धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि कोई भी व्रत तभी फलदायक होता है जब उसे पूरी श्रध्दा और पूर्ण विधि-विधान के साथ किया जाता है। आज हम शीघ्र मनोकामना पूर्ण करने वाले भगवान पशुपतिनाथ के व्रत से जुड़ी हुई संपूर्ण जानकारी लेकर उपस्थित हैं। यदि आप भगवान पशुपति नाथ की कृपा पाना चाहते हैं तो यह व्रत आपके लिये एक वरदान की तरह है।
पशुपति नाथ व्रत
भारत के पड़ोसी देश नेपाल के काठमांडू में भगवान पशुपति नाथ का विशाल मंदिर है। यह भगवान शिव का विश्व प्रसिद्ध धाम है। पशुपति नाथ भगवान शिव का ही दूसरा नाम है। पशुपति नाथ का अर्थ है इस सृष्टि के समस्त जीवों के स्वामी। फिर वह चाहे मनुष्य हो, पशु हो या वनस्पति।
कहा जाता है कि पशुपतिनाथ व्रत की बहुत अधिक मान्यता है। बताया जाता है कि पाँच सोमवार शिव मंदिर में जाकर भगवान पशुपति नाथ व्रत करने के उपरांत आपके हृदय की अभिलाषा अवश्य पूरी हो जाती है।
पशुपति नाथ व्रत कब करना चाहिए
पंडित श्याम सुंदर के अनुसार पशुपति नाथ व्रत कभी भी किया जा सकता है। बस यह ध्यान रखना होगा कि सोमवार के दिन से इस व्रत की शुरुआत करनी होती है। शुक्ल पक्ष हो अथवा कृष्ण पक्ष, आप कभी भी पशुपति नाथ व्रत आरंभ कर सकते हैं। लेकिन स्मरण रहे कि इस व्रत को निरंतर पाँच सोमवार तक करना आवश्यक होता है। तभी इस व्रत का प्रतिफल प्राप्त होता है।
पशुपति नाथ व्रत विधि
किसी भी सोमवार को प्रातःकाल नहा धोकर स्वच्छ कपड़े पहने और एक पूजा की थाली तैयार करें। जिसमें धूप-दीप, चंदन, लाल चंदन, बेल -पत्र, पुष्प, पंचामृत, जल आदि लेकर अपने घर के निकट स्थित भगवान शिव के मंदिर जायें। वहाँ पहुँचकर बहुत श्रद्धा पूर्वक भगवान शिव को समस्त पूजन सामग्री अर्पित करें। पूजन के दौरान ॐ पशुपतिनाथाय नमः का जाप मन ही मन करते रहें। फिर उस पूजा की थाली सहित घर आ जायें। यह पूजन विधि लगातार पाँच सोमवार तक चलेगी।
पशुपति नाथ व्रत की सामग्री (pashupatinath vrat samagri)
सायंकाल के समय आप पुनः पूजा की थाली में छह दीपक और अपने हाथ का बना हुआ कुछ मीठा पकवान भगवान को भोग लगाने के लिये रखें और मन में ॐ नमः शिवाय का जाप करते हुये शिव मंदिर पहुँचे। वहाँ थाली में रखे उन छहों दीपकों को जलायें और नमन करते हुये उनमें से पांच दीपक को शिव जी के समक्ष रख दें और एक दीपक अपनी पूजा की थाली में ही रहने दें।
इसी प्रकार आप जो मीठी वस्तु भगवान शिव को भोग लगाने के लिए लायीं हैं उसके तीन भाग करें। जिसमें से दो हिस्से शिव जी को अर्पित कर अपनी मनोकामना व्यक्त करें। शिव मंदिर से लौटकर थाली में बचा हुआ वह एक दीपक आप अपने घर के द्वार के दाहिनी ओर रख दें। मीठी वस्तु के बचे हुये तीसरे भाग को प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर लें। यह कार्य आपको पाँचो सोमवार करना है।
पशुपतिनाथ व्रत का उद्यापन
कहा जाता है की किसी व्रत का प्रतिफल तभी प्राप्त होता है। जब उस व्रत का उद्यापन किया जाता है। पाँचवें सोमवार की सायंकाल शिव मंदिर में पूजन सामग्री व कच्चा नारियल आदि और 108 बेलपत्र अर्पित कर श्रध्दापूर्वक नमः शिवाय का जाप करते हुये पशुपतिनाथ व्रत का उद्यापन किया जाता है।