हम सब जानते हैं कि इस संसार में कोई भी कार्य करने का एक सही तरीका होता है जिससे वह कार्य सफल माना जाता है। ऐसा ही कुछ पूजा-पाठ के साथ भी है, साथ ही इसको सही ढंग से करने की महत्ता इसलिए और भी बढ़ जाती है क्योंकि यह एक मांगलिक कार्य है, सही तरीके से करने पर स्वाभाविक है कि आपको स्वतः ही लाभ होगा और गलत करने पर कभी-कभी नुकसान भी हो सकता है।
मांगलिक कार्यों को भी करने के कुछ नियम व कायदे होते हैं जिनको हमें अवश्य जानना चाहिए, अगर मांगलिक कार्यों को भी नियम विरुद्ध किया जाएगा तो अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है। तो आइये समझते हैं कि पूजा पाठ करने का सही तरीका क्या है।
पूजा की शुरुआत कैसे करें?
अपनी पूजा शुरू करने के लिए, सबसे पहले तो ये समझ लें कि भगवान की पूजा में भौतिक वस्तुओं (जो दिखती हैं, जिनको आप छू सकते हैं) के मुकाबले भगवान के प्रति आपकी श्रद्धा का महत्त्व बहुत ज़्यादा है। वैसे तो पूजा आप कहीं भी और कभी भी करें, भगवान भक्तों से कभी ये नहीं कहते कि आप पूजा मत करिए, फिर भी सुबह और शाम का समय पूजा करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
जहाँ आप पूजा कर रहे हैं, सुनिश्चित कर लें कि वह स्थान बहुत साफ़-सुथरा हो और आप भी सुबह नित्य कर्म के बाद नहा-धो कर धुले हुए साफ़ कपड़े पहन कर पूजा करने के लिए एक स्वच्छ आसान पर बैठ जायें। भगवान की पूजा में इस्तेमाल होने वाले बर्तनों को आप केवल पूजा के लिए ही रखें और किसी खाने-पीने में ना प्रयोग होने दें।
पूजा की सही विधि क्या है?
आप हमेशा ज्ञानी ऋषि-मुनियों द्वारा रचित प्राचीन शास्त्रों में बताई गयी पूजा-पाठ की विधि का पालन करें या दुविधा होने पर किसी ज्ञानी पंडित से पूछ लें। आप अपने विवेक के आधार पर भी तय कर सकते हैं कि भक्ति ज्ञान के किस स्रोत से आपको सही जानकारी मिल रही है, जैसे आप देख सकते हैं कि हमने ये आर्टिकल भक्तों के हित के लिए पब्लिश किया है क्योंकि हमारा मानना है कि श्रद्धालु भक्तों को पूजा विधि की बिल्कुल सही जानकारी मिलनी ही चाहिए।
पूजा शुरू करने से पहले शुद्धिकरण करने के लिए आप तांबे के एक छोटे से पात्र में साफ़ जल भर लें और यदि आपके घर में गंगाजल हो तो एक साफ बर्तन मे एक चम्मच गंगाजल डालकर उसमे अपने घर के साफ पानी को मिल लें। आसन पर बैठने के बाद पूजा शुरू करने के लिए आप एक चम्मच जल (आचमनी) अपनी हथेली पर लें और दूसरे हाँथ से उसको ढक कर रखें।
अब आप कमल के समान मनोहारी छवि वाले भगवान विष्णु का ध्यान कर के गरुण पुराण में लिखित यह शुद्धिकरण मन्त्र पढ़ें –
ॐ अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोSपिवा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं सः वाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
जिन लोगों को संस्कृत नहीं आती, उनकी आसानी के लिए हम इसको अंग्रेजी के फोनेटिक्स में भी लिख रहे हैं जिससे वे लोग भी इस मन्त्र का उच्चारण सही तरीके से कर पायें। मन्त्र का अर्थ भी नीचे दिया गया है क्योंकि जब आप इसका अर्थ समझ कर करेंगे तो आपका इससे भावनात्मक जुड़ाव होगा जो कि पूजा के लिए बहुत आवश्यक है।
Om apvitrah pavitrova sarva-vastham gatopiva.
Yah smaret pundrikaksham sah vaahya-abhyantarah shuchih.
अर्थात:- चाहे कोई भी शुद्ध या अशुद्ध हो, जब कोई व्यक्ति कमल के सामान आँखों वाले भगवान विष्णु को याद करता है, तो वह व्यक्ति पूर्ण आंतरिक और बाहरी पवित्रता प्राप्त करता है।
तन से और मन से शुद्ध होने के बाद आप सबसे पहले गणेश भगवान का ध्यान करके उनको नमन करें। उसके बाद आप अपने इष्ट देवता का ध्यान करें और उनको धन्यवाद करें। जिन देवता के प्रति आपका विशेष लगाव हो, उनका आप ध्यान, उनके मन्त्र या नाम की एक माला (यानी 108 बार क्योंकि एक माला में 108 गुरियाँ होती हैं, मन्त्र पढ़ें तो अधिक बेहतर होगा) और उन देवता की चालीसा का पाठ करें।
उसके बाद आरती करके भगवान को यानी सभी देवी-देवताओं को एक ही छोटी प्लेट या कटोरी में किसी ताजे मीठे खाद्य पदार्थ का भोग लगा कर रखें और पूरी श्रद्धा भावना से महसूस करें कि भगवान आपकी प्लेट से आपके हाँथ से खाने के लिए आ गए हैं। इसके बाद अपने इष्ट देवता की आरती कर के प्रसाद को अपने परिवार में एवं अधिक से अधिक लोगों में बाँट दें।
क्या हम बिना नहाए पूजा कर सकते हैं?
यदि कोई मजबूरी है जैसे तबियत ना ठीक होने की वजह से ठण्ड लग रही है या कड़ाके के जाड़े में गर्म पानी ना होने से आप नहा नहीं पा रहे हैं तो आप वैसे तो बिना नहाए भी पूजा कर सकते हैं परंतु आप ये अनुभव करेंगे कि नहा के शुद्ध तन-मन से आप ज़्यादा अच्छे से ध्यान और पूजा कर पायेंगे, इसलिए यदि कोई मजबूरी ना हो तो तन से और मन से शुद्ध होने के बाद ही आप भगवान की पूजा शुरू करें।
भगवान की पूजा करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
आपने ऐसे प्रसिद्ध और सच्चे किस्से अवश्य सुने होंगे जब किसी भक्त की लगन और भक्ति से प्रसन्न हो कर भगवान ने दर्शन दिया। शास्त्रों में वर्णित ऐसे किस्सों से पता चलता है कि भगवान ऐसे भक्त से प्रसन्न होते हैं जो पूजा और प्रार्थना करने की सही विधि ना भी जानता हो तो भी जिसकी भगवान के प्रति लगन बहुत ही गहरी हो।
आपने वह किस्सा सुना ही होगा जिसमें पुजारी जी एक लड़के को कुछ देर के लिए मंदिर की देख-भाल करने की ज़िम्मेदारी देकर जाते हैं और बोलते हैं कि देखना भगवान के सामने अच्छे से भोग रखना जिससे कि वो खा लें। वह लड़का नहीं जानता कि भगवान के सामने भोग सिर्फ रखा जाता है, असल में वो मूर्ति से निकल कर नहीं खाते हैं।
वह खुद भी भूखा रहता है और भगवान से मनुहार करता रहता है कि आप खा लो। अंत में उसकी सच्ची श्रद्धा देख कर भगवान को स्वयं आना ही पड़ता है और तभी पुजारी जी वापस आते हैं, उन्हें भी भगवान के दर्शन होते हैं। इससे पता चलता है कि भगवान भाव के भूखे हैं, आप बस सच्ची श्रद्धा रखिए और पूजा में लीन हो जाइए।
आजकल बहुत से यूट्यूब वीडियो और वेबसाइटों पर आर्टिकल आपको मिलेंगे जो इस बात पर जोर देते हैं कि आप सकाम भक्ति ही कीजिए और भगवान को बताइए कि आप कौन सी सफलता चाहते हैं पर ये सब पश्चिमी देशों से आई सोच का छलावा है।
लालच से कभी पूजा ना करें क्योंकि यदि भगवान कृष्ण ने भगवद गीता में बता दिया है कि कभी भी फल की इच्छा मत करो तो उनसे बड़ा फिर कौन है, इसके बाद इसमें किसी भी तर्क की गुंजाइश कहाँ बचती है। शुद्ध मन और लगन से पूजा करने के अलावा आप यह ध्यान रखें कि मन्त्रों का उच्चारण सही हो क्योंकि मन्त्र के गलत उच्चारण से उसका अर्थ गलत हो जायेगा जिसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
घर में रोज कौन सी आरती करनी चाहिए?
आरती करने के कुछ नियम हैं जिनका आप ध्यान रखें। शास्त्रों के अनुसार जिनमें स्कन्द पुराण प्रमुख है, वैसे तो पाँच समयों पर अलग-अलग आरती करने का प्रावधान है परंतु पूजा में सुबह और शाम की आरती अवश्य करनी चाहिए। किसी भी यज्ञ, शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए पूजा, किसी विशेष संस्कार जैसे विवाह इत्यादि का आयोजन जैसे मौंकों पर भी आरती अवश्य करी जाती है।
आरती में ज्योति जलायी जाती है और सनातन धर्म मे माना जाता है कि ज्योति के प्रकाश से तमस यानी अंधकार और अज्ञान रुपी बुराई का अंत होता है। सबसे पहले आप गणेश जी की आरती करने के बाद अपने इष्ट देवता की आरती करें और उसके बाद जिन देवता से आपको सबसे अधिक भक्ति के साथ जुड़ाव हो, उनकी आरती करें।
साधारण सरल आरती आप किसी भी दीपक में एक बाती लगा कर भी कर सकते हैं परंतु इसे और अच्छे से करने के लिए आप एक थाल में एक बड़े पंचमुखी दीपक में रुई की पाँच बातियाँ लगा लें, और उस में कपूर का भी एक छोटा सा दाना रख लें। भगवान की आरती संग्रह की किताब आप किसी भी पूजा की दूकान से ले सकते हैं।
आरती श्रद्धा के साथ लय में गा कर की जाती है और आरती गाते समय आप आरती के थाल को भगवान की मूर्ति के चारों ओर बायें से दायें की ओर यानी घड़ी की सुई की दिशा में घुमायें। साथ में घंटी, शंख और ताली बजा कर आप आरती की लय को मधुर बनायें।
इस तरह से जब आप सच्ची श्रद्धा की भावना, लगन और उच्चारण से भगवान की पूजा करेंगे तो विश्वास रखें भगवान भक्तों का हाँथ अवश्य थामते हैं, आपको हमेशा ही ऐसा अनुभव होगा जैसे कि भगवान ने आपको थाम रखा है और कोई अदृश्य शक्ति आपके हर कार्य में आपकी मदद कर रही है।