यदि हम चारों युगों में जीवन के स्तर का अध्ययन करें तो पायेंगे कि हर युग में धर्म और सत्य का आचरण करने का स्तर, पिछले युग की तुलना में, गिरता गया है और अब कलियुग में तो ये अपने सबसे निचले स्तर पर है। सब जानते समझते हुए भी हम में से लगभग सभी लोग कुछ अच्छाइयों और कुछ बुराइयों के साथ खट-मिट्ठा सा जीवन जीते हैं।
क्यों ना हम पृथ्वी पर बिताए जाने वाले इस सीमित समय में बुराइयों से दूर रह कर, सात्त्विक जीवन जीते हुए, सही कर्म करते हुए और अपने धर्म का पालन करते हुए ईश्वर से सही तरीके की पूजा कर के आशीर्वाद लें कि वो हमारे जीवन को सफल बनायें।
पुराणों और वेदों में इतना ज्ञान भरा पड़ा है और उसका यदि एक छोटा सा हिस्सा भी हम जान पायें तो हमारा जीवन निश्चित ही धन्य हो जायेगा। प्राचीन भारतीय शास्त्रों में कलियुग के विषय में यह बात वर्णित है कि पापों के बढ़ जाने और लोगों में भक्ति भाव कम हो जाने की वजह से ईश्वर साक्षात् नहीं दिखेंगे, परंतु साथ में यह भी सच है कि जहाँ अन्य युगों में कई वर्षों की तपस्या के बाद पुण्य फल मिलता था, इस कलियुग में वही केवल कुछ मिनटों की सच्ची पूजा से प्राप्त हो सकता है।
इसलिए, सबसे अच्छी बात यह है कि आप कितने भी व्यस्त हों, आप को प्राचीन समय के ऋषि मुनियों की तरह तपस्या नहीं करनी है और आप कुछ मिनटों की पूजा के लिए तो समय निकाल ही सकते हैं। यहाँ जो बात हमारे सामने विशेष महत्त्व की है, वो है, ‘सही तरीके की पूजा’। तो इस कलियुग में किस तरह और कौन से भगवान की करें पूजा, आइये इस पर विचार करते हैं।
कलियुग में पूजा की श्रेष्ठ विधि
आप रोज़ नियम से मन्त्र उच्चारण (1 माला यानी 108 बार या यदि व्यस्तता है तो 11 बार कर लें) करें, ध्यान (आधे घंटे अपने आराध्य देव का ध्यान प्राणायाम के साथ या यदि व्यस्तता है तो 15 मिनट भी अच्छा है), अपने आराध्य देव की आरती तथा अन्य जो भी नियमित पूजा आप करते हों जैसे शिवलिंग स्नान, कोई पाठ, इत्यादि, वो कर लें।
इन सब के बाद अंत में ईश्वर को कृपा बरसाने के लिए दिल से और आत्मा से धन्यवाद करें और उनसे पूरी श्रद्धा से प्रार्थना करें कि वो आपको और आपके परिवार को स्वस्थ, सुरक्षित और सद्बुद्धि से प्रेरित रखें। अपनी पूजा का अंतिम मिनट प्रभु से क्षमा प्रार्थना का रखें, हो सके तो यह दुर्गा शप्तशती की सुन्दर भाषा में वर्णित क्षमा प्रार्थना पढ़ें और यदि वह ना हो आपके घर में तो भी आप प्रभु से अपने दिल की गहराईयों से जो भी आपसे गलतियां हुईं हों, उनके लिए सच्चे मन से क्षमा प्रार्थना कर सकते हैं।
इस पूरी पूजा में यदि आपके पास समय है तो लगभग पौन घंटे और यदि व्यस्त हैं तो 15-20 मिनट से ज़्यादा समय नहीं लगेगा। पूरे दिन के ख़त्म होने के थोड़ा पहले शाम को या रात को सोते समय जब भी आप को मौका मिले तो भगवद गीता का एक अध्याय या व्यस्त हैं तो 2-3 श्लोक पढ़ें, उसको गुनें और उसकी व्याख्या को समझें।
भगवद गीता को दुनिया के अनेकों बुद्धिजीवियों और ज्ञानियों ने माना और अपनाया है, विश्वास मानिए इसमें आप को अपने जीवन की बहुत सारी मुश्किलों का हल मिलेगा और आगे मन बहुत सकारात्मक रहेगा। इसके अलावा, आप को जब भी समय मिले, सच्चे साधु-संतों के साथ बैठ कर ज्ञान चर्चा करें, खाली समय में अपने आराध्य देव के नाम का स्मरण करें, भजन कीर्तन कहीं हो रहा हो तो उसमें हिस्सा लें, यज्ञ अपने घर में भी करायें और कहीं अन्य जगह पर भी यज्ञ हो तो उत्साह से उसमे अपना योगदान दें।
सत्संग की महिमा बहुत महान होती है, जाने किस रूप में आपको नारायण मिल जाएं और जाने कौन आपको जीवन के कुछ गूढ़ रहस्य बता जाए। किसी से ज्ञान लेने में हम छोटे तो नहीं हो जाते। प्रभु का नाम जपने की तो बहुत बड़ी महिमा है और शास्त्रों में वर्णित है – प्रभु से बड़ा प्रभु का नाम यानी ऐसा हो सकता है कि हमें प्रभु के सच्चे स्वरुप की एक बार को सही जानकारी ना हो, परंतु महान ऋषियों महर्षियों द्वारा बताए गए प्रभु का नाम जपने से निश्चित ही हम सब पर प्रभु की असीम कृपा बरस सकती है। यही बात भजन कीर्तन पर भी लागू होती है।
यज्ञ की महत्ता और आवश्यकता तो कलियुग में सबसे अधिक बढ़ गयी है। यज्ञ से कलियुग की बुराइयों पर चौतरफा वार होता है। यज्ञ के मन्त्रों से विचारों के विकार मिटते हैं, मन्त्रों के तेज से स्वयं की और जो दूसरे लोग यज्ञ में भाग ले रहे हैं, उन सब की दुःख-परेशानियों का निवारण होता है और यज्ञ में पड़ने वाली समिधा की जड़ी-बूटियों के प्रभाव से वातावरण में भी शुद्धि आती है और पर्यावरण शुद्ध होता है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि संतों के अनुसार, स्थूल से ज़्यादा सूक्ष्म शक्तिशाली होता है। आप ने अक्सर देखा होगा कि यदि आप बहुत सारी साबुत लाल मिर्च किसी के ऊपर या कुछ लोगों पर फेंक दें तो किसी को कुछ भी फर्क नहीं पड़ेगा परंतु वहीँ अगर लाल मिर्च कूट के पाउडर या उसी मिर्च का धुआं अगर हल्का सा भी फैला दें तो सारे के सारे खांसने लगेंगे। यही यज्ञ की जड़ी-बूटियों की भी शक्ति होती है और इससे सब का भला होता है।
कलयुग के भगवान कौन है
वेदों में यह बताया और भगवद गीता में यह बात दोहराई गई है कि हर एक व्यक्ति के लिए सही पूजा, उसकी परिस्थिति, कर्म और भावना के अनुसार अलग-अलग हो सकती है। इसीलिए अपने कुल के देवता की पूजा करना सर्वश्रेष्ठ होता है क्योंकि कुल देवता एक महान परम्परा के अनुसार तय किए जाते रहे हैं।
यदि आप को अपने कुल देवता ना पता हों तो आप अपने घर के बुजुर्गों में से किसी से पूछ सकते हैं, उन्हें अवश्य पता होगा। कुल देवता ना पता होने पर भी आप भगवान कृष्ण को पुकारें। वैसे तो प्रभु के किसी भी रूप या नाम का स्मरण आप को कष्टों से मुक्ति दिलाएगा परंतु कलियुग की कठिन और प्रबल माया को निष्प्रभावी करने में यदि कोई भाव आप की सबसे अच्छी सहायता कोई कर सकता है तो वह है सोलहों कलाओं से पूर्ण उस नटखट और चतुर मुरली वाले किशन कन्हैया की लीलाओं का स्मरण।
वो अवश्य अपनी लीलाओं से और शक्तियों से कलियुग के इस कठिन समय में कष्टों से पार निकालने की कोई ना कोई अच्छी युक्ति निकाल लेंगे। उन्होंने अपने विभिन्न रूपों में कष्ट में पड़े हर उस भक्त की मदद करी है जिसने भी उन्हें ह्रदय के करुण भाव से पुकारा है, आप भी उन्हें पुकार लीजिये, चाहे भगवान विष्णु के रूप में और चाहे माखन प्रेमी नटखट श्रीकृष्ण के रूप में।
कलियुग के कठिन और माया से परिपूर्ण समय को आप एक मुसीबत के रूप में ना देख कर एक अवसर के रूप में देखें जहाँ आपको अपने आराध्य देव की पूजा कर के कम समय में अधिक पुण्य कमाने का अवसर मिल रहा है। इस समय पर आप जो भी पूजा पूरी निष्ठा से करेंगे तो वो आप को अपने अंदर स्वयं ही सात्विकता के प्रभाव से अपने तेजोमय स्वरुप का आभास करायेगा।