सोमनाथ मंदिर
भारत के हिंदू मंदिरों में सोमनाथ एक प्रमुख धाम है़। यदि हम इस मंदिर के नाम ‘सोमनाथ’ शब्द की व्याख्या करें तो हम देखेंगे कि सोमनाथ में दो शब्दों का समावेश है़ सोम और नाथ। ‘सोम’ जहाँ चंद्र का पर्याय है़ वहीं ‘नाथ’ का अर्थ यहाँ भगवान से है़।
कहने का तात्पर्य यह है कि जिस स्थान पर चंद्रदेव के भगवान निवास करते हैं उस स्थान को सोमनाथ धाम कहा जाता है़। ऐसा कहा जाता है़ कि इस सोमनाथ मंदिर की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी किया गया है। बताते हैं कि चंद्र देव ने भगवान शिव को कैलाश पर्वत से इस सागर के तट पर लाने के लिए एक भव्य शिव धाम का निर्माण किया।
यह मंदिर स्वर्ण-रजत आदि से निर्मित था। कहते हैं कि चंद्र देव ने अपने द्वारा स्थापित किये सोमनाथ धाम को इन्द्र की नगरी अलकापुरी के समतुल्य बनवाया। इस मंदिर का कोना-कोना बहुमूल्य सोने- चाँदी एवं अन्य अद्भुत रत्नों, मणियों एवं धातुओं से सुसज्जित था।
जब इस मंदिर का निर्माण हुआ तो पूरे विश्व मे यह अद्वितीय था। इस मंदिर की भव्यता को देखने से ऐसा लगता था कि मानो इस स्थान की संपत्ति के आगे कुबेर का खजाना भी फीका पड़ गया हो। कहते हैं कि इस पावन स्थान पर भगवान शिव ने चंद्रदेव को दर्शन दिये थे। आज भी सदियों पुराना यह पावन धाम अपनी नूतन आभा लिए विद्यमान है।
सोमनाथ मंदिर कहां है
“जहाँ शिव का संगीत है़। जहाँ चंद्र की प्रीत है़ और जहाँ भक्त व भगवान की रीति है़। वह सोमनाथ मंदिर हमारी आस्था की जीवंत प्रतीक है़”- काव्या नंदन
सोमनाथ धाम अपने देश के गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र मे समुद्र के किनारे बसा हुआ है़। भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम स्थान होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। गुजरात राज्य के वेरावल बंदरगाह में स्थित सोमनाथ धाम प्राचीन काल की अमूल्य धरोहर है।
यह वह मंदिर है़ जिसको मुगलों द्वारा एक दो बार नहीं बल्कि 17 बार तोड़ा गया और इस मंदिर की सम्पति को लूटा गया। लेकिन आज भी इस मंदिर का गर्व से फहराता हुआ ध्वज उन विदेशी बर्बर आतताइयों के लिए मुँहतोड़ जवाब है़, जिन्होंने भारतीय आस्था को चोट पहुंचाने का प्रयास किया।
अरब यात्री अल-बरुनी ने सोमनाथ मंदिर पर लुटेरों द्वारा किये गये हमलों का विस्तार से वर्णन किया है़। अल-बरुनी लिखता है़ कि सोमनाथ मंदिर स्वर्ण धातु का होने के कारण विदेशी आक्रमणकारियों के लिए यह स्थान आकर्षण का प्रमुख केंद्र बना रहता था।
इतिहास के पुराने पन्ने बताते हैं कि सन 1026 में महमूद गजनवी ने अपनी सेना के साथ सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कर दिया। कहते हैं कि इस आक्रमण में काफी रक्तपात हुआ। महमूद गजनवी ने न केवल इस मंदिर को लूटा बल्कि इस सोमनाथ धाम को तहस-नहस कर डाला।
तब राजा भीम ने इस मंदिर का पुनर्निमाण कराया। सन 1297 में दिल्ली सल्तनत के मुस्लिम शासक ने फिर इस सोमनाथ धाम को तोड़ डाला। उसके बाद मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण भव्य तरीके से कराया । इसके बाद वर्ष1706 में औरंगजेब ने इस सोमनाथ मंदिर पुनः ध्वस्त कर दिया।
तब महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस सोमनाथ मंदिर को पुनर्स्थापित कराया। उनके शासन काल के बाद भारत मे अंग्रेजों का शासन आया । अंग्रेजों के शासन काल मे सोमनाथ मंदिर पुनः जीर्ण-शीर्ण अवस्था को प्राप्त हो गया । तब भारत की स्वतंत्रता के पश्चात सन 1947 में लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस सोमनाथ मंदिर को फिर से अपने भव्य रूप मे अस्तित्व में लाने का दायित्व अपने कंधो पर लिया। और निर्माण प्रारंभ कराया ।
दुर्भाग्यवश बीच मे ही उनकी मृत्यु हो गयी । उनके बाद सोमनाथ मंदिर का निर्माण कार्य के एम मुंशी के नेतृत्व मे पूरा हुआ । इसके बाद वर्ष 1955 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सोमनाथ मंदिर को एक नये रूप में देश को समर्पित कर दिया। आज हम सोमनाथ मंदिर को जिस स्वरूप में देखते हैं वह लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा ही बनवाया गया है़। यह मंदिर बहुत भव्य और भारतीय वास्तुकला अनुपम उदाहरण है़।
सोमनाथ मंदिर की कहानी
चंद्र देव ने सोमनाथ मंदिर की स्थापना क्यों की? इस मंदिर के निर्माण कराने के पीछे उनका क्या उद्देश्य था? इन्ही प्रश्नों के उत्तर मे छिपी है सोमनाथ मंदिर की कहानी। आज हम उस कहानी को आपके सामने रखने जा रहें हैं जिसमें चंद्र देव की प्रेम-कथा छिपी है़।
कहा जाता है़ कि एक बार चंद्रदेव राजा दक्ष प्रजापति से मिलने उनके महल गये थे तो उनकी दृष्टि राजा दक्ष की पुत्री रोहिणी पर पड़ी। राजा दक्ष की पुत्री रोहिणी बहुत ही सुंदर थी। गोल चेहरे, सुडौल नाक, चित्ताकर्षक कपोल व राति के समान अंगों वाली रोहिणी की सुंदरता अद्वितीय थी। चंद्र देव, रोहिणी को देखकर हर्षातिरेक से विह्वल हुए जा रहे थे किन्तु चेहरे पर उनके संस्कारवश लज्जा के भाव थे ।
चंद्र देव ने मन ही मन रोहिणी को अपनी अर्धांगिनी बनाने का निर्णय ले लिया था। जब उनसे रोहिणी का वियोग नहीं सहा गया तो उन्होंने कुछ दिनों के बाद अपनी यह इच्छा राजा दक्ष प्रजापति के सामने रखी। चंद्रदेव ने राजा दक्ष से कहा कि वह उनकी पुत्री रोहणी को अपनी पत्नी बनाना चाहते हैं।
चंद्र देव का यह प्रस्ताव सुनने के बाद राजा दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव के सामने जो शर्त रखी वह चौंकाने वाली थी। राजा दक्ष प्रजापति ने कहा कि हे चंद्र, तुम यह जानते हो कि मेरी 27 पुत्रियाँ हैं और मैंने पहले से ही यह निर्णय लिया है़ कि मैं अपनी सभी पुत्रियों का विवाह एक ही व्यक्ति से करूँगा।
इसलिए यदि तुम्हें मेरी पुत्री रोहिणी से विवाह करना है़ तो तुम्हें मेरी अन्य 26 पुत्रियों से भी विवाह करना होगा। चंद्रदेव के पास अपनी रोहिणी को पाने के लिए अन्य कोई मार्ग शेष नहीं था। इसलिए चंद्रदेव को राजा दक्ष की पुत्री रोहिणी के अतिरिक्त अन्य 26 पुत्रियों से भी विवाह करना पड़ा।
लेकिन विवाह के उपरांत भी चंद्रदेव केवल रोहिणी से ही प्रेम करते थे। जबकि अन्य पत्नियों को अनदेखा करते थे। जिससे की राजा दक्ष की उन 26 में पुत्रियों में रोष उत्पन्न हो गया। उन्होंने चंद्र देव की शिकायत अपने पिता राजा दक्ष से की।राजा दक्ष ने चंद्र देव को कई बार समझाने का प्रयास किया। लेकिन चंद्रदेव के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
चंद्र देव पूर्व की भांति केवल रोहणी को ही अपनी प्रिय अर्धांगिनी मानते रहे। बार-बार राजा दक्ष प्रजापति को अपनी पुत्रियों द्वारा चंद्र देव की शिकायत मिलने पर वह एक दिन वह चंद्रदेव के महल पहुँच गये। उन्होंने देखा कि उनकी पुत्री रोहणी के अतिरिक्त सभी 26 पुत्रियाँ दासियों की भांति जीवन व्यतीत कर रहीं हैं।
कहते हैं कि यह सब देखकर राजा दक्ष प्रजापति अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने उसी समय चंद्रदेव को यह श्राप दिया कि हे चंद्र देव, तुम्हारा तेज (चमक) क्षीण हो जायेगा। कहते हैं कि दक्ष प्रजापति के इस श्राप से चंद्रदेव बुरी तरह घबरा गये। उन्होंने दक्ष प्रजापति को मनाने का बहुत प्रयास किया किन्तु सब व्यर्थ गया।
इसके बाद चंद्र देव को केवल भगवान शिव ही याद आए । उन्हे लगा कि इस भारी समस्या से उन्हे अगर कोई निकाल सकता है तो वो केवल महादेव ही हैं। उनके अतिरिक्त और किसी मे सामर्थ्य नहीं है विधि का विधान बदलने की । इसके बाद चंद्र देव ने समुद्र के निकट भगवान शिव का एक मंदिर बनाया और घोर तपस्या में तल्लीन हो गए।
कहते हैं कि चंद्रदेव की वर्षो की तपस्या के पश्चात भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए। तब चंद्रदेव ने भगवान शिव से राजा दक्ष प्रजापति के श्राप मुक्त करने का निवेदन किया। तब भगवान शिव ने चंद्रदेव से कहा कि घबराओ नहीं चंद्रदेव, तुम्हारीआभा कभी समाप्त नहीं होगी।
बल्कि तुम्हारा तेज, एक मास मे पंद्रह दिन घटेगा फिर पंद्रह दिन बढ़ेगा। फिर एक दिन पूर्णता को प्राप्त करेगा। उसी दिन से चंद्रमा का प्रकाश 15 दिन घटता है और 15 दिन बढ़ता है। कहते हैं कि तभी से शुक्लपक्ष और कृष्ण पक्ष और पूर्णिमा की उत्पत्ति हुई। जिस स्थान पर भगवान शिव ने दर्शन देकर चंद्रदेव को उनके संकटों से मुक्त किया, वह स्थान आज सोमनाथ धाम के नाम से जाना जाता है।
सोमनाथ मंदिर का रहस्य
ऐसी मान्यता है़ कि सोमनाथ धाम में अपने पूर्वजों का श्राद्ध किये जाने से उन्हें मुक्ति प्राप्त होती है़। देश के दूर- दराज से लोग अपने पितरों के श्राद्ध के लिए यहाँ आते हैं। कहा जाता है़ कि चैत्र, भ्रादपद और कार्तिक माह में इस पावन स्थान पर श्राद्ध करने से पितरों पर महादेव की विशेष कृपा होती है़।
मन्दिर के प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घण्टे का साउण्ड एण्ड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मन्दिर के इतिहास का बड़ा ही सुन्दर और जीवंत वर्णन किया जाता है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने अपना देहत्याग किया था। इस कारण से इस क्षेत्र का और भी महत्त्व बढ़ गया है ।
कहते हैं की इस तीर्थ स्थान पर बहने वाली हिरण, कपिला और सरस्वती नदी में स्नान करने से संपूर्ण रोग- शोक का नाश होता है़ और भाग्य उदय होता है़। इसीलिए इस सोमनाथ धाम में वर्ष भर भक्तों का ताँता लगा रहता है़।