पशुपतिनाथ व्रत का माहात्म्य क्या है

महाशिव पुराण में पशुपतिनाथ व्रत के माहात्म्य या महिमा का विस्तार से उल्लेख किया गया है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि स्वयं ब्रम्हा जी पशुपतिनाथ व्रत का माहात्म्य जानकर पाशुपत अर्थात भगवान शिव के उपासक हो गये थे। आज हम उसी कामधेनु के समान फल देने वाले पशुपति नाथ व्रत के माहात्म्य को आपके समक्ष रख रहें हैं।

पशुपति नाथ व्रत कथा

अपने देश के पड़ोस में स्थित नेपाल देश की राजधानी काठमांडू में बागमती नदी के किनारे भगवान पशुपति नाथ का भव्य मंदिर हैं। पौराणिक गाथा है कि इस क्षेत्र में एक बार भगवान शिव ने पशु का रूप धारण कर लिया था। लेकिन देवताओं ने उन्हें पहचान लिया और उनके सींग पकड़ लिये।

पशुपति नाथ व्रत कथा

तब भगवान को अपने असली स्वरूप में आना पड़ा। कहते हैं कि भगवान शिव का टूटा हुआ सींग ही आज शिवलिंग के रूप में पशुपति नाथ मंदिर में स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि काठमांडू में स्थित पशुपति नाथ के शिवलिंग के दर्शन के पश्चात मनुष्य को कभी भी पशु योनि नहीं भोगनी पड़ती।

भगवान शिव को प्रसन्न का करने का सर्वोत्तम मार्ग है पशुपतिनाथ व्रत

पाँच सोमवार तक चलने वाले पशुपति नाथ का व्रत भगवान शिव की शरण में पहुंचने और उनकी कृपा पाने का सर्वोतम मार्ग है। पशुपति नाथ व्रत के माध्यम से भगवान शिव की कृपा पाने के समस्त द्वार खुल जाते हैं। क्योंकि पशुपति नाथ व्रत भगवान शिव का सर्वप्रिय व्रत है। ग्रंथो में उल्लेख है कि भगवान शिव के इस व्रत को करने से वह शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।

समस्त पापों को नाश करने वाला है पशुपतिनाथ व्रत

महाशिव पुराण में वर्णित है कि पशुपतिनाथ व्रत जन्म-जन्मान्तर के पापों को समूल नष्ट करने वाला है। कोई भी व्यक्ति इस व्रत को पूर्ण करने के बाद गंगा जल के समान पवित्र और वायु की तरह ऊर्जावान हो जाता है। इसीलिए आत्मशुद्धि के लिये पशुपति नाथ व्रत किया जाता है।

बाधाओं से मुक्ति प्रदान करने वाला व्रत

पंडित वासुदेव पाण्डेय जी कहते हैं कि यदि किसी व्यक्ति को जीवन में कोई बाधा है तो उसके पशुपति नाथ व्रत को करने से समस्त बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। क्योंकि इस व्रत के प्रभाव से एक दैवीय कवच आपके चारों तरह निर्मित हो जाता है जिसके बाद सभी बाधायें भयभीत होकर दूर भाग खड़ी होतीं है। क्योंकि इस व्रत के करने से घर में दैवीय- शक्ति का वास हो जाता है।

मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश कर जाती है

पशुपति नाथ व्रत में पाँच सोमवार शिव मंदिर से घर और घर से शिव मंदिर दिन में दो बार आवागमन होता है। ऐसे में मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा का अंश घर में प्रवेश कर जाता है। जिसके कारण मनुष्य के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आरंभ हो जाता है। यह इस व्रत का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है।

पारिवारिक समस्याओं का निराकरण करता है यह व्रत

यदि पति -पत्नी में परस्पर अच्छे संबंध नहीं हैं। आपस में लड़ाई -झगड़ा होता रहता हैं। तो ऐसे में पशुपति नाथ का व्रत रामबाण के समान हैं। इस व्रत के करते ही घर में सुख – शांति का वातावरण उत्पन्न हो जाता है। यदि किसी महिला का अपने पति के साथ अनबन रहती है तो उसे पशुपतिनाथ व्रत अवश्य करना चाहिये।

 

 

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