पूजा करने में अपनी सच्ची श्रद्धा लगाने के अलावा आप को कुछ और चीज़ों का भी बहुत ध्यान रखना है जिसका कभी-कभी लोग जल्दीबाज़ी में या पैसे की तंगी के कारण ध्यान नहीं रख पाते। अपने पूजा घर में कौन सी वो अशुभ तरीके व वास्तु की गलतियाँ हैं जिन्हें पूजा घर में बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए, तो चलिए जानते हैं इन्हें।
पूजा घर में कौन सी गलती नहीं करनी चाहिए?
सबसे पहली ज़रूरी बात, भगवान के स्वरुप और उनके अलग-अलग रूपों को समझें, उनमें से हर रूप घर में सामने रखने के लिए नहीं होता है। भगवान ने अपने विभिन्न रूपों में इंसानों की तरह क्रोध, दुःख और उदासी की भावनाएँ भी किस विशेष प्रयोजन के लिए दर्शायीं थीं जिनके चित्र और मूर्तियाँ आपको कई जगह दिख जायेंगे।
ध्यान रखें, भगवान के नकारात्मक भाव वाले ये चित्र और मूर्तियाँ भी घर में नकारात्मकता ही लायेंगे क्योंकि हम इंसानों का मूल स्वाभाव यही होता है कि हम जो भी देखते हैं उससे प्रभावित होते हैं और अनजाने में हम वैसे ही हो जाते हैं। यह एक स्वाभाविक मनोविज्ञान की बात है।
भगवान ने जो भी क्रोध या रौद्र भाव दर्शाया था वह दैत्यों या महापापियों के लिए था जिनका वध करके भगवान ने उनका उद्धार किया वह रूप पूजा के प्रयोजन के लिए सही नहीं माना जा सकता। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान के भाव भी मनुष्यों की ही तरह होते हैं, वो भाव के भूखे होते हैं।
और भगवान चाहते हैं कि हम मनुष्य उनकी भक्ति प्यार और मनुहार से करें, इसीलिए आप भगवान की ऐसी मूर्तियाँ व चित्र अपने पूजा कमरे में लगायें जो प्रसन्न मुद्रा में आशीर्वाद देती हुई अवस्था में हों। इससे आपका हृदय भी प्रसन्न एवं शीतल रहेगा और आपको भगवान अपने आशीर्वाद से अनुग्रहित करेंगे।
यहाँ तुलसी दास जी द्वारा कही गयी यह चौपाई अपनी याद मे ध्यान रखनी चाहिए कि जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखी तैसी जिसका अर्थ है जिसकी जैसी भावना होती है, उसे भगवान की मूर्ति वैसी ही नज़र आती है।
पूजा स्थान में क्या क्या रखना चाहिए?
मंदिर में प्रत्येक देवता की मूर्ति का मुख सही दिशा की ओर होना चाहिए। याद रखें, आपके मंदिर में मूर्तियाँ ज़मीन पर न रखी गयी हों, क्योंकि मूर्ति को नीचे रखने का अर्थ भगवान का अनादर होगा। आप अपनी श्रद्धा के अनुसार भगवान की मूर्तियाँ, चन्दन के टीके, अपनी पसंद की सुगंध की धूपबत्ती इत्यादि अपने पूजा कमरे में रख सकते हैं परंतु एक मुख्य बात यह ध्यान रखें कि पूजा कमरा कोई सजावट का कमरा नहीं है।
इसको ड्राइंग रूम बिल्कुल मत बनाइए क्योंकि इससे बनावटीपना आ जाता है और भगवान की भक्ति में बनावटीपने का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। यदि आपका बहुत बड़ा हवेलीनुमा घर है तो पूजा के लिए पूरा एक अलग कमरा और घर में एक आँगन भी होगा ही, यह पूजा का कमरा उत्तर-पूर्व कोण या ईशान कोण में हो तो सबसे अच्छा रहेगा।
आप पूजा कमरे में सीमेंट या मिट्टी से 2 या तीन परत का चबूतरा बनवा लें। उस पर गंगाजल छिड़क कर एक साफ़ कपड़ा बिछा दें (जो कि सादा हो, बिल्कुल भी फैंसी ना हो) और वास्तु-शास्त्र के नियमों के अनुसार देवताओं की मूर्तियों को उस पर आदर सहित रख दें।
पूजा में प्रयोग किए जाने वाले बर्तनों को जूठे बर्तनों से अलग धो कर पूजा कमरे में एक तरफ करीने से लगा दें। घर के आँगन में एक बड़ा तुलसी का पौधा लगायें और उसमें हर रोज़ अर्घ्य (सूर्य भगवान को उँगलियों के बीच से दर्शन करते हुए पौधे में जल चढ़ाना) दिया करें।
यदि आपके घर में पूजा के लिए स्थान आपने बैडरूम में या बाकी सामानों के साथ स्टोर रूम जैसी जगह में बनाया है, तो भी कोई समस्या नहीं है। आप वहाँ भी ध्यान रखें कि मंदिर की दिशा उत्तर-पूर्व कोण या ईशान कोण में हो। ऐसे में बेहतर यह रहेगा कि लकड़ी का छोटा सा बना-बनाया मंदिर आप अपने आस-पड़ोस के बढ़ई (लकड़ी का काम करने वाला यानी कारपेंटर) से ख़रीद लें।
प्रयास करें कि यह मंदिर ऐसा हो कि आपके पालथी मार कर बैठने पर उस मंदिर पर रखी मूर्तियां आपके मस्तक के सामान ऊंचाई पर नज़र आयें। अब उस पर एक बार गंगाजल छिड़क कर एवं कपड़ा बिछा कर आदर सहित मूर्तियाँ भी सजा कर रख दें। यहाँ पर तुलसी का पौधा आप अपने घर में छोटे गमले में लगा सकते हैं।
हर दिन सुबह नित्य कर्म और स्नान से शुद्ध हो कर पूजा के समय भगवान पर फूल चढ़ाना बहुत अच्छा है परंतु ध्यान रखें कि अगले दिन सुबह पिछले दिन के बासी फूल भगवान के सामने से अवश्य हटा दें क्योंकि सूखे बासी फूलों से नकारात्मक ऊर्जा फैलती है, चाहे वो भगवान पर ही क्यों ना चढ़े हुए हों।
इससे आपके पूजा कमरे में साफ़-सफाई और शुद्धता बनी रहेगी जिससे पूजा में आपका अच्छा मन लगेगा और यह सही तरीके से पूजा करने की पद्धति के अनुसार भी पूजा करना बहुत आवश्यक है।
घर में रखे पुराने मंदिर का क्या करना चाहिए?
मंदिरों का जीर्णोद्धार यानी पेंट, रिपेयर इत्यादि करा के फिर से नया बना सकते हैं परंतु यदि आपने उसको हटा कर अपने पूजा घर में नया मंदिर लाने का फैसला किया है तो उस पुराने मंदिर को कूड़े में बिल्कुल न फेंकें क्योंकि यह बड़ा अपशकुन और अनादर होगा।
अपना वह पुराना मंदिर किसी और को भी ना दें, चाहे वो आपका घनिष्ठ मित्र या रिश्तेदार ही क्यों ना हो। ऐसा इसलिए है कि मंदिर और साधक के बीच में एक बहुत पवित्र बंधन हो जाता है और उस तरह की दिव्यता किसी दूसरे के मंदिर से नहीं आ सकती। आप अपने घर का पुराना मंदिर आस-पास के किसी मंदिर में पुजारी जी को दे सकते हैं।
पुरानी मूर्तियों का क्या करना चाहिए?
टूटी हुई या पुरानी देव मूर्ति को आप अपने आस-पड़ोस के बड़े पीपल के पेड़ के नीचे मिटटी में दबा कर रख सकते हैं या अगर उस मूर्ति में कहीं कोई केमिकल मिला हुआ न हो तो किसी बहते हुए पानी के स्रोत जैसे नदी, नहर इत्यादि में बहा सकते हैं। आप उन पुरानी मूर्तियों को अपने पड़ोस के किसी मंदिर में वहाँ के पुजारी जी की इजाज़त से रख भी सकते हैं।
बहुत से लोग अपनी पुरानी या टूटी हुई मूर्तियों को किसी पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे छोड़ आते हैं परंतु वह सही नहीं है क्योंकि वह लावारिस पड़ी मूर्ति आँधी आने पर सड़क पर इधर-उधर फिरेगी या आवारा कुत्ते भी कई बार ऐसी मूर्तियों को ख़राब कर देते हैं। इन सब संभावनाओं के कारण देव मूर्तियों को कभी भी किसी पेड़ के नीचे ना छोड़ें, हमेशा उन्हे जमीन की मिट्टी मे दबा कर आयें।
मंदिर में रखे जल का क्या करना चाहिए?
जल जीवन देता है और ऋषियों ने भी पूजा करने के समय शुद्ध जल का बहुत महत्त्व बताया है। पूजा करने से पहले जल को हथेली पर रख कर शुद्धिकरण मंत्र पढ़ना बहुत ज़रूरी है, इससे आप में मन की शुद्धता आएगी। पूजा के विभिन्न चरणों में भी आपको इस जल की आवश्यकता पड़ेगी जैसे कुछ अन्य मंत्रों के विनियोग के समय, भोग लगाने के लिए इत्यादि।
पूजा के बाद आप इस जल को अपने घर पर लगे पौधों में प्रवाहित कर सकते हैं। याद रखें कि इस जल को आप किसी नाली या वॉशबेसिन में ना डालें क्योंकि यह गंदा पानी नहीं है और ऐसा करना भगवान का एवं पूजा पद्धति का अपमान होगा।
हमें पूजा से जुड़ी मर्यादाओं का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। आप अपने घर के मंदिर में रात भर एक लोटा जल भर के रखें और सुबह उस जल को अपने घर के हर कोने में छिड़क दें, इससे आपके घर में हर तरफ सकारात्मक ऊर्जा का वास रहेगा।
घर के मंदिर में कितने दीपक जलाना चाहिए?
दीपक की ज्योति आपके आस-पास चेतना का प्रकाश फैलाती है और यह एक तरह से सकारात्मक ऊर्जा का प्रकाश भी माना जाता है। आप जब दीपक की रौशनी को देखेंगे तो आपको अपने अंदर स्वतः ही बहुत सकारात्मक अनुभव होगा और आपको अच्छा लगेगा।
हिन्दू धर्म में प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों ने प्रकाश के इस विज्ञान को अपनाया और शास्त्रों में भी वर्णित है कि हमें पूजा करने के समय एक दीपक अवश्य जला कर रखना चाहिए। कितने दीपक जलायें, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस देवता की पूजा कर रहे हैं।
पुराणों में वर्णित है कि आरती हमेशा 5 या फिर 7 बाती ही सबसे अच्छी मानी जाती है। शाम के समय तुलसी जी के पौधे के नीचे घी का दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है, विशेषकर कार्तिक के महीने में इसका विशेष महत्त्व है।
पूजा घर में आप वहाँ भगवान के सामने बिल्कुल मुक्त हो कर जायें यानी मन से पूर्णतया शुद्ध। बहुत से लोग मानते हैं कि नहा-धो कर अगरबत्ती जला दी, एक आरती कर दी तो हो गयी पूजा। जी नहीं, वह पूजा सही मायने में भगवान की सच्ची पूजा तब होगी जब आप मन से भी साफ़ हो कर, बिना किसी विकार के भगवान की आराधना करेंगे।