अक्सर आपने किसी के घर में बच्चा पैदा होने पर या किसी के घर में मृत्यु होने पर उस के घर नहीं जाना है या ग्रहण काल से पहले सुना होगा कि पूजा-पाठ नहीं करनी है और मंदिर के पट बंद रहेंगे, ये सब सूतक लग जाने के कारण होता है। आइए जानते हैं यह सूतक क्या है और इसमें क्या-क्या कार्य नहीं करने चाहिए।
सूतक क्या होता है?
आम भाषा में कहें तो सूतक अशुद्धि का समय है जिसमें सूतक की अवधि में अपने घर से बाहर नहीं निकलते हैं और बाहर वालों का भी उस घर में आना-जाना वर्जित होता है जहाँ सूतक लगा है। शास्त्रों के अनुसार जन्म के समय जो अशुद्धि नाल काटने से होती है, उसके प्रायश्चित स्वरूप सूतक माना जाता है।
वहीं किसी की मृत्यु के पश्चात जो कर्मकांड होते हैं उसमें होने वाली गतिविधियों के प्रायश्चित स्वरूप सूतक माना जाता है जिसको पातक कहते हैं। इसी प्रकार महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान केवल उस महिला के लिए और ग्रहण काल के दौरान सभी लोगों के लिए सूतक माना जाता है।
सूतक का समय
इन सूतक और पातक के लगने की अवधि और दिन अलग-अलग होते हैं। जन्म के समय लगने वाला सूतक 10 दिनों का होता है। इस अवधि के बाद घर में हवन का आयोजन किया जाता है, सूतक के बाद संतों द्वारा भगवान की कथा सुनी जाती है और फिर घर के सभी लोग पहले की तरह अपने रोजमर्रा के कामों में लग जाते हैं।
प्राचीन शास्त्रों के अनुसार यदि ब्राह्मण के घर में किसी की मृत्यु हो जाए तो उस घर में 10 दिन का सूतक माना जाता है, वहीँ क्षत्रिय के घर में 12 दिन का, वैश्य के घर में 15 दिन का और शूद्र 1 महीने का सूतक लगा मानते हैं, किंतु नए ज़माने में नौकरी और काम-धंधे की भाग-दौड़ की वजह से ज्यादातर लोग 10 दिन का ही सूतक मनाते हैं।
सूतक में वर्जित कार्य
आइए अब जानें कि सूतक में आपको कौन से कार्य नहीं करने चाहिए और किन नियमों का पालन करना चाहिए।
- अपने घर-परिवार के बाहर के व्यक्ति को ना ही मिलें और ना छूएं|
- कोई भी धार्मिक या मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए और ना ही ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए|
- जन्म के कारण लगे सूतक में आपको भगवान का स्मरण व भजन कीर्तन करके समय बिताना चाहिए|
- परिवार में किसी की मृत्यु के कारण पातक लगने पर संबंधियों को गरुड़ पुराण पढ़ना या किसी विद्वान पंडित से उसकी कथा सुननी चाहिए|
- जिस परिवार में सूतक लगा हो उस परिवार के लोग मंदिर दर्शन को भी नहीं जा सकते और ना ही उन्हें वहाँ के दान पात्र में पैसे डालने चाहिए। सूतक के समय किसी को भिक्षा भी नहीं देनी चाहिए, जब तक की आवश्यक ना हो।
- जन्म के कारण लगे सूतक में उस जन्मे बच्चे की माँ को रसोई घर में प्रवेश नहीं करना चाहिए।
- सूतक या पातक का समय समाप्त हो जाने पर व्यक्ति को किसी पवित्र तीर्थ का जल अपने नहाने के पानी में मिला कर शुद्धि स्नान करना चाहिए या किसी पवित्र नदी में जा कर भी अपने आप को पवित्र किया जा सकता है|
- सूतक लगे परिवार के लोग केवल मानसिक जाप या स्मरण कर सकते हैं। उनको माला लेकर कोई जप करना भी वर्जित है और ना ही उन्हें कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ना चाहिए।
- यदि सूतक के समय कोई व्रत पहले से करते आ रहे हों तो सूतक के समय में भी उसे करना जारी रखा जा सकता है परंतु किसी व्रत का उद्यापन सूतक काल में नहीं किया जाना चाहिए।
सूतक का वैज्ञानिक तर्क
आपने अक्सर सुना ही होगा कि नई पीढ़ी के लोग सूतक पातक नहीं मानते परंतु आइए हम आपको बताते हैं कि इन नियमों का वैज्ञानिक तर्क क्या है। पुराने समय में घर की स्त्री को पूरे कार्य संभालने होते थे। उनकी सहायता के लिए सामान्यतया कोई नौकर-चाकर नहीं होते थे।
बच्चे के जन्म के दौरान महिलाओं का शरीर कमजोर हो जाता है और जन्म देने के दौरान उन्हें अत्यधिक दर्द भी झेलना पड़ता है। इसलिए पुराने समय में सूतक माना जाता था ताकि उस समय महिला को पूर्ण विश्राम दिया जाए और वह आराम कर के पहले जैसी चुस्त और स्वस्थ हो जाए। इससे नए जन्मे बच्चे को संक्रमण का भी भय नहीं रहता क्योंकि कोई भी बाहरी व्यक्ति उसके आसपास ना आता था और ना ही उसे खिलाता था।
वहीं मृत्यु के पश्चात लगने वाले पातक का कारण है कि जो लोग किसी के भी दाह संस्कार में शामिल होने के लिए शमशान जाते हैं तो वह अपने साथ संक्रमण ला सकते हैं। जिसने सारे कर्मकांड किए हैं, वह सबसे ज्यादा संक्रमित हो सकता है, इसलिए वहाँ पातक के नियमों का पालन किया जाता है और इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि संक्रमण बाकी लोगों में ना फैले।
देखा आपने, हमारे पूर्वजों ने जो सूतक और पातक के नियम बनाए उनके बहुत ही अच्छे वैज्ञानिक कारण हैं। ये नियम यह सुनिश्चित करते हैं की हम सबका जीवन स्वस्थ और सुरक्षित रहे।