी देव प्रतिमाओं के बारे में इस जानकारी का लाभ उठायें और उचित तरीके से घर में अपने ईश्वर की उपासना संपन्न करें, जिससे आपको आपकी पूजा का मनोवांछित फल मिले।
भगवान की मूर्ति किस धातु की होनी चाहिए
भगवान की मूर्ति का स्वरुप ऋषि मुनियों ने ध्यान और तपस्या से मिली सिद्धियों से प्राप्त किया और मानव जाति को इसका ज्ञान दिया, परन्तु समय के साथ शास्त्रों में मौजूद यह प्राचीन ज्ञान अपनी शुद्ध अवस्था में नहीं रह गया और अलग-अलग लोग अपने-अपने तरीके से भगवान की मूर्ति को पूजते हैं।
आइए समझते हैं कि भगवान की मूर्ति किस धातु की हो इस बारे में शास्त्रों में क्या वर्णित है, जिसके बारे में हमने बहुत गहन अध्ययन करके आपके लिए जानकारी निकाली है।
आपके आराध्य की मूर्ति किस प्रकार की होनी चाहिए?
वैसे तो श्रद्धा और प्रेम से आप जिस भी तरीके से प्रभु की भक्ति करें, वो सब स्वीकार करते हैं परन्तु शास्त्रों के अनुसार, भगवान की मूर्ति 8 प्रकार की हो सकती हैं – लकड़ी की, पत्थर की, चित्र रूप में, मन में (भावों के भूखे भगवान मन में बनाई प्रतिमा भी स्वीकार करते हैं और यदि आप बिना मन भटके ध्यान लगाने में सक्षम हों तो ये सभी मूर्तियों में सर्वोत्तम भी है), मिट्टी या बालू की, माणिक्य (मणियों से सुसज्जित) से सजी हुई और चन्दन या अन्य सुगन्धित पवित्र लेप से बनी हुई मूर्ति।
प्राचीन काल से जो चलन है, उसके अनुसार लकड़ी, पत्थर, सोने, चांदी या पीतल जैसी धातुओं की मूर्तियां ही घर में रखनी चाहिए। वैसे धातु की मूर्तियां मंहगी होने के कारण आजकल पत्थर की मूर्तियों को भी बहुत से लोग घर में पूजा के लिए रखते हैं, जैसे संगमरमर, प्लास्टर ऑफ़ पेरिस और ग्रेनाइट की मूर्तियां।
उदहारण के लिए, अगर हम माध्यम वर्गीय लोगों की बात करें तो दक्षिणी भारत में आप लोगों के पूजा घरों में ज़्यादातर काले ग्रेनाइट की मूर्तियां देखेंगे जबकि उत्तर भारत में पूजा के लिए अधिकतर मूर्तियां आपको सफेद संगमरमर की दिखेंगी।
प्रभु की मूर्ति किस धातु की सर्वोत्तम होती है?
भगवान की पूजा के लिए बनायी जाने वाली सभी प्रकार की मूर्तियों में से सबसे अधिक, धातु की मूर्तियों को घर में पूजने का चलन शायद इसलिए ज़्यादा हुआ क्योंकि अन्य प्रकार की मूर्तियों की तुलना में ये जल्दी ख़राब नहीं होतीं। आम तौर पर धातुओं की मूर्तियों में सबसे ज़्यादा पीतल (तांबे और जस्ते से बनी एक मिश्र धातु) की मूर्ति पूजा के लिए व्यापक रूप से उपयोग की जाती है।
ऐसा शायद इसलिए है कि सोने और चांदी के मुकाबले पीतल सस्ता होता है। ध्यान रखें कि घर के मंदिर में हमें चीनी मिटटी की, प्लास्टिक की और प्लास्टर ऑफ़ पेरिस आदि की मूर्तियाँ नहीं लगानी चाहिए जो कि शुभ नहीं मानी जाती हैं, शायद इसलिए कि ये शुद्ध तत्व नहीं हैं और ऐसा करने से घर में नकारात्मकता आती है।
मनुष्य को अपने सामने एक ध्येय या एक संबल चाहिए होता है आराधना करने के लिए और गुणों के आधार पर हमारे देवी-देवता निरूपित किये गए हैं। आप जीवन में जिस गुण को अपने अंदर लाना चाहते हैं, उन गुणों वाले देवता की आप आराधना करें और मूर्ति पर ध्यान लगा कर आप उस देवता की ज़्यादा अच्छी पूजा आराधना कर पायेंगे जिनकी पूजा आप कर रहे हैं। कितनी वैज्ञानिक बात है और ये जिसके मन में श्रद्धा हो उसी को समझ में आ सकती है, जैसी की एक प्राचीन कहावत भी है कि मानो तो देवता नहीं तो पत्थर।
घर के मंदिर की दिशा उत्तर हो या पूर्व
जब आप घर में अपने इष्ट देवता का मंदिर स्थापित कर रहे हैं तो इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि आपके घर के मंदिर की दिशा कौनसी है ? ज्योतिष विशेषज्ञ राधा जी दीक्षित कहती है कि वैसे तो भगवान हर जगह हैं। ईश्वर किसी दिशा के मोहताज नहीं हैं।
भक्त जिस दिशा में भी सच्चे मन से उन्हें स्मरण करेगा, तो वह भी निश्चित ही अपनी कृपा बरसायेंगे । लेकिन जहां तक घर के मंदिर की दिशा का प्रश्न है तो पूर्व या उत्तर दिशा सर्वाधिक उचित है। क्योंकि ऐसा माना जाता है यह दिशाएं वे होती है जहाँ देवताओं का वास होता है।
घर का मंदिर कहाँ हो
आपके घर का मंदिर वॉशरूम या शौचालय से दूरी पर होना चाहिए। अपने घर का पूजा स्थल ऐसे स्थान पर कदापि न बनायें जहाँ पास में वॉशरूम हो, क्योंकि वॉशरूम या शौचालय नकारात्मक ऊर्जा का क्षेत्र है और पूजा स्थल सकारात्मकता का स्थान ।
अगर ऐसे में आप पूजा का स्थान यदि वाशरूम या शौचालय के आसपास बनाएंगे तो वहाँ की निगेटिव एनर्जी आपको प्रभावित करेगी। जिसके कारण आपको पूजा का लाभ नहीं मिल सकेगा। घर का मंदिर लेटने अथवा बैठने की जगह से नीचे नहीं होना चाहिए।
घर के मंदिर के संबंध में यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है। जहाँ तक हो सके घर का मंदिर आपके उठने- बैठने की जगह से ऊँचा होना चाहिए। क्यों कि सभी देवी देवता का स्थान हम सबसे ऊंचा है। यदि घर में पूजा के स्थान के लिए एक अलग ही कमरा दिया जाए तो सर्वाधिक उचित है। पूजा स्थल को शयन कक्ष में बनाना पूर्णतया वर्जित है।
घर के मंदिर में वस्तुएं व्यवस्थित होनी चाहिए
घर के मंदिर में कभी भी बिखरा हुआ सामान नहीं होना चाहिए। देवी- देवताओं की मूर्तियाँ, पूजा सामग्री एवं अन्य धार्मिक पुस्तकें आदि अपने-अपने स्थान पर रखी होनी चाहिए। कभी-कभी ऐसा देखा जाता है कि लोग लापरवाही में पूजा स्थान पर वस्तुओं को बिखरा कर रखते हैं। ऐसी स्थितियां हमें प्रभु की कृपा पाने में बाधा उत्पन्न करती हैं। इसलिए प्रत्येक दिन पूजन आदि के पश्चात सभी सामग्रियों को व्यवस्थित रख देना चाहिए।
घर के मंदिर में बासी या अस्वच्छ वस्तुएं निगेटिव एनर्जी उत्पन्न करती हैं
घर के मंदिर में पूजा करने के बाद जली माचिस की तीली, मुरझाया हुआ फूल , जली हुई काली बाती हटा देना चाहिए। अपने पूजा स्थल को साफ सुथरा रखना चाहिए। घर के मंदिर में बिखरी और जली हुई माचिस की तीली नहीं होनी चाहिए। यदि दीपक जलाने के लिए आपने पूजा घर में माचिस रखनी ही है़ तो उसे किसी कागज या कपड़े में छिपाकर रखना चाहिए।
उसे सामने नहीं रखना चाहिए। दीपक जलाने के बाद बुझी हुई माचिस की तीली को इधर उधर नहीं फेंकना चाहिए बल्कि उसे डस्टबिन में डाल देना चाहिए । माचिस के स्थान पर आप अपने दीपक को जलाने के लिए लाइटर आदि का भी उपयोग कर सकते हैं । पूजा घर से मुरझाए हुए फूलों को अवश्य हटा देना चाहिए। क्योंकि यह मुरझाए हुए फूल आपके घर के मंदिर में नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं ।