हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास साल का चौथा महीना होता है और इसके बाद वर्षा ऋतु आती है। आषाढ़ मास की अमावस्या पितरों के नाम से किए जाने वाले दान पुण्य के लिए विशेष महत्व वाली मानी जाती है, तो आइये इसके बारे में और जानते हैं।
अमावस्या का महत्व
यह तो आप सबको पता ही होगा कि सूर्य और चंद्रमा जब एक साथ आते हैं तब अमावस्या की तिथि होती है और ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूर्य और चंद्रमा एक-दूसरे के बहुत ही पास आ जाते हैं। आषाढ़ मास में आने वाली अमावस्या को हल हरिणी अमावस्या भी कहा जाता है।
हिंदू शास्त्रों के हिसाब से अमावस्या की तिथि पितरों की तिथि मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि अमावस्या के दिन चंद्रमा की शक्ति जल और वनस्पतियों में प्रविष्ट हो जाती है। इसलिए इस दिन नदी या किसी भी जलाशय में स्नान का विशेष महत्व है।
उसके बाद सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर अपने पितरों के लिए तर्पण किया जाता है। उसके अलावा हमारे किसान इस दिन खेती में प्रयोग होने वाले विभिन्न उपकरणों की भी पूजा करते हैं। इस दिन किया गया यज्ञ हमें पित्र ऋण से मुक्त करता है।
अमावस्या की पूजा विधि
वैसे तो प्रत्येक माह में आने वाली अमावस्या तिथि हिंदू धर्म में काफी महत्वपूर्ण मानी गई है। प्रत्येक अमावस्या की तिथि की तरह इस दिन भी स्नान दान, पूजा-पाठ और पित्र तर्पण तो किया जाता है। अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदी में स्नान करें और यदि ऐसा संभव ना हो तो किसी पवित्र नदी का जल अपने नहाने के पानी में मिलाकर उस से स्नान करें।
उसके बाद सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और अपने पितरों का विधि-विधान से तर्पण करें। कुछ लोग पितरों की आत्मा की शांति के लिए व्रत भी रखते हैं। ब्राह्मणों को भोजन अवश्य करायें और उसके बाद उनको दान-दक्षिणा देकर अपना व्रत प्रारंभ करें।
इस दिन चावल की खीर बनाकर पहले भगवान शिव को अर्पण करिए और दूसरा भाग अपने पितरों के नाम से निकाल कर उसे किसी पशु को खिला दीजिए। इस दिन पितरों की शांति के लिए यज्ञ भी करा जाता है। यह आप किसी योग्य पंडित के निर्देश में कर सकते हैं। ऐसा करने से यदि आपकी कुंडली में पित्र दोष है तो उसका प्रभाव काफी कम हो जाता है। इस दिन गरीबों को भोजन अवश्य ही करायें तथा पशु पक्षी की भी यथासंभव सेवा करें।
क्या ना करें अमावस्या को
आइए अब इस पर ध्यान देते हैं कि अमावस्या तिथि के शुभ फल प्राप्त करने के लिए हमें क्या नहीं करना चाहिए। इस दिन सूर्योदय के बाद तक सोना नहीं चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर सूर्योदय के समय सूर्य देवता को जल अर्पण करें और इसके बाद अपने पूर्वजों को जल अर्पण करें।
अमावस्या के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें और इस दिन केवल सात्विक भोजन ही ग्रहण करें। इस दिन मांस-मदिरा. मछली और शराब के अलावा प्याज-लहसुन के सेवन से भी बच के रहना चाहिए। इस दिन आपको कोई मांगलिक कार्य भी नहीं करना चाहिए।
यदि आप भी इन सब बातों का ध्यान रखेंगे तो अमावस्या तिथि का भरपूर लाभ आपको और आपके परिवार को अवश्य मिलेगा साथ ही आपके पूर्वजों का भी आपको आशीर्वाद मिलेगा।