काशी विश्वनाथ मंदिर खुलने का समय

काशी विश्वनाथ मंदिर

काशी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है़, का + शी । ‘का’ अर्थात कामना, और ‘शी’ का अर्थ है़ शीघ्र पूर्ण कराने वाली। कहने का अर्थ यह है कि जहाँ भक्तों की कामना शीघ्र पूर्ण होती है़ वह नगरी काशी कहलाती है़। कहते हैं कि प्राचीन काल में इस काशी क्षेत्र में देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों ने इतना अधिक जप -तप किया कि इसके परिणाम स्वरूप यह काशी नगरी अत्यंत पुण्य क्षेत्र बन गयी।

मान्यता है़ कि यहाँ काशी में आने के बाद भगवान शिव भक्तों को अपनी शरण में ले लेते हैं और उसकी संपूर्ण तृष्णा मिट जाती है़। उत्तर प्रदेश का काशी (वाराणसी) वह क्षेत्र है़ जहाँ की धरती पर पाँव रखते ही तन -मन पवित्र हो जाता है़। मन में यही भाव उठते हैं कि हे भोले बाबा, हमारे हृदय में स्थान ग्रहण कर लीजिए।

हमें देव लोक तुल्य इस काशी नगरी का महत्व पौराणिक ग्रंथों के पन्नों में देखने को मिलता है़। कहा जाता है़ कि काशी भगवान शंकर के त्रिशूल पर टिकी है़। इसलिए इस काशी नगरी का कण कण शिवमय है। वाराणसी वह स्थान है जहाँ प्राचीन काल से ही शिक्षा, साहित्य, कला ,संगीत एवं भक्ति की गंगा की धारा बहती रही है।

पंडित मदन मोहन मालवीय के सपनों का शहर वाराणसी आज भी भारत देश के मस्तक सरीखा है। इसे यदि मंदिरों और घाटों का नगर कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। वाराणसी में अनेकों विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं। जिसमें से काशी विश्वनाथ मंदिर का नाम सर्वोच्च स्थान पर है। काशी विश्वनाथ मंदिर वह मंदिर है जहां प्राचीन भारत का प्रतिबिंब आज भी दिखाई देता है।

बदल गया है काशी विश्वनाथ मंदिर

बदलते दौर में अब काशी विश्वनाथ मंदिर बनारस की पहचान बन गया है। आज से लगभग दो साल पहले साल 2021 में हुए इस मंदिर के कायाकल्प के बाद से इसकी पूरी तस्वीर ही बदल गई है। अब काशी विश्वनाथ मंदिर में बने कॉरिडोर का विस्तार होने से यहाँ श्रद्धालुओं का तांता वर्ष भर लगा रहता है। घाट से लेकर मंदिर के गर्भगृह तक मंदिर का पूरा स्ट्रक्चर ही बदल गया है। वैसे इतिहास की बात करें तो इस मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। काशी देवों के देव महादेव की नगरी है।

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास

वैसे तो काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास कितना पुराना है इसके बारे मे कोई प्रामाणिक तथ्य उपलब्ध नहीं हैं किन्तु वर्तमान मे जो काशी विश्वनाथ मंदिर है उस का इतिहास 17 वीं शताब्दी से भी पूर्व का है। औरंगजेब के द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर के विध्वंस कर देने के लगभग 75 सालों बाद, कहते हैं कि एक बार महारानी अहिल्याबाई होल्कर काशी यात्रा के लिए आयीं थीं।

एक दिन वह गंगा नदी के एक घाट पर गंगाजल का स्पर्श कर सूर्य देव को अर्ध्य दे रही थीं कि अचानक उनके कानों में ॐ नमः शिवाय का स्वर गूंजा। उन्हें लगा कि भगवान शंकर स्वयं उन्हें इस बात की प्रेरणा दे रहे हैं कि उनका एक भव्य मंदिर काशी (वाराणसी) में स्थापित किया जाये।

काशी विश्वनाथ मंदिर का फोटो

महारानी अहिल्याबाई होल्कर इंदौर क्षेत्र की शक्तिशाली शासक थीं, जो धर्म-कर्म के कार्यों में बहुत रुचि रखतीं थीं। कहते हैं कि महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने वाराणसी स्थित गंगा नदी के उस घाट पर उसी समय यह संकल्प लिया कि वह इसी काशी में जो पूरे विश्व के नाथ (स्वामी) हैं उन्ही विश्वनाथ (यानी महादेव) का विशाल और भव्य मंदिर बनवायेंगी।

इस मंदिर के निर्माण के लिए देश-विदेश के श्रेष्ठ वास्तुकारों को आमंत्रित किया गया। कहते हैं कि महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने स्वयं अपनी देख-रेख में इस मंदिर का निर्माण कराया। वर्ष 1780 में पवित्र नगरी काशी को काशी विश्वनाथ का एक भव्य और उत्कृष्ट मंदिर मिल गया।

इस मंदिर में भगवान शिव और माता भगवती अपने भक्तों पर कृपा बरसा रहें हैं। इस धाम में भगवान शिव और माता पार्वती के एक ही स्थान पर विराजमान होने के कारण इसे शिव एवं शक्ति का धाम कहा जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर बारह स्वयंभू ज्योतिर्लिंगों में से एक है़।

महाराणा रणजीत सिंह भी बाबा विश्वनाथ के परम भक्त थे

यूँ तो बाबा विश्वनाथ का पूरा विश्व दीवाना हैं। क्योंकि इस मंदिर के चौखट पर सर झुकाते ही बाबा भोले नाथ भक्तों को अपनी कृपा से मालामाल कर देते हैं। इंतिहास साक्षी है़ कि इस धाम के दरबार में देश-विदेश की प्रसिध्द हस्तियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है, जिसमें महाराणा रणजीतसिंह जैसे महान योद्धा भी थे।

कहते हैं कि जब महाराजा रणजीतसिंह इस काशी विश्वनाथ धाम में आये तो उन्होंने बाबा विश्वनाथ से वायदा किया कि वह इस मंदिर को सोने का बना देंगे। उसके बाद महाराणा रणजीतसिंह ने अपना वायदा पूरा किया । कहते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर को सोने का बनाने के लिए महाराणा रणजीतसिंह ने अपने राज्य का खजाना खोल दिया।

महाराणा रणजीत सिंह ने इस काशी विश्वनाथ की भव्यता मे चार चाँद लगाने के लिए दिल खोल कर खर्च किया। जिसके फलस्वरूप वर्ष 1853 में काशी विश्वनाथ मंदिर का स्वरूप ही परिवर्तित हो गया। कहते हैं कि इस काशी विश्वनाथ मंदिर को सुसज्जित करने के लिए महाराणा रणजीतसिंह ने अरबों रुपये का सोना लगा दिया।

कशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े हुए कुछ रोचक तथ्य हैं

काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य हैं, जो लोक मान्यताओं मे प्रचलित हैं। पौराणिक ग्रंथों से लेकर यहां के स्थानीय वृद्ध और पुराने लोग कई ऐसी किस्से कहानियां सुनाते हैं, जिन्हे सुनने मे अचरज होता है लेकिन उसके पीछे वो वैज्ञानिक आधार भी बताते हैं। तो आइए इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों को हम आपको बताते है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की यह नगरी उनके त्रिशूल की नोक पर टिकी हुई है। ये एक ऐसी प्रचलित मान्यता है जिस पर बनारस का हर व्यक्ति विश्वास करता है। संभव है कि इस तथ्य कि व्याख्या आध्यात्मिक प्रतीकों के रूप मे की जा सके।

पौराणिक ग्रंथों मे आयी कथाओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि काशी में भगवान विष्णु के अश्रु गिरे थे, जिससे बिंदु सरोवर का निर्माण हुआ था। साथ ही पुष्कर्णी का निर्माण भी उन्हीं के चिंतन से हुआ था। इसके बारे मे कम लोग जानते हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर का फोटो

काशी को भारत की सात मोक्षदायिनी नगरियों मे से एक गिना जाता है। भारतवर्ष की सात मोक्षदायिनी पुरियाँ हैं- अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवन्तिका। काशी को मोक्षदायिनी इसलिए कहा जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि जो मनुष्य यहां शरीर त्यागता है वह सांसारिक तृष्णाओं समेत आवागमन के बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष यानी मुक्ति की प्राप्ति होती है।

स्थानीय प्रचलित मान्यताओं के अनुसार बाबा विश्वनाथ के दर्शन से पहले उनके गण भैरवनाथ के दर्शन को अनिवार्य माना जाता है। मान्यता है कि काशी के कोतवाल अर्थात काल भैरव की अनुमति के बिना भगवान भोलेनाथ के दर्शन का फल प्राप्त नहीं होता है।

एक मान्यता के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ तो सूर्य की पहली किरण काशी पर ही पड़ी थी। पृथ्वी के निर्माण संबंधी जानकारियों के मामले मे विज्ञान अभी काफी पीछे है, इसलिए इस बारे मे निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता ।

इस मंदिर के ऊपर सोने का छत्र लगा हुआ है, जिसे महाराजा रणजीत सिंह ने लगवाया था । मान्यता है कि इस छत्र के दर्शन से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.। बहुत से लोग इस पर विश्वास करते हैं ।

यह मंदिर दो हिस्सों में बंटा हुआ है। दाहिनी ओर मां भगवती और बाईं ओर भगवान शिव विराजमान हैं। मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा की तरफ है और बाबा विश्वनाथ का मुख अघोर की तरफ है। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार काशी विश्वनाथ मंदिर का केवल स्पर्श करने से ही व्यक्ति को राजसूय यज्ञ का फल मिलता है।

स्थानीय लोगों कि मान्यता के अनुसार अगर भक्त एक बार पवित्र गंगा नदी में स्‍नान कर के इस मंदिर मे भगवान के दर्शन कर ले तो वो आवागमन के बंधन से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मंदिर के अंदर, निम्नलिखित गतिविधियाँ निषिद्ध हैं। नीचे दिये गए कार्यों को मंदिर परिसर के अंदर करना पूर्णतया निषिद्ध है ।

केवल सनातन धर्म को मानने वाले हिन्दू ही मंदिर मे प्रवेश कर सकते हैं, गैर-हिंदुओं को मंदिर परिसर के अंदर जाने की अनुमति नहीं है। .
मंदिर के अंदर किसी भी प्रकार की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की अनुमति नहीं है। अगर आप ऐसा करते हैं तो संदिग्ध के रूप मे पकड़े जा सकते है और आपके ऊपर जुर्माना भी लगेगा ।
मंदिर के अंदर खाना-पीना वर्जित है। आप को खाना पीना हो तो मंदिर परिसर के बाहर आ कर खा पी सकते हैं ।

मोक्ष का धाम है़ काशी विश्वनाथ मंदिर

पौराणिक काल से ही काशी की महिमा का वर्णन किया जाता रहा है़। कहते हैं कि जिस व्यक्ति पर भगवान शिव की कृपा हो जाती है़ उसका संपूर्ण जीवन धन्य हो जाता है़। वैसे तो वर्ष भर श्रध्दालु इस पावन स्थान पर भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के दर्शन के लिए आते रहते हैं लेकिन श्रावणमास में काशी विश्वनाथ मंदिर में भक्तों का मेला लग जाता है़।

मंगला आरती होती है़। लोग- बाग पावन गंगा नदी में स्नान कर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए जाते हैं। चारों तरफ ॐ नमः शिवाय और हर- हर महादेव का स्वर गूंजने लगते हैं। कहते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर मनुष्य के लिए मोक्ष का धाम है़।

पंडित रमाशंकर त्रिवेदी इस धाम का गुणगान करते हुये कहते हैं कि काशी विश्वनाथ वह चमत्कारी धाम है़ जहाँ भक्तों का रोग -शोक भगवान भोले नाथ हर लेते हैं। इसलिए तो भक्तगण हर- हर महादेव का जयकारा लगाते हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर के खुलने का समय

काशी विश्वनाथ बनारस का सबसे प्रमुख मंदिर है। इसके दर्शन के लिए बहुत दूर-दूर से और विदेशों से भी लोग यहां पहुंचते हैं। जहाँ तक मंदिर के कपाट खुलने की बात है तो काशी विश्वनाथ मंदिर रात्री मे 2:30 बजे खुल जाता है। यहां प्रतिदिन पांच बार भगवान शिव की आरती होती है।

काशी विश्वनाथ मंदिर आरती का समय

पहली आरती सुबह 3 बजे और आखिरी आरती रात 10.30 बजे की जाती है। इसके साथ ही घाटों पर गंगा जी की आरती की जाती है, जिसे देखने के लिए लोगों का हूजूम उमड़ता है। काशी विश्वनाथ मंदिर की आरती और घाट पर होने वाली गंगा जी की आरती विश्व प्रसिद्ध है। भारत के वर्तमान शासक नरेंद्र मोदी जी के साथ विश्व के बड़े-बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्ष इस आरती को देखने यहाँ आ चुके हैं ।

मंगला आरती से बाबा विश्वनाथ का कपाट भक्तों के लिए खुलता है। उसके बाद दोपहर के भोग और शाम को सप्तऋषि फिर रात में श्रृंगार और शयन आरती की जाती है। इन सभी आरती मे सप्तऋषि आरती सबसे विशेष मानी जाति है। इस आरती को अलग अलग क्षेत्र के सात ऋषि या ब्राह्मण करते हैं, जो अलग-अलग गोत्र के होते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर में ये परंपरा हजारों वर्षों से भी अधिक समय से चली आ रही है।

इस समय उमड़ती है भक्तों की भारी भीड़

वैसे तो वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता हमेशा ही लगा रहता है। 12 स्वयंभू ज्योतिर्लिंग में से एक ज्योतिर्लिंग होने की वजह से काशी विश्वनाथ मंदिर का बहुत महत्व है और इनके दर्शन के लिए लोग अक्सर ही यहां पहुंचते हैं। वैसे तो सावन के महीने में काशी विश्वनाथ मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। लेकिन इसके अलावा महाशिवरात्रि और नाग पंचमी पर बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए भी अत्यधिक संख्या मे लोग पहुंचते हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर की कहानी

यह वर्ष 1900 का वह समय था, जब काशी को उच्च शिक्षा के लिए एक विश्वस्तरीय शिक्षण संस्थान की आवश्यकता थी। आरंभ से ही महामना मदन मोहन मालवीय के मन- मस्तिष्क में एक हिन्दू विश्वविधालय स्थापित किये जाने की परिकल्पना थी।

उन्हें अपने इस स्वप्न को साकार रूप देने के लिए काशी नगरी ही सर्वथा उचित लगी। उन्होंने इस संबंध में वार्तालाप करने के लिए उस समय के नेता करमचंद गाँधी से संपर्क किया। तब गांधी ने महामना मदन मोहन मालवीय जी को यह परामर्श दिया कि वे काशी विश्वनाथ भगवान महादेव का आशीर्वाद लेकर अपने हिन्दू विश्वविधालय के संकल्प को पूर्ण करने के लिए जनसंपर्क हेतु निकल पड़ें।

कहते हैं कि अपने अंतर्मन से प्रेरणा पाकर महामना मदन मोहन मालवीय जी ने काशी हिन्दू विश्वविधालय की निर्विध्न स्थापना पूर्ण कराने के लिए विश्वनाथ बाबा की स्तुति की। बताते हैं कि उसके बाद तो काशी विश्वनाथ मंदिर धाम के भोले बाबा मालवीय जी के साथ ही हो लिए।

वे जहाँ भी बी. एच. यू की स्थापना के लिए आर्थिक सहयोग माँगने जाते तो लोग उन्हें उनकी माँग से दोगुना धन देते। क्योंकि उनके असाधारण व्यक्तित्व के अतिरिक्त शिव एवं शक्ति का प्रताप जो उनके साथ था।

Sharwari Gujar Shafaq Naaz सोशल मीडिया पर छायी हुई हैं शमा सिकंदर Vahbiz Dorabjee बला की खूबसूरत अभिनेत्री हैं Avneet Kaur net worth kenisha awasthi Rashmi Desai का बोल्ड लुक सोशल मीडिया पर छाया हुआ है नेहा शर्मा (Neha Sharma) एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं मोनालिसा का बोल्ड अंदाज उनके फोटोशूट में नज़र आया रश्मि देसाई (Rashami Desai) का बोल्ड फोटोशूट सोशल मीडिया पर छाया Famous soap opera star Robyn Griggs passed away हुमा कुरैशी (Huma Qureshi) अपने फोटो शूट की वजह से चर्चा में है आजकल pooja hegde age janhvi kapoor boyfriend name 2022 जानिये अभिनेत्री स्नेहा पॉल (Sneha Paul) के बारे में सब कुछ आलिया भट्ट (alia bhatt) की आने वाली फिल्मे कौन सी हैं मॉडल और अभिनेत्री शोभिता राणा (shobhita rana) के दीवाने हैं फैंस मलयालम फ़िल्मी दुनिया की बेहतरीन अदाकारा है इनिया (Iniya) बॉलीवुड की सफल अभिनेत्रियों में से एक हैं Ileana D’cruz खुशी गढ़वी (Khushi Gadhvi) के कर्वी फिगर के दीवाने है फैंस अपनी फ़िटनेस को ले कर संजीदा रहती हैं shweta tiwari अपनी निजी ज़िन्दगी सीक्रेट ही रखती हैं Anveshi jain सितंबर में पैदा हुए व्यक्तियों के प्रेम को समझ पाना बहुत मुश्किल है ओवरवेट Rashmi Desai ने सिर्फ वॉक करके घटाया अपना वज़न