सूतक का समय एक तरह का अशुद्धि का समय होता है जब परिवार के लोगों को कई प्रकार से संयम रखना होता है और किसी से भी बाहरी व्यक्ति से मिलने-जुलने की मनाही होती है। यह अशुद्धि का समय बच्चे के जन्म के बाद या फिर परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद लगता है। आइये जानें कि मृत्यु के बाद लगने वाला सूतक, जिसको पातक भी कहते हैं, कितने समय का होता है और उसके क्या-क्या नियम होते हैं।
सूतक कितने दिन का होता है?
अशुद्धि का यह समय घर के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद बारह से सोलह दिनों के लिए रोज़मर्रा के काम, बाहर के लोगों से मिलना-जुलना छोड़ने और कोई भी शुभ कार्य ना करने का समय होता है जिसे आम तौर पर अधिकतर हिन्दू लोग 13 दिनों के लिए मानते हैं।
यहाँ पर एक अपवाद ये है कि नौकरी या व्यवसाय की मजबूरी के कारण इतने ज़्यादा दिनों तक नहीं रख पा रहे हैं तो ऐसी विशेष परिस्थितियों में 10 दिनों का समय भी माना गया है जिसे बहुत से नौकरीपेशा लोग शुद्धि का समय मानते हैं और इसके बाद वापस से अपने दैनिक काम पहले की तरह करते हैं।
इन दोनों ही तरीकों में सूतक का समापन तेरहवीं के संस्कार के बाद पूरा हो जाता है जिसमें तेरहवें दिन पंडित जी से पूजा करवा कर अपने आस-पड़ोस के लोगों और रिश्ते-नातेदारों को भोज कराया जाता है। इसके बाद मरने वाले की आत्मा की शांति के लिए पूजा पाठ किया जाता है।
क्यों आवश्यक हैं सूतक के नियम?
समाज आज जिस दौर में है, उसमें बहुत सी भ्रामक बातें फैली हुई हैं। हमें इन सभी बातों और नियमों को व्यावहारिकता के साथ विवेक के भी धरातल पर परखना चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत। अगर आज के सन्दर्भ में देखें तो कोरोना महामारी से अच्छा उदहारण नहीं मिल सकता।
कोरोना से बचने के लिए जब भी कोई व्यक्ति किसी ऐसी जगह से आता है जहाँ यह बीमारी फैली हो या वो ख़ुद भी संक्रमित हो तो 14 दिन उसको अलग रखा जाता है। इतने दिन अलग रहने को सूतक का समय मानते हुए अगर हमारी संस्कृति में इसको प्राचीन काल से ही इसका पालन किया जा रहा है तो आप समझ सकते हैं कि दूरदर्शिता से ये नियम बनाये गए थे।
क्योंकि कई बार ये भी पता नहीं होता कि जिसकी मृत्यु हुई, क्या उसको कोई संक्रमण था। ऐसे में इतने ही दिनों के लिए उस परिवार को अलग रखना महज संयोग नहीं है, यह प्राचीन लोगों द्वारा समय की ज़रूरत के अनुसार सबको सुरक्षित रखने के लिए बहुत ही दूरदर्शी नियम बनाया गया जो आज के दौर में भी सही है। तब के लोगों ने आज के दौर जैसी आधुनिक तकनीक के बिना इतना सटीक नियम बनाया तो वो निश्चित रूप से तारीफ़ के क़ाबिल बात है।
सूतक में क्या नहीं करना चाहिए?
- यदि कोई भी व्यक्ति मृतक के घर में रहता है या वहाँ कुछ भी खाता है तो उसके लिए भी दस दिनों तक का सूतक काल माना जाता है, परंतु यदि वह व्यक्ति केवल किसी के शव को कंधा देकर वापस आ जाता है तो उसके लिए एक दिन का ही सूतक माना जायेगा।
- विवाहित स्त्री के माता-पिता की मृत्यु होने पर उस स्त्री के लिए तीन दिन का सूतक का समय माना गया है और ऐसे में उस स्त्री को कोई भी मांगलिक कार्य या सजना-संवरना इत्यादि नहीं करना चाहिए।
- किसी कारण से मृत्यु के दिन दाह-संस्कार न हो सके और अगले दिन हो तब भी मृत्यु वाले दिन से ही सूतक का समय माना जाता है।
- मृतक का दाह-संस्कार यदि सूर्य अस्त होने से पहले ही पूरा कर दिया जाए तो मृतक की शव यात्रा में शामिल होने वाले लोगों को सूर्य अस्त होने के बाद सूतक नहीं लगता।
- अगर सूतक काल के दौरान कोई त्यौहार पड़ जाए तो वो त्यौहार ना मनायें क्योंकि इतने दिन कोई भी मांगलिक कार्य या उत्सव वर्जित होता है।
सूतक का यह समय अलग रह कर शोक मनाने का होता है, इसलिए इस काल के दौरान घर में कोई भी मांगलिक कार्य ना करें, सादगी से रहें और ऐसे समय किसी भी तरह का उत्सव या पार्टी ना करें। इस तरह से सूतक के समय के नियमों को समझ कर सही तरीके से इनका पालन करें क्योंकि ये समय की कसौटी पर खरे उतरे वो नियम हैं जिनसे हमारी मानव जाति शुद्ध और सुरक्षित रह सकती है।