जब हम अपने पुत्र या पुत्री के शादी-विवाह के बारे में सोंचते हैं तो हमारे मन में यही सवाल उठता है़ कि रिश्ते अपने परिचित व्यक्तियों अथवा अपने नाते-रिश्तेदारों के परिचितों में कियें जायें या अपरिचितों में। कोई भी माँ -बाप अपने बेटे या बेटी की खुशी के लिये अच्छा से अच्छा सोंचते हैं। उनके मन में यही भाव होते हैं कि काश! कोई ऐसी बहु या दामाद मिल जाये जो मेरे लड़के या लड़की को सदा खुश रखे।
आज समय में थोड़ा परिवर्तन आया है़। पहले के समय में लोग अपने नाते-रिश्तेदारों के कान में यह बात डाल देते थे कि हमारे पुत्र या पुत्री विवाह योग्य हों गये हैं। आपकी नजर में कोई अच्छी लड़की या लड़का हो तो बताना। लेकिन अब वैवाहिक रिश्तों का माध्यम ऑन लाइन हो चला है। लेकिन दोनों ही तरीकों का उद्देश्य यही है़ कि एक अच्छा जीवन साथी मिल जाये।
परिचतों में रिश्ते करना कितना अच्छा, कितना बुरा
यदि हम अपने पुत्र या पुत्री का विवाह किसी परिचित या नाते -रिश्तेदारों के परिचितों में करते हैं तो यह सोंचकर पहले से ही सुरक्षा का अनुभव करते हैं कि जान -पहचान वाले हैं इसलिए यह संबंध अच्छे ही होंगे। लेकिन इसमें कोई गारंटी जैसी बात नहीं होती है़। क्योंकि परिचतों में रिश्तेदारी करने से कभी-कभी लड़का और लड़की अपने लिए स्वतंत्र जीवन का अनुभव नहीं कर पाते।
परिचितों में वैवाहिक संबंध बनाने की दशा में पहले से ही रिश्तों की डोर से बंधे होने के बाद जब एक और नयी डोर बंध जाती है़ तो आपसी रिश्ते कभी-कभी उलझ जाते हैं। बल्कि अक्सर देखा गया है कि नये रिश्तों के चक्कर में पुराने रिश्ते खराब हो जाते हैं। इसलिए यदि आप परिचितों में अपने बेटे या बेटी के वैवाहिक संबंध जोड़ने जा रहें हैं तो सभी पहलुओं पर गम्भीरता से विचार कर लें। लेकिन कभी-कभी परिचितों में रिश्ते बनाने के अच्छे परिणाम भी देखने को मिलते हैं।
अपरिचितों से रिश्ते कितने सफल, कितने असफल
यदि हम अपने लड़के या लड़की का संबंध अपरिचितों में करते हैं तो कभी-कभी हमारा यह निर्णय बहुत अच्छा साबित होता है़। क्योंकि उन लोगों से पुराने रिश्ते न होने के कारण उन्हें हमसे कोई अपेक्षा नहीं होती है़ या यह कहना चाहिए कि उन अपरिचित व्यक्तियों के मन में हमारे प्रति पहले से कोई छवि नहीं बनी होती है़।
इसलिए यह नये रिश्ते आपके कुशल व्यवहार से सुंदर बन सकते हैं। ऐसे रिश्तों में आपके पुत्र या पुत्री अपने आपको स्वतंत्र महसूस करते हैं। लेकिन इसका एक दूसरा स्याह पहलू यह भी है़ कि हमें अपरिचितों से रिश्ते बनाते समय सजग रहना चाहिए। क्योंकि कभी-कभी जाने-अनजाने गलत लोगों से संबंध जुड़ जाते हैं।
परिचित हों या अपरिचित, बस रिश्तों की समझ जरूरी है़
हम जिस व्यक्ति सें अपने पुत्र या पुत्री का रिश्ता जोड़ने जा रहें हैं यदि उसे रिश्तों की समझ है़, उसमें बड़ो के प्रति सम्मान है़, छोटों के लिए प्यार है़ और बराबर वालों की भावनाओं की कद्र है़ तो ऐसी स्थिति में वैवाहिक संबंध परिचतों में हो या अपरिचितों में, रिश्ते मजबूत डोर में बंध जाते हैं। इसलिए शादी-विवाह के संबंधो को जोड़ते समय गोपनीय जाँच-पड़ताल अवश्य क़र लेना चाहिए, क्योंकि हमें अपने बेटे या बेटी के लिए बेस्ट लाइफ पार्टनर देने का पूरा प्रयास करना है़।