बाहर से चर्च अंदर से मंदिर
आज हम आपको ऐसे पूजा के धाम में लिए चलते हैं जो बाहर से तो गिरजाघर यानि चर्च नजर आता है लेकिन अंदर से है ये मंदिर। है न कमाल की बात। न जाने प्राचीन काल में यहाँ के राजा ने इस मंदिर को इस तरह से क्यों बनाया ? संभवत ऐसा तो नहीं कि बाहर से चर्च और अंदर से मंदिर दिखने वाला यह पूजा का अदभुत स्थान अंग्रेजों को झांसा देने के लिए बनाया गया था?
कहाँ पर है ये मंदिर
या राजा ने चर्च को मंदिर में बदल दिया ? सच जो भी हो लेकिन आज हम आपको इस मंदिर से परिचित कराएंगे जो अपने आप में अद्भुत और अनूठा है। अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए जाना जाने वाला यह मंदिर मध्यप्रदेश के पन्ना में स्थित है। इस मंदिर को महाराजा रुद्र प्रताप सिंह ने आज से लगभग 145 वर्ष पूर्व, वर्ष 18 76 में स्थापित कराया था ।
इस मंदिर को यदि आप बाहर से देखेंगे तो ऐसा मालूम होगा कि आप ईसाई धर्म के पूजा स्थल यानी किसी चर्च में प्रवेश कर रहे हैं, क्योंकि इस मंदिर की बाहरी बनावट बिलकुल लंदन के सेंट पॉल चर्च की तरह है। लेकिन मंदिर के अंदर का सब कुछ भारतीय रंग में रंगा हुआ है। इस मंदिर में भगवान कृष्ण के भाई भगवान् बलराम जी की पूजा होती है। उनकी प्रतिमा को शालिग्राम के काले पत्थर से बनाया गया है जो देखने में बहुत मनोहारी लगता है।
क्या है चर्च की तरह मंदिर बनाने की पहेली
अब हम उस बात को आपके सामने रखने जा रहें हैं कि आखिर वह कौन सा उद्देश्य था जिसके कारण पन्ना के नरेश ने ऐसे विचित्र तरह के बहुरूपिये पूजा स्थल की स्थापना करायी। आइये जानते हैं इस तथ्य को। आपके मन में यह बात आ रही होगी कि कहीं इस पूजा स्थल का निर्माण कराने वाला राजा ईसाई धर्म से प्रभावित तो नहीं था की जो उसने मंदिर की जगह चर्च बना डाला।
जानें क्या है चर्च की मंदिर बनाने की पहेली का रहस्य! दरअसल यह घटना बड़ी दिलचस्प है। एक बार की बात है कि भारत के मध्य प्रदेश के पन्ना नरेश राजा रुद्र प्रताप सिंह एक बार लंदन की सैर के लिए गए हुए थे। लंदन में वहाँ उन्हें- ऊँची ऊँची इमारतें बहुत पसंद आयीं। एक दिन जब वह अपनी लंदन यात्रा के दौरान सेंट पॉल चर्च से होकर गुजर रहे थे तो अचानक उनके पैर वहीँ रुक गये।
उन्हें ऐसा लगा कि यह भवन उन्हें अंदर आने के लिए पुकार रहा है। उन्हें लगा कि कोई अदृश्य शक्ति उन्हें अंदर की ओर खींच रही है। राजा रुद्र प्रताप सिंह सेंट पॉल चर्च में प्रवेश कर गये। उन्हें उस चर्च में बड़ा आश्चर्य जनक अनुभव हुआ। पन्ना के राजा को उस चर्च में उस समय ईसामसीह की मूर्ति के करीब अपने आराध्य देव बलदेव जी दिखाई देने लगे।
चर्च में उनको, उनके प्रभु का दिखना एक चमत्कार था। उन्हें लगा कि उनके भगवान का ऐसा कहना है कि उनका भी ऐसा ही एक भव्य पूजा का धाम बनाया जाये। पन्ना नरेश राजा रुद्र प्रताप सिंह को उस विश्व प्रसिद्ध सेंट पॉल चर्च में ऐसा लगा कि उनके सपनों का भवन उन्हें मिल गया है। पन्ना नरेश राजा रुद्र प्रताप सिंह उस चर्च को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए थे। उनके मन में उसी समय इस बात ने जन्म ले लिया कि अपने देश लौटकर भारत में भी ऐसा ही भव्य बनाएंगे ।
अपने देश भारत लौटकर राजा रुद्र प्रताप सिंह ने अपने दरबार में इस बात की चर्चा की तो उनके मंत्रियों को यह सब कुछ बड़ा विचित्र सा लगा। कि एक हिन्दू राजा चर्च बनाने की बात कर रहा है। लेकिन सर्वसम्मति से निर्णय हुआ कि इस भवन को राजा की मंशा केअनुसार ही चर्च का स्वरूप दिया जाएगा लेकिन उसके अंदर भगवान बलदेव जी की मूर्ति स्थापित की जाएगी।
राजा मंत्रियों की बात सुनकर अति प्रसन्न हो गए। क्योंकि इस तरह उनकी दोनों अभिलाषायें पूर्ण हो रही थी। पहली लंदन के सेंट पॉल चर्च जैसे भवन को भारत में बनाने की, दूसरे उनके आराध्य देव बलदेव जी के मंदिर बनने की। कहा जाता है कि इस चर्च की तरह बनावट वाले मंदिर को बनाने के लिए विदेश से कारीगरों को बुलाया गया।
बताते हैं कि यह उस समय का पन्ना का यह सबसे अधिक खर्चीला पूजा स्थल था। जब यह चर्च सदृश्य मंदिर बनकर निर्मित हुआ तब उस समय भारत में ब्रिटिश शासन काल था। जब भी अंग्रेजों के ऑफिसर मध्यप्रदेश के पन्ना से होकर गुजरते थे तो उन्हें यह मंदिर बहुत आकर्षित करता था।
क्यों कि इस मंदिर का बाहर से चर्च की तरह लुक होने के कारण यह पूजा का धाम उनके लिए हृदयस्पर्शी था। एक बार की बात है, एक अंग्रेज अफसर जब इस आराधना स्थल से होकर गुजर रहा था तो वह पन्ना (मध्य प्रदेश) में लंदन की तरह सेंट पॉल चर्च को देखा तो भ्रमित हो गया क्योंकि वह इस जगह से अनजान था। उसे लगा की कहीं वह लंदन में तो नहीं, लेकिन उस मंदिर से बजने वाली घंटी ने उसका भ्रम तोड़ा ।
बलदेव जी का यह मंदिर पूर्व और पश्चिम की स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। इस चर्च की तरह दिखने वाले मंदिर को देखने के लिए स्वयं रानी विक्टोरिया मध्यप्रदेश के पन्ना में आई थीं। उन्होंने यहां के राजा की प्रशंसा की। यहां के लोगों का कहना है कि कुछ अंग्रेज़ अधिकारी बाहर से दिखने वाले इस चर्च के सामने अपनी इबादत करते थे।
इस मंदिर की सबसे अधिक विशेष बात यह है कि देखने में यह मंदिर बहुत खूबसूरत और विशाल है। इस मंदिर में बलदेव जी की मूर्ति इस प्रकार स्थापित की गई है कि मंदिर के द्वार से ही उनकी मूर्ति के दर्शन हो सकें।