क्या आपको मालूम है कि जब आप ‘ॐ नमः शिवाय’ बोलते हैं तो आप पूरे ब्रम्हांड में सबसे पहले उत्पन्न होने वाले और प्राकृतिक रूप से चारों ओर गूँजने वाले अलौकिक स्वर या अनाहत नाद (जिसे ध्यान की उच्च अवस्था में ही सुना जा सकता है) के साथ एकाकार हो जाते हैं। उचित श्रद्धा और ज्ञान रखने वाले कई आध्यात्मिक वैज्ञानिकों ने इस रहस्यमय शिव मन्त्र के प्रभाव का अनुभव कर के इसके महत्व को स्वीकार किया है।
शिवलिंग को संसार का जनक माना जाता है और पुराणों में यह वर्णित है कि शिवलिंग में सम्पूर्ण देवता समाए हुए हैं। पुराणों के अनुसार, शिवलिंग का ना तो कोई आदि है और ना ही कोई अंत। प्राचीन शास्त्र लिंग पुराण में भी लिंग को प्रकाश स्तम्भ (pillar of light) बताया गया है। आइए आपको शिवलिंग और शिव जी से जुड़े कुछ पावन तथ्यों और रहस्यों के बारे में बताते हैं।
शिवलिंग क्या है?
यहाँ पर छोटी मानसिकता वाले स्तर पर लिंग का शाब्दिक अर्थ पुरुष का शिश्न ना सोच कर इसके महान आध्यात्मिक रूप को समझना चाहिए। संस्कृत भाषा का सही ज्ञान ना होने की वजह से कुछ दूसरे संप्रदाय के लोग सोशल मीडिया पर शिवलिंग का अर्थ पुरुष का शिश्न अंग समझ कर हिन्दू धर्म का मज़ाक उड़ाने जैसा नीच कार्य कर रहे हैं जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
हमको और आपको इसके सही दिव्य स्वरुप का ज्ञान ज़रूर होना चाहिए। जब आप मूल संस्कृत में, जहाँ से ये शब्द उत्पन्न हुआ है, इसका सही अर्थ समझेंगे तो कोई कन्फ्यूज़न नहीं होगा। संस्कृत में लिंग का अर्थ है चिह्न, प्रतीक अथवा लक्षण (यानि पहचान), इसलिए भले ही दूसरे सन्दर्भ में आम तौर पर लिंग को पुरुष के शरीर का भाग यानी शिश्न समझा जाता है, शिवलिंग के सन्दर्भ में यहाँ बात भगवान शिव के आध्यात्मिक प्रतीक के बारे में हो रही है।
शिवलिंग की वैज्ञानिकता
ये तो कोई साधारण सा ज्ञान रखने वाला और विज्ञान को थोड़ा भी समझने वाला, जिसने शिवलिंग को पास जा कर देखा है, एक नज़र में बता देगा कि शिवलिंग के प्रभाव से वातावरण में सकारात्मकता आ जाती है। शिवलिंग के पास शिव भक्ति में डूब कर देखें तो मन स्वतः ही अच्छा हो जाता है और ध्यान एकाग्र होने लगता है।
यदि फिर भी श्रद्धा जागृत करने के लिए या कौतुहूलवश शिव शक्ति और शिवलिंग के बारे में कुछ और वैज्ञानिक आधार जानना चाहते हैं, तो हम लाए हैं आपके लिए कुछ ऐसे ही तथ्यों और तर्कों पर आधारित जानकारी।
न्यूक्लियर रिएक्टरों से समानतायें
न्यूक्लियर रिएक्टरों और शिवलिंग के आकार में समानतायें क्या संयोग मात्र ही हैं? नहीं, आप इसकी तर्कपूर्ण तरीके से व्याख्या कर के इसके वैज्ञानिक तथ्यों से जुड़े होने की सत्यता परख सकते हैं। शिवलिंग में रेडियोएक्टिविटी होने के कुछ प्रमाण पाए गए हैं और आगे भी इन पर रिसर्च चल रही है।
ये तो वही कहावत हो गयी कि हाँथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या। चलिए, आपको एक और बड़ा तथ्यपूर्ण प्रमाण देते हैं। आप भारत का रेडियोएक्टिव मैप देखिए, आजकल के मॉडर्न युग में तो हर चीज़ इंटरनेट पर सुलभ है, ये भी आपको आसानी से मिल जाएगा।
आप पाएंगे कि जहाँ-जहाँ न्यूक्लियर रिएक्टर हैं, वहाँ तो रेडियोएक्टिविटी अधिक होना स्वाभाविक है परंतु उन जगहों के अलावा जिन जगहों पर ज्योतिर्लिंग बने हैं, केवल उन्हीं जगहों पर रेडियोएक्टिविटी अधिक पाई गयी। इसीलिए, कई कारणों में से ये भी एक कारण है कि शिवलिंग पर लगातार जल अर्पित किया जाता है, जिससे उसको ठंडा रखा जा सके।
आगे ग़ौर करें तो पाएंगे कि भगवान भोलेनाथ के सभी चढ़ावे जैसे बेल का फल (बेलपत्र या बिल्व पत्र), धतूरा, इत्यादि जो उनको प्रिय माने जाते हैं, वो सभी बहुत ही सरल-साधारण, आसानी से उपलब्ध होने वाले और न्यूक्लियर एनर्जी शांत करने वाले पाए गए हैं।
ब्रम्हांड का शिवलिंग के समान अंडाकार आकार
नासा की WMAP टेक्नोलॉजी से मिले आंकड़ों का इस्तेमाल कर के वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए एक आकलन से पता चला है कि पृथ्वी तो अंडाकार है ही, पूरा ब्रम्हांड भी इसी अंडाकार आकर का होता है। साथ ही, उसको धारण करने वाली मिल्की वे (milky way) शिवलिंग के आधार वाली डिस्क के आकार की दिखती है और अगर आप उनके द्वारा दिखाए गए चित्र को पूरे शिवलिंग के आकार से मिलान करें तो बिल्कुल ठीक वैसा ही पायेंगे।
शिवलिंग के ऊपर साँप क्यों दिखता है?
अक्सर ही आपने देखा होगा कि शिवलिंग के ऊपर साँप ज़रूर दिखता है, इससे भी एक वैज्ञानिक तथ्य जुड़ा है। अब आप ग़ौर करें तो पायेंगे कि हमारे शरीर के अंदर जो डीएनए (DNA) का स्ट्रक्चर है, वो भी सर्पीले आकार का है। क्या ये संयोग है?
नहीं, क्योंकि हमारे महान युगदृष्टा सिद्ध ऋषियों ने हज़ारों साल पहले जब ये वैज्ञानिक नहीं थे, तभी बता दिया था कि हमारे शरीर में कुंडलिनी शक्ति बिल्कुल ठीक ऐसे ही सर्पीले आकार की होती है और अहम् ब्रम्हास्मि यानी हमारे शरीर के अंदर ही ब्रम्हांड है।
आध्यात्मिक स्तर पर समझेंगे तो आपको सब कुछ परत दर परत साफ़-साफ़ दिखेगा। ये सारे ही कांसेप्ट एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। जैसा कि अभी ऊपर वैज्ञानिक आधार पर हमने समझा कि शिवलिंग ब्रम्हांड का ही स्वरुप है और ये पूरा का पूरा ब्रम्हांड हमारे अंदर है, जिस पर ये सर्पीले आकार की शक्ति कुंडलिनी मार के बैठी है, तो उसी स्वरुप के कारण शिवलिंग पर भी सर्प दिखता है।
दुनिया की कई प्राचीन सभ्यताओं में होती थी शिवलिंग पूजा
प्राचीन भारतीय शास्त्रों में भरे ज्ञान की वजह से हर युग में दूसरे देशों में भी भारत से गए विद्वानों का सम्मान होता आया है। दुनिया भर में बौद्ध धर्म के प्रचार से पहले शिवलिंग के बारे में विश्व को पता चला होगा क्योंकि दूसरे देशों में भी प्राचीन काल के समय के शिवलिंग पाए गए हैं।
शिवलिंग की क्या कहानी है?
आप को यह जानकार सुखद आश्चर्य होगा कि शिवलिंग सिर्फ भारत, श्रीलंका, नेपाल, कंबोडिया और इंडोनेशिया जैसे भारतीय महाद्वीप के हिन्दू बहुल क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि कई यूरोपीय देशों में हुई खुदाई में भी पाए गए हैं। यूरोप में सबसे पुराना शिवलिंग इटली में खुदाई के दौरान मिला जहाँ इसको ‘प्रयापास’ के नाम से पूजा जाता था, जो कि प्रजापति का अपभ्रंश मालूम होता है क्योंकि शिव जी का एक नाम शिव प्रजापति भी है।
इसके अलावा इराक और मिडिल-ईस्ट की प्राचीन काल की सभ्यताओं वाली जगहों की खुदाई में भी शिवलिंग पाए जाने के प्रमाण मिल चुके हैं। आपको गर्व होगा यह जान कर कि हिन्दू धर्म के बहुत से महान प्राचीन तथ्यों की तरह मानव जाति का भला करने वाले शिवलिंग के ऐसे महान तथ्य वैज्ञानिक प्रमाणों से सत्यापित हैं और आगे भी इस के रहस्यों पर वैज्ञानिकों द्वारा गहन रिसर्च चल रही है।
शिवलिंग को और भगवान शिव के स्वरुप को श्री आदि शंकराचार्य के इस सूक्त से सबसे अच्छा समझ सकते हैं:
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् (जिसका अर्थ है, मैं सदा शुद्ध आनंदमय चेतना हूँ; मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ, सदा शुद्ध आनंदमय चेतना)।