पूजा-पाठ कब करना चाहिये ? सुबह के समय अथवा शाम को? यदि सुबह के समय पूजा करें तो कब करें ? और कब पूजा न करें। क्या अपनी सुविधा के अनुसार जब भी समय मिले तब पूजा कर लेनी चाहिए अथवा नहीं। क्यों निश्चित समय पर ही पूजा करनी चाहिए ?
अगर पूजा का समय निश्चित है तो फिर सवाल यह उठता है कि क्या है वह निश्चित समय, जिस समय पूजा करने को उत्तम माना गया है? शास्त्रों में वर्णित समय के अनुसार पूजा करने का महत्व है? हिंदू धर्म शास्त्र पूजा करने के समय के संबंध में क्या कहता है ? आज हम ईश्वर की पूजा करने के सही समय से जुड़े हुये उन तमाम प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास करेंगे जो अक्सर हमारे-आपके मन – मस्तिष्क में उठते -रहते हैं।
क्या कहता है हिंदू धर्म शास्त्र
हम जब सुबह की पूजा बात करते हैं तो हिंदू धर्म शास्त्र में इस बात का स्पष्ट उल्लेख हैं कि प्रातःकाल में ईश्वर की आराधना ब्रम्हमुहूर्त में करना ही सर्वोत्तम है। तब ऐसे में हमारे मन में कई सवाल उठतें है कि यह ब्रम्ह महूर्त क्या होता है?
सुबह कितने बजे से कितने बजे तक के बीच का समय ब्रम्ह मुहूर्त कहलाता है? क्या है इस ब्रम्ह मुहूर्त का महत्व? आखिर क्या लाभ हैं इस ब्रम्ह मुहूर्त में पूजा- पाठ करने से? आइये जानते हैं इन सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर।
क्या होता है ब्रम्हमूहूर्त
ब्रम्ह मुहूर्त ,यह दो शब्दों से मिलकर बना है ब्रम्ह और मुहूर्त। इसका अर्थ यह है कि ऐसा समय जो ब्रम्ह से जुड़ा हुआ हो। हिन्दू धर्म शास्त्र के अनुसार रात के अंतिम पहर और सूर्य उदय के पहले के समय को ब्रम्ह महूर्त कहा जाता हैं।
उषाकाल के समय में दैवीय शक्तियाँ के जाग्रत-काल को ब्रम्हमहूर्त कहते है। यह समय देवी- देवताओं का समय कहलाता हैं। विद्वानों के अनुसार प्रातःकाल में सुबह 4 बजे से 5:30 तक के समय को ब्रम्हमुहूर्त कहते हैं। इस समय दैवीय शक्तियाँ सर्वाधिक शक्तिशाली होती हैं।
क्या है ब्रम्हमुहूर्त का महत्व
ऋषि मुनियों ने इस समय को दिन का स्वर्णिम काल कहा है। हिंदू धर्म शास्त्र इस समय निद्रा को वर्जित मानता है। बल्कि शास्त्रों का कथन है कि इस समय सोने वाले व्यक्तियों की आयु घटती है। उनका जीवनकाल कम होता है। ब्रम्ह मुहूर्त में जागने वाले व्यक्तियों में बल-बुद्धि और सौंदर्य की अधिकता होती है और मनुष्य दीर्घायु होता है।
विज्ञान कहता है कि ब्रम्ह मुहूर्त के समय वायुमंडल प्रदूषण रहित होता है। इस समय किया गया योग ,भ्रमण, संगीत-अभ्यास और शारीरिक वर्जिश आदि व्यक्तियों में शीघ्र योग्यता और क्षमता को बढ़ाने वाला होता है। यदि विद्यार्थी ब्रम्ह महूर्त में अध्ययन- मनन करता है तो वह मेघावी हो जाता है। क्योंकि उसे शीघ्र विद्यार्जन होता है।
क्यों करें ब्रह्म महूर्त में देवी-देवताओं का पूजन
हिंदू धर्म शास्त्र कहता है कि ब्रम्ह महूर्त में हमारे चारों ओर दैवीय शक्तियाँ विचरण करती रहतीं हैं अतः इस समय की गयी ईश्वरीय भक्ति अत्यंत प्रभावशाली रहती है। इस समय वातावरण शांत रहता है और चारों तरफ सकारात्मक ऊर्जा उपस्थित रहती है जिसके कारण पूजा-पाठ में मन एकाग्रचित रहता है।
इस समय मंदिरों के द्वार भी खोल दिये जाते हैं। वहाँ भी पूजा-पाठ आरंभ हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि ब्रम्ह मुहूर्त में की जाने वाली पूजा का प्रतिफल शीघ्र मिलता है। यदि किसी भी भक्त को भगवान की कृपा शीघ्र पाना है तो उसे ब्रम्ह मुहूर्त में ही उठकर पूजा करनी चाहिए।
पूजा सुबह करें अथवा शाम को
सच्चे हृदय से प्रभु को जब कभी भी पुकारा जाये ईश्वर भक्त के स्वर को सुनकर खिंचे चले आते है। पूजा सुबह करें अथवा शाम को, इस विषय को लेकर अधिक भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन दिन में किसी भी समय की जाने वाली पूजा यदि दिवस और मुहूर्त देखकर किया जाये तो प्रतिफल शीघ्र और अपेक्षा के अनुरूप प्राप्त होता है।