हम जब भी किसी छोटे अथवा बडे़ मंदिर में प्रवेश करते हैं। तो वहाँ चारों तरफ जगह-जगह अनेक छोटी-बड़ी घंटियाँ लगी हुई दिखाई देतीं हैं। देवी- देवताओं के मंदिरों में घंटी लगाये जाने की रीति बहुत पुरानी है। दरअसल जब से मंदिर अस्तित्व में आये, तभी से पूज्य देव स्थानों पर घंटी बाँधे जानें की परंपरा भी शुरू हुई।
अब मन में यह प्रश्न उठता है कि आखिर क्यों आरंभ हुई मंदिरों में घंटी लगाये जाने की परंपरा ? आखिर क्या है धार्मिक स्थानों पर घंटी टांगें जाने के पीछे असली कारण ? क्या मंदिर में लगायी जाने घंटियाँ केवल एक सजावटी वस्तु है अथवा कुछ और भी है इसका रहस्य ! मंदिर में लगी घंटियों के संबंध में धर्म ही नहीं, वैज्ञानिक भी बहुत कुछ कहते हैं हैं। आइये जानते हैं कि मंदिरों में घंटियाँ क्यों लगायी जाती हैं?
घंटियों की ध्वनि देवी-देवताओं की मूर्तियों करतीं हैं जाग्रत
पौराणिक मान्यता है कि मंदिरों में आरती के समय पुजारियों और भक्तों द्वारा लगातार बजाये जाने के कारण, घंटियों की पवित्र स्वर की गूंज से देवी – देवताओं की मूर्तियाँ चैतन्य अवस्था में आ जाती हैं और फलदायी बन जाती हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथो में भी कहा गया है कि घंटियों के स्वर के बिना हमारी आराधना अधूरी है।
घंटियों का स्वर हमारी पूजा को सफल बनाती हैं। संस्कृत में एक श्लोक है- अगमार्थांतु देवानामं गमनार्थांतु राक्षसाँ कुर्वे धनतारवमं तत्र देवता आवाह्वान् लांचनम्। जिसका अर्थ है कि मैं देवी- देवताओं को आमंत्रित करने और राक्षसों को दूर भागने के लिये घंटी बजाता हूँ।
सकारात्मक ऊर्जा का श्रोत हैं घंटियाँ
हम जब किसी मंदिर में सच्चे मन से जाते हैं। तो वहाँ जाकर हमारा चित्त शांत हो जाता है। हम मंदिर में पहुँचकर अपने अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का आभास करते हैं। यह सब इन मंदिर की घंटियों के स्वर का ही परिणाम है। जो वहाँ के वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा को नष्टकर सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित कर देतीं हैं। कहते हैं कि घंटी की आवाज आत्मा और शरीर में समन्वय स्थापित करती हैं।
भक्त का ध्यान भटकने से रोकती हैं घंटियाँ
मंदिर में श्रध्दालु के मन को ईश-प्रार्थना के प्रति एकाग्रचित करने और अन्यत्र से भटकने से रोकने में मंदिर की घंटियों का बहुत बड़ा योगदान है। मंदिर की बजती हुईँ घंटियाँ हमारे विचारों को शुद्ध बनाती हैं और हमारे मन- मस्तिष्क के भटकाव पर रोक लगाती हैं। आपने अनुभव किया होगा कि जब तक मंदिर में घंटियाँ बजती रहतीं हैं तब तक हमारा तन-मन पूरी तरह भक्ति रस में डूबा रहता हैं। कोई गलत विचार मन में नहीं आता।
विज्ञान घंटी के स्वर से उत्पन्न वातावरण को स्वास्थ्यप्रद मानता है
वैज्ञानिकों का कहना है कि मंदिर में बजने वाली घंटियों के स्वर के कारण वहाँ के वातावरण में उपस्थित हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। जिसके कारण मंदिर का वातावरण अध्यात्म ही नहीं, स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी स्वास्थ्यप्रद हो जाता है। इसलिये मंदिरों में घंटियाँ वरदान सदृश हैं और शुभता का संदेश हैं।
ईश्वर तक अपनी आवाज पहुंचाने का मार्ग हैं घंटियाँ
आपने कई फिल्मों में देखा होगा कि विपत्ति के समय में फिल्मों के नायक , नायिका अथवा सहकलाकार मंदिर की घंटियाँ बजाकर अपने हृदय की व्यथा को परम शक्ति के सामने व्यक्त करते हैं कि हे प्रभु, मुझे इस संकट से उबार दीजिए। हम जब भी किसी भी मंदिर की घंटी बजाते हैं तो निश्चित रूप से इस धरती पर व्याप्त अदृश्य शक्ति से जुड़ जाते हैं जो हमारे लिये मंगलकारी होती है।
देव या देवी को हमारे द्वार पर आगमन की सूचना देतीं हैं घंटी
मंदिरों के प्रवेश द्वार पर लगी हुईँ घंटियाँ देवालय में हमारी उपस्थिति दर्ज कराती हैं। हम जब भी किन्ही देवी अथवा देवता के मंदिर में प्रवेश करते ही अपने हाथों से घंटी या घंटा बजाते हैं तो उसका स्वर मंदिर के ध्यानमग्न देव अथवा देवी को हमारे द्वार पर आगमन की सूचना देता हैं।
भक्तों को पूजन में सम्मलित होने की संदेश देतीं हैं घंटियाँ
कुछ विद्वानों का यह कहना है कि मंदिरों में घंटियाँ इस कारण लगायी गयीं कि इन्हें बजाकर आरती के समय भक्तों को संदेश दिया जा सके कि पूजन की बेला हो गयी है शीघ्र आओ और प्रार्थना में सम्मलित हो जाओ। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कोई भी मंदिर घंटियों के बिना अधूरा है और कोई भी पूजन घंटियों के स्वर के बिना पूर्ण नहीं है।