युगों-युगों से इंसान दुनिया चलाने वाली किसी ना किसी शक्ति को मानता और उस के आगे झुकता आ रहा है। कोई उसे परवरदिगार कहता है, कोई गॉड और कोई ईश्वर परंतु ऐसा सभी धर्म मानते हैं कि कोई शक्ति है जो दुनिया चला रही है, सही ग़लत का हिसाब रख रही है और न्याय कर रही है।
वैसे तो अगर आपका दिल साफ़ है, भावनायें सच्ची हैं और कर्म सही हैं तो जो भी आप करते हैं, वो सब ही पूजा बनता जाता है परंतु इतना महान तो बहुत ही कम लोग हो पाते हैं। सीधी सरल बात यह है कि यदि आप सच्चे मन से उस दुनिया को चलाने वाली शक्ति को याद करेंगे, विनम्रता से धन्यवाद करेंगे और पूर्वजों, ज्ञानियों आदि द्वारा बताए गए तरीकों से उस शक्ति से जुड़ेंगे तो आपका मन शांत रहेगा, सुखी रहेगा और उसके फलस्वरूप अच्छे विचार आते रहेंगे, भावनायें सच्ची रहेंगी और आप इनकी प्रेरणा से अच्छे कर्म करते रहेंगे। आप देख सकते हैं कि यह सारी बातें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
आज हम यहाँ बात करेंगे कि हिन्दू धर्म में पूजा करने का सही तरीका क्या है।
रोज पूजा कैसे करें?
जैसे हर परिवार में घर के बड़ों ने बच्चों के लिए नियम बनाए होते हैं, उसी तरह यह दुनिया भी भगवान का एक घर है और सभी लोग दुनिया के एक बड़े परिवार में रह रहे हैं। यहाँ भी कुछ नियम हैं जो आपको मानने चाहिए जिससे आपका जीवन सुखी रहे और आप समृद्ध रहें। तो आइए समझते हैं, क्या हैं पूजा के नियम और आपको रोज़ अपने घर में पूजा कैसे करनी चाहिए।
बैठने के लिए साफ़–सुथरा आसन बिछायें
कई लोग सोचते हैं कि हमारा तो सरल स्वभाव है और हम तो ज़मीन पर बिना आसन के भी बैठ लेंगे परंतु नियम समझें तो पूजा में आसन बिछाना आवश्यक बताया गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ज़मीन ठंडी या गरम हो सकती है जिससे मन को एकाग्र रखने में मुश्किल होगी या कुछ चुभ सकता है और कीड़े-मकौड़े भी हो सकते हैं।
एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि विचार भी द्युति यानी बिजली की प्रकृति के माने गए हैं। जो भी सकारात्मक ऊर्जा हमारे अंदर पूजा के शुद्ध विचारों से आ रही है, वह ज़मीन के साथ जुड़ कर बैठने पर शरीर से पृथ्वी में चली जाती है जबकि उसको हमें अपने शरीर में और मन में कुछ समय रोकने की ज़रूरत होती है। यह भी ध्यान रखें कि आपका आसन साफ-सुथरा होने के साथ ही ऐसे कपडे का हो जो आपको गड़े ना, इसके लिए खादी या सूती कपड़ा हो तो बेहतर रहेगा।
पूजा पाठ करने से क्या फल मिलता है
रीति-रिवाज़ों का महत्त्व है, परंतु उस से भी अधिक महत्त्व भगवान के प्रति भक्ति भावना का है यानी कि आप कैसी श्रद्धा रखते हैं। वैसे तो हिन्दू धर्म में सगुण भक्ति भी बताई गयी है पर उसका अर्थ ये नहीं है कि भगवान से आप अपना स्वार्थ पूरा कराने के लिए पूजा करें।
लालच मन में रख कर अच्छी पूजा हो ही नहीं सकती, इसलिए शुद्ध, सरल और सात्विक विचारों से ही की हुई पूजा भगवान को स्वीकार्य होती है। आप सोचिए, हम पैदा होते हैं, जीवन की उलझनों में पड़ कर पैसे कमाने की जुगत में कुछ अच्छे-बुरे काम कर के बुड्ढे या बीमार हो कर मर जाते हैं, क्या मिल गया?
वो कहते हैं ना – ज़िंदगी भर फुर्सत ना मिलेगी काम से, कुछ समय ऐसा निकालो प्रेम कर लो श्री राम से! कम से कम इससे आपका मन शांत और एकाग्र तो होगा जिससे आप की आत्मा फिर से कई अच्छे काम करने के लिए तरो-ताज़ा हो जाएगी यानी ये समझ लीजिए कि आपका पूजा रूम आपकी आत्मा और आपके अंतर्मन का चार्जिंग पॉइंट है।
कितनी देर तक पूजा करें – छोटी या बड़ी पूजा?
आजकल की व्यस्त ज़िंदगी में हर किसी के पास अलग-अलग समय होता है, तो उपलब्ध समय के अनुसार आप अधिक या कम पूजा कर लें। यदि शुद्ध अंतःकरण से आपने सेकंड के सौवें हिस्से में भी पूरी भक्ति भावना से अपने भगवान को पुकारा तो वो भी बिना भावना की सिर्फ रस्म पूरा करने के लिए की गयी घंटों की पूजा से बेहतर है।
सरल पूजा विधि
हर देवता की पूजा विधि और नियम अलग हैं, उनका ध्यान रखें और सही समय पर मंत्र पढ़ें या जाप करें। जो सरल है, वही सबसे अच्छी विधि है। तो आइए, एक-एक करके समझते हैं कि किस तरह से शुरुआत कर के आप अपनी रोज़ की पूजा संपन्न करें।
पूजा करते समय क्या बोलना चाहिए, शुद्धिकरण मंत्र
वैसे तो अनेक देवी-देवता हैं और उनके अलग-अलग मंत्र हैं पर कोई भी मंत्र पढ़ने से पहले आत्म-शुद्धिकरण बहुत ज़रूरी है, जिसे पवित्रीकरण भी कहते हैं। आप चाहे नहा-धो कर शरीर शुद्ध कर के आए हों तो भी मंत्र से शुद्धि आवश्यक है।
हाँथ-पैर धो कर आप जल की कुछ बूँदें छोटे चम्मच (आचमनी) से लेकर हथेली पर रखें और यह मंत्र पढ़ कर अपने ऊपर छिड़क लें या पी जायें – ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाभ्यांतरः शुचि:।।
इस मंत्र का अर्थ है – कोई भी मनुष्य जो चाहे पवित्र हो या अपवित्र, किसी भी स्थिति में हो, जो भी भगवान पुण्डरीकाक्ष (यानी भगवान विष्णु) का स्मरण करता है, वह बाहर से और भीतर से पवित्र हो जाता है। यह आप गंगा जल से करें तो और भी बेहतर रहेगा।
किसी भी पूजा की शुरुआत में करें गणेश जी की पूजा
पवित्रीकरण के बाद धूपबत्ती (शुद्ध घी और जड़ी-बूटी की बनी हो तो बेहतर) जला लें जिससे सकारात्मक ऊर्जा चारों ओर फैलती है। पूजा के शुरु में गणेश जी की आराधना करें। गणेश जी की प्रतिमा के वस्त्र हटा कर मूर्ति पर जल से अभिषेक करें और विचार करें कि आप गणेश जी के चरण धो रहे हैं।
उसके बाद साफ़ कपड़े से मूर्ति को पोंछ कर उनको नए (या धुले) वस्त्र पहनायें। अब गणेश जी को उनकी अति प्रिय दूर्वा (दूब) घास अर्पित करें। अगर आप बहुत जल्दी में हैं और किसी विशेष देवता की ही मुख्य पूजा करना चाहते हैं यानी गणेश जी की विस्तृत पूजा करने का समय ना हो तो भी किसी और देवता की पूजा से पहले गणेश जी को मन ही मन नमन ज़रूर करें।
किसी भी पूजा को सफल बनाने के लिए भगवान शिव के बनाए एक नियम के अनुसार सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है।
किस देवता की पूजा करें?
शास्त्रों के अनुसार, हिन्दू धर्म में कुल 33 करोड़ देवी-देवता माने गए हैं और उनके अलग-अलग आध्यात्मिक महत्त्व हैं परंतु आप मुख्य रूप से अपने कुल देवता और इष्ट देवता की पूजा ज़रूर करें। आपके कुल देवता वो होंगे जिनकी पूजा आपके खानदान में हमेशा से होती चली आ रही है।
आपके कुल देवता कौन हैं, ये आपके घर के बड़े-बूढ़ों को ज़रूर पता होगा, इससे आपको अपने पूर्वजों द्वारा की गयी पूजाओं का भी आशीर्वाद मिलेगा। आप अपने कुल देवता की चालीसा पाठ या मंत्र जाप (सुनिश्चित करें कि उच्चारण सही हो, नहीं तो मंत्र से लाभ की बजाय नुकसान भी होता है) कर सकते हैं।
आपने शिवलिंग घर में रखा है तो शिवलिंग पर जल ज़रूर अर्पित करें, गंगा जल से करें तो और भी बेहतर रहेगा। भगवान शिव के विशेष त्योहारों पर बड़े स्तर पर शास्त्र सम्मत विधि से अलग-अलग पदार्थों जैसे दही, शहद, इत्यादि से रुद्राभिषेक भी करा सकते हैं।
ईश्वर के जिस स्वरुप यानी जिस देवता की तरफ आपको विशेष आकर्षण हो, वही आपके ईष्ट देव हैं। कुल देवता की ही तरह उनकी भी आप विशेष पूजा कर सकते हैं। समय है तो आप बजरंग बली जी का चालीसा पाठ, बजरंग बाण इत्यादि भी पढ़ें क्योंकि वही आपकी कोशिशों के रथ के ऊपर बैठ कर आपको ज़िंदगी के युद्ध में विजय दिलाने वाले देवता हैं, जैसे उन्होंने महाभारत में अर्जुन के रथ पर बैठ कर उनके रथ की रक्षा की थी।
अंत में किस विधि से पूजा संपन्न करें?
जल से अभिषेक, चालीसा पाठ, मंत्र जाप इत्यादि करने के बाद अपने इष्ट देव या देवी माँ की आरती अवश्य करें। आरती और स्तुति गा कर, साथ में घंटी बजाने से आपके आस-पास का वातावरण बहुत शुद्ध और सकारात्मक हो जाता है।
आरती के बाद पूजा का समापन करने के लिए भगवान से क्षमा प्रार्थना ज़रूर पढ़ें, जो आपको दुर्गा शप्तशती के आखिरी पन्ने पर दिख जाएगी। इंसान कभी भी कितना भी अच्छा हो पर इतना परफैक्ट नहीं हो सकता कि ग़लती ना हो और ये भगवान के प्रति सही तरीके की विनम्रता और श्रद्धा का भाव होता है, इसलिए पूजा समाप्त करते समय भगवान से क्षमा प्रार्थना करना ज़रूरी है।
कब–कब पूजा ना करें?
महिलाओं को मासिक धर्म होने वाले कुछ दिनों में पूजा से दूर रहना चाहिए और मंदिर भी नहीं जाना चाहिए। जन्म, मृत्यु एवं ग्रहण के समय में लगने वाले सूतक काल में भी अशुद्धि मानी जाती है और इन दिनों में भी घर में पूजा नहीं की जानी चाहिए। अगर आप किसी भी कारण से, चाहे बीमार भी क्यों ना हों, यदि नहीं नहा पा रहे हैं तो बिना शारीरिक शुद्धि के पूजा ना करें।
पूजा अगर आप इसलिए कर रहे हैं कि आपका मुश्किल वक़्त ख़त्म हो जाए और किस्मत आप पर मेहरबान हो जाए तो यह बहुत ग़लत होगा। पूजा मन की शांति और सही तरीके से जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन और प्रेरणा पाने के लिए करिए, फिर देखिए उससे आप में मुश्किल वक़्त का बेहतर सामना करने की ताकत अपने आप आएगी और आप जीवन में अवश्य सफल होंगे।