प्राण प्रतिष्ठा हिंदू धर्म का एक बड़ा अनुष्ठान है। जिसमें किसी मूर्ति में विराजमान होने के लिये उस मूर्ति के देवी अथवा देवता का आवाहन किया जाता है कि हे दिव्य शक्ति, आइये और धरतीवासियों के कल्याण के लिये इस मूर्ति में स्थापित हो जाइये।
लेकिन किसी मूर्ति में, कभी भी और किसी भी समय प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जा सकती, बल्कि यह पावन कार्य एक निश्चित महूर्त में ही किया जा सकता है। धर्मशास्त्रों में प्राण प्रतिष्ठा के लिये अलग-अलग देवी देवताओं के भिन्न-भिन्न महूर्त निश्चित किया गये हैं।
आइये जानते हैं कि विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा के लिये कौन – कौन सा महूर्त सुनिश्चित किया गया है ? देखते हैं कि किसी देवी अथवा देवता की स्थापना के लिये कौन सा दिन व समय शुभ माना गया है। हम सभी जानते हैं कि कोई भी सामान्य स्थान यूं ही मंदिर नहीं बन जाता।
इसके लिये मंदिर का निर्माण कर उसमें मूर्ति स्थापित की जाती है। फिर उस मूर्ति में विद्वान पंडितों से मंत्रोच्चार द्वारा प्राण – प्रतिष्ठा कराई जाती है। उसके बाद ही ऐसे स्थान पर पूजन करना फलदायी माना गया है। आइये अब हम जानते हैं कि धर्म ग्रंथो में देवी- देवताओं का प्राण प्रतिष्ठा मुहूर्त कब-कब उचित माना गया है।
देवताओं के लिये प्राण -प्रतिष्ठा का मुहूर्त
सबसे पहले हम हिंदू धर्म के देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा के लिये शास्त्रों में बताये गये शुभ दिन की चर्चा करते हैं, कि मंदिर में स्थापित देवताओं की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा कब की जानी चाहिए। अधिकांश रूप से सतोगुणी देवताओं की स्थापना के लिये उत्तरायण मास उचित माना जाता है।
भगवान श्री राम और विष्णु जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिये वैशाख माह के साथ-साथ अक्षय तृतीया, श्री राम नवमी, विजया दशमी और दीपों के पर्व दीपावली आदि के मुहूर्त को उत्तम माना गया है। वहीं हनुमान जी की मूर्ति के लिये हनुमान जयंती सबसे अधिक शुभ दिन है। भगवान शिव की मूर्ति की स्थापना का सर्वोत्तम समय श्रावण मास में रखा गया है। जब कि भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिये उत्तरायण मास, भाद्र कृष्णाष्टमी आदि के दिन अच्छे माने जाते हैं।
देवी माँ की प्राण प्रतिष्ठा के लिये महूर्त
अब हम बात करते हैं हिंदू धर्म की आराध्य देवियों की, कि कब उनकी मूर्तियों की स्थापना की जाती है ? यदि हम शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा की बात करें तो इनकी मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा का उचित महूर्त नवरात्रि के प्रथम दिन को माना गया है। विद्या की देवी माँ सरस्वती की स्थापना वसंत पंचमी के दिन की जाती है।
किसी भी मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा का बहुत अधिक महत्व है। ईश्वर के परम भक्त गोकुल चंद्र सैनी जी ने अपने अनुभवों को साझा करते हुये कहा है कि आप भगवान की जिस भी मूर्ति में सजीवता का अनुभव करेंगे वह आपको प्राणवान दिखाई देने लगेगी। आपने देखा होगा कि बडे़ मंदिरों में भगवान को जाड़ों में गर्म कंबल या शॉल आदि ओढ़ाई जाती है। क्योंकि उन्हें प्राण प्रतिष्ठा के बाद सजीव माना गया है। फिर कहा भी गया है कि-
जाकी रही भावना जैसी।
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ॥