वैष्णो देवी मंदिर
यह माता रानी का वह सच्चा दरबार है़ जो हर किसी को अपनी ओर खींचता है। क्योंकि यह वह चौखट है जहाँ से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं लौटता। जम्मू के त्रिकूट पर्वत पर विराजमान माता वैष्णो देवी, जिन्हें जया देवी, देवी कल्याणी, अर्ध्य कुमारी, आध्या शक्ति, ब्रह्म कुमारी आदि न जाने कितने नामों से भक्तों के द्वारा पुकारा जाता है।
लेकिन बेटा हो अथवा बेटी, माँ को किसी भी नाम से पुकारें लेकिन माँ तो आखिर माँ ही होती है। जिसकी आंखों में होती है करुणा, ममता और अपार स्नेह। माँ अपनी बेटी या बेटे को कभी दुखी नहीं देख सकती। इसीलिए उनको उदास देख उठ खड़ी होती है हाथों में त्रिशूल लेकर, उनके संपूर्ण संकटों का सर्वनाश करने के लिए। ऐसी ही है़ ऊँचे पर्वत पर बसने वाली माता कल्याणी जो सबका कल्याण करती हैं ।
माता वैष्णो देवी की कथा
कहा जाता है कि माँ वैष्णो देवी, भारत के दक्षिण में निवास करने वाले माता दुर्गा के परम भक्त, रत्नाकर सागर की पुत्री हैं। बताते हैं कि माँ दुर्गा के परम भक्त रत्नाकर सागर की कोई संतान नहीं थी। तब रत्नाकर सागर ने मां दुर्गा की वर्षों घोर तपस्या की।
जिस तपस्या से प्रसन्न होकर रत्नाकर सागर को दर्शन देते हुये माँ दुर्गा ने कहा कि हे रत्नाकर, तुम दुखी मत हो। तुम्हारे घर संतान अवश्य पैदा होगी। बल्कि मैं ही तुम्हारे घर तुम्हारी बेटी के रूप में जन्म लूंगी। कहते हैं कि इसके बाद रत्नाकर सागर के घर में एक बेटी ने जन्म लिया।
जिसके मुख पर अपार आभा मंडल था। उस कन्या का स्वभाव अन्य सामान्य बालिकाओं से बिल्कुल अलग था। उसके बचपन से ही उसे आध्यात्मिक कार्यों में गहरी रुचि थी। कहते हैं कि जब वह बालिका आठ वर्ष की थी तभी वह भगवान विष्णु की घोर तपस्या मैं बैठ गयी।
बताते हैं कि वह कन्या केवल कंद- मूल खाकर लगातार 10 वर्षों तक भगवान विष्णु की तपस्या मे मंत्र का जाप करती रही । कहते हैं कि भगवान विष्णु ने वैष्णवी की तपस्या से प्रसन्न होकर दर्शन दिये और वरदान दिया कि हे वैष्णवी, तुम माँ काली, माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती के रूप में तीनों लोकों में पूजी जाओगी।
तुम्हारा प्रताप पूरी सृष्टि में गुंजित होगा और आगे चलकर मैं ही तुम्हारा जीवन साथी बनूंगा। पौराणिक कथा है़ कि देवी वैष्णवी का विवाह भगवान कल्कि के साथ हुआ, जो भगवान विष्णु के दसवें अवतार थे।
माता वैष्णो देवी की कहानी
जब माता वैष्णो देवी को यह पता चला कि त्रिकूट पर्वत पर तांत्रिक भैरव नाथ ने भयंकर उपद्रव मचाया हुआ है़। वह वहाँ ऋषि -मुनियों को तपस्या नहीं करने देता है़ बल्कि उनकी पूजा-पाठ में विध्न पहुँचाता है़। तब माता वैष्णो देवी छोटी सी कन्या के रूप त्रिकूट पर्वत पर जा पहुँची।
उन्होंने त्रिकूट पर्वत पर जाकर देखा की वास्तव में भैरवनाथ ने ऋषि -मुनियों और तपस्वियों के नाक में दम कर रखा है। त्रिकूट पर्वत पर पहुंचने के बाद माँ वैष्णो देवी ने देखा कि उस समय भैरवनाथ तपस्या कर रहे एक ऋषि पर मारने के लिए एक शिला उठाए खड़ा है़।
तब माता वैष्णो देवी कन्या के रूप में ही भैरवनाथ के सामने आ गईं। उस कन्या को देखकर भैरव नाथ चौंका। उसने सोंचा कि इस त्रिकूट पर्वत पर यह छोटी सी कन्या कहाँ से आ गई। उस छोटी सी कन्या को ऋषियों की मायावी शक्ति जानकर भैरव नाथ ने उसको मारने के लिए अब हाथ की उस बड़ी शिला को उस कन्या के ऊपर फेंक दिया।
कहते हैं कि भैरवनाथ के द्वारा फेंकी गयी उस शिला को उस कन्या ने एक गेंद की तरह आसमान में उछाल दिया। उसके बाद उस कन्या ने माँ काली का रौद्र रूप धारण कर लिया और भैरव नाथ का संहार कर दिया। कहते हैं कि देवी जब अपने विकराल रूप में प्रकट हुईं तो भैरव नाथ ने उन्हें पहचान लिया कि वह कन्या और कोई नहीं माता वैष्णवी हैं, जो उसके गलत कार्यों के लिए उसे दंड देने आयीं हैं।
भैरव मंदिर वैष्णो देवी
तब भैरव नाथ माता वैष्णो के चरणों में गिर पड़ा और क्षमा माँगने लगा। तब माता वैष्णो देवी ने कहा कि हे भैरव नाथ, अब तुझे मृत्यु दण्ड से कोई नहीं बचा सकता। लेकिन मैं तुझे वरदान देती हूँ। कि इस त्रिकूट पर्वत पर आने वाले भक्तों को मेरे दर्शन का लाभ तभी मिलेगा जब वह मेरे दर्शन के पश्चात तेरी चौखट पर अपनी उपस्थिति दर्ज करायेगा।
आज भी ऐसी मान्यता है़। इसलिए भक्त गण माँ वैष्णों देवी के दर्शन से लौटने के बाद मार्ग में पड़ने वाले भैरव नाथ के मंदिर जाते हैं। तभी उनकी माता वैष्णों देवी बस की यात्रा पूर्ण होती है़।
वैष्णो देवी मंदिर कितने किलोमीटर है
वास्तव मे वैष्णो देवी मंदिर जम्मू और कश्मीर में स्थित है और यह प्रदेश साल भर ठंडा रहता है। सर्दियों के दौरान, यहाँ का तापमान शून्य से नीचे चला जाता है। जहाँ तक दूरी की बात है तो वैष्णो देवी मंदिर के लिए 14 किलोमीटर की पैदल यात्रा की जाती है। मंदिर पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है और चढ़ाई में 3200 से अधिक सीढ़ियां हैं और आमतौर पर इसे पूरा करने में लगभग 3 घंटे लगते हैं।
हाँलाकी रोपवे और हेलीकाप्टर की सुविधा भी उपलब्ध हैं, पर सभी लोग इन सुविधाओं का लाभ उठाना पसंद नही करते। वैष्णो देवी मंदिर जाने के लिए सबसे अच्छे समय की बात करें तो गर्मियों में मई से जून और साल मे पड़ने वाली दोनों नवरात्रियों यानी मार्च से अप्रैल और सितंबर से अक्टूबर के बीच होता है।
वैष्णो देवी की ऊंचाई कितनी है
त्रिकूट की गुफा में स्थित माता वैष्णो पिंडी के रूप में अपने भक्तों को दर्शन देती हैं। दरअसल त्रिकूट गुफा में स्थित तीन पिंडियों के सम्मिलित रूप को माता वैष्णो देवी के नाम से जाना जाता है। इन तीन पिंडियों में दाहिनी तरफ महाकाली, बायीं ओर महा सरस्वती और महालक्ष्मी मध्य में स्थित हैं।
सिंह पर सवारी करने वाली माता वैष्णो आदि शक्ति दुर्गा हैं। जगदंबा है। माँ काली हैं और लक्ष्मी व सरस्वती हैं। दुष्टों का संहार करने के लिए उनके हाथों में त्रिशूल, तलवार, धनुष बाण और चक्र है़। माता वैष्णवी का यह धाम जम्मू जिले के कटरा नगर स्थित है। यह पावन धाम कटरा से लगभग 12 किलोमीटर दूर 5200 फीट पर्वत की ऊंचाई पर स्थित है। इस देवी के धाम में आने के बाद भक्तों को शक्ति, विद्या और धन तीनों की प्राप्ति होती है।