आपने अक्सर ही अपने घर के बड़े-बुजुर्गों से किसी विशेष दिशा में मुंह करके पूजा करने का निर्देश सुना होगा किंतु क्या कभी आपने सोचा है कि पूजा करते समय दिशा का क्या महत्त्व है, या पूजा-पाठ करते समय आप को अपना मुंह किस दिशा में रखना चाहिए? क्या वास्तव मे इसका महत्व है भी।
अलग-अलग लोगों से आपने इस बारे में अलग-अलग तरह के विचार सुने होंगे, क्योंकि इस बारे में विभिन्न विद्वानों ने अपने अलग-अलग तरह के मत व्यक्त किए हैं। पूजा करने के सही समय के बारे में आज हम शास्त्रों पर आधारित कुछ तर्कपूर्ण विचारों से आपको इस बारे में बतायेंगे कि पूजा करने का सबसे अच्छा समय क्या है।
आप प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों को संसार के सबसे पहले और महानतम वैज्ञानिक कह सकते हैं। शास्त्रों पर आधारित जानकारी को निश्चित ही सही माना जा सकता है क्योंकि ये महान ऋषि-मुनियों द्वारा रचित हैं। जिन्होंने अपनी पूरी उम्र इस ज्ञान को पाने के लिए लगा दी हो तो उनसे अच्छा इस बारे में और कोई नहीं बता सकता। आइए, इस विषय पर गहरायी से अध्ययन करें और इस बारे में विस्तार से जान लें।
पूजा करने के लिए सही दिशा क्या है?
सदियों से प्रचलित वेदों से जुड़ी मान्यताओं में उत्तर दिशा में मुंह करके पूजा करना बहुत शुभ माना गया है। वास्तु शास्त्र में उत्तर दिशा को धन के देवता कुबेर की दिशा बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि यह दिशा सुख, समृद्धि और विचारों में सकारात्मकता लाती है।
कुछ वेदों में उत्तर दिशा को अक्सर ‘देवताओं का प्रवेश द्वार’ माना जाता है क्योंकि पौराणिक काल से जो ब्रह्मांड का केंद्र माने गए हैं, वो पवित्र सुमेरु पर्वत इसी दिशा में है और भगवान शंकर का निवास स्थान कैलाश पर्वत भी उत्तर दिशा में ही है।
वेदों से भिन्न मत रखते हुए, पुराणों में पूजा करते समय पूर्व दिशा की ओर मुंह करने को सबसे शुभ दिशा के रूप में बताया गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सूर्य का उदय पूर्व दिशा से होता है, जिसको दिन की नयी शुरुआत और दिव्य प्रकाश का प्रतीक माना जाता है।
वैसे तो पुराणों ने सर्वोत्तम दिशा पूर्व की बतायी है परंतु यह बात ध्यान देने की है कि उन पुराणों में से किसी में भी उत्तर दिशा को मुंह कर के पूजा करने को गलत भी नहीं माना गया है, इसलिए आप निश्चित ही उत्तर या पूर्व किसी भी दिशा में मुंह करके पूजा कर सकते हैं, दोनों ही अति शुभ हैं।
मंदिर में दिया का मुंह किधर होना चाहिए?
पूजा करने के दौरान दीपक जिस दिशा में जलाया जाता है, उसका भी बहुत आध्यात्मिक महत्व होता है। अग्नि पुराण में वर्णित है कि आप जिस भगवान की पूजा कर रहे हैं, उनकी ऊर्जा के आधार पर सही दिशा में दीपक को मंदिर के पूर्व या उत्तर में रखा जाना चाहिए परंतु लौ किसी भी दिशा में हो सकती है।
चूंकि पूर्व दिशा सूर्य और प्रकाश से जुड़ी है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि उस दिशा में दीपक जलाने से व्यक्ति के जीवन से अंधकार दूर हो जाता है। पूर्व दिशा की ओर मुख वाला दीपक धन, विद्या और जीवन में प्रगति को बढ़ावा देता है।
वहीं दूसरी ओर, चूंकि उत्तर दिशा कुबेर की दिशा मानी गयी है, उत्तर दिशा की ओर मुख वाला दीपक धन और समृद्धि लाने वाला माना जाता है। इसलिए, चाहे आप आत्मज्ञान और नई शुरुआत के लिए अपने दिये का मुंह पूर्व की ओर करें या समृद्धि और मानसिक शांति के लिए उत्तर की ओर, दोनों दिशाएं में दिया जलाना बहुत पवित्र होगा।
दुर्गा जी का मुंह किधर होना चाहिए?
दुर्गा माँ की पूजा में दुर्गा जी का मुख किस दिशा में हो, यह बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। कई मंदिरों और घरों में मां दुर्गा की मूर्ति पूर्व दिशा की ओर मुख करके रखी जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह एक रक्षक के रूप में उनकी भूमिका और बुरी ताकतों को दूर रखने की उनकी क्षमता का प्रतीक है।
हालाँकि, शास्त्रों में कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ माँ दुर्गा को पश्चिम या दक्षिण की ओर मुख करके वर्णित किया गया है। देवी भागवत पुराण के अनुसार, माँ दुर्गा सृजन और विनाश की शक्तिशाली ऊर्जाओं से जुड़ी मानी जाती हैं, इसलिए इनकी पूजा करते समय दुर्गा जी का मुख पूर्व दिशा की ओर रखना सबसे शुभ माना जाता है।
वहीं कुछ दूसरे विद्वान पंडितों के मत के अनुसार, उत्तर दिशा की ओर मुख वाली माँ दुर्गा आध्यात्मिक और भौतिक दोनों तरह की शक्तियों का प्रतीक हैं और उसी तरफ उनका मुख होना चाहिए।
इसलिए, अगली बार जब आप पूजा करें, तो एक क्षण रुककर यह विचार करें कि आप किस दिशा की ओर मुख कर रहे हैं। क्या यह आपके पूर्वजों से चली आ रही परंपरा है या आपने इसे अपनी मान्यताओं के आधार पर चुना है? कारण जो भी हो, याद रखें कि पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू वह जुड़ाव है जिसे आप परमात्मा के साथ महसूस करते हैं, आपकी भावना सच्ची है तो सब सही है।