स्वर्ण मंदिर किसने बनवाया था
बहुत कम लोगों को इस बात का पता है कि सिक्खों के जिन गुरु साहब ने अमृतसर शहर को बसाया, उन्हीं गुरु जी ने स्वर्ण मंदिर जैसी सुंदर कल्पना को साकार रूप प्रदान किया। कहते हैं कि ये सिक्खों के वे गुरु थे जिन्होंने अपना बचपन बहुत गरीबी में व्यतीत किया।
बताते हैं कि उनके पिता उबले हुए चने बेचकर घर की जीविका चलाते थे। लेकिन उनके पिता बाबा हरि दास के घर में जन्म लेने वाले राम दास साहब ने प्रभु के मार्ग को पाने का मार्ग चुना और निरंतर उस पथ पर आगे बढ़ते गये। बताते हैं कि जब गुरू राम दास साहब का संपर्क सिखों के तीसरे गुरु अमर दास जी से हुआ तो गुरु राम दास जी का जीवन ही बदल गया।
वे पूरी तरह सिक्ख और सिक्ख समुदाय एवं मानवता के लिए समर्पित हो गये। कहते हैं कि गुरू राम दास साहिब ने अमृतसर की स्थापना उस समय की जब विदेशी आक्रमणकारी भारतीय संस्कृति को रौंद रहे थे। यह बहुत संकटकालीन समय था। उस समय देश के दुश्मन भारत के एक के बाद एक शहरों को नष्ट करते जा रहे थे।
ऐसे में सिक्खों के चौथे गुरु रामदास साहिब ने एक पवित्र शहर रामसर बसाया। जिसे बाद में अमृतसर नाम से जाना जाने लगा। इन्हीं गुरु रामदास साहब की ही कल्पना थी कि सिक्ख धर्म के लिए एक भव्य गुरुद्वारे की स्थापना की जाये। जिस सुंदर सोंच के परिणाम स्वरूप अस्तित्व में आया स्वर्ण मंदिर। सिक्ख समुदाय का यह विश्व प्रसिद्ध आराधना स्थल, जहाँ की चमत्कारी अरदास हर किसी के दुख- दर्द को मिटाने वाली है।
स्वर्ण मंदिर का इतिहास
कहते हैं कि स्वर्ण मंदिर का इतिहास 400 वर्षों से अधिक पुराना है। सिक्ख धर्मावलंबियों के इस आराधना स्थल (गुरुद्वारे) का निर्माण वर्ष 1585 में आरंभ हुआ और 1604 में पूर्ण हुआ। इस धार्मिक स्थल को हरी मंदिर साहिब और दरबार साहिब के नाम से भी जाना जाता है।
इतिहास बताता है कि इस स्वर्ण मंदिर की स्थापना का उत्तरदायित्व स्वयं सिख धर्म के गुरुओं ने अपने ऊपर ले लिया। इसीलिए तो इस धार्मिक स्थल में जाने पर अदभुत प्रभाव एवं अलौकिकता दिखाई देती है़। कहते हैं कि इस स्वर्ण मंदिर का निर्माण सिक्खों के चौथे गुरु रामदास साहिब ने कराया था।
जिनकी सहायता में सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव ने अपना पूर्ण योगदान दिया। यह स्वर्ण मंदिर लगभग 100 एकड़ भूमि में बसा हुआ है। स्वर्ण मंदिर की सबसे अधिक आकर्षित करने वाली बात यह है कि यह धार्मिक स्थल एक सरोवर के मध्य बना हुआ है।
अमृतसर स्वर्ण मंदिर में कितना सोना लगा है
जब उस सरोवर में इस स्वर्ण मंदिर का प्रतिबिंब दिखाई देता है तो ऐसा लगता है कि साक्षात देव लोक इस धरती पर उतर आया हो। इस मंदिर को सोने का बनवाने का श्रेय महाराजा रणजीत सिंह को जाता है। कहते हैं कि महाराजा रणजीत सिंह जी ने 15000 किलो सोने से इस मंदिर की बाहरी दीवारों को स्वर्ण से सुसज्जित किया। जिसके कारण ही इस आराधना स्थल को स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है।
क्या है स्वर्ण मंदिर की खास बात
स्वर्ण मंदिर सिक्ख धर्मावलंबियों का सबसे प्रमुख आराधना स्थल है। अपने देश में ही नहीं विदेशों में भी यह स्वर्ण मंदिर प्रसिद्ध है। कहते हैं कि इस स्वर्ण मंदिर में गूंजने वाली वाणी में स्वयं प्रभु का वास है़। स्वर्ण मंदिर में चारों दिशाओं में चार द्वार बने हुये हैं।
कहते हैं कि किसी भी धर्म का अनुयायी इस धार्मिक स्थान पर आकर अपना माथा टेक सकता है़ और गुरू ग्रंथ साहब का आशीष पा सकता है़। सेवादार सरदार गुरमुख सिंह जी कहते हैं कि स्वर्ण मंदिर के चारों द्वार पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण से सकारात्मक ऊर्जा इस धार्मिक स्थल में प्रवेश करती है।
इसीलिए यहाँ इस आराधना स्थल में आने वाला किसी भी धर्म का अनुयायी यहाँ आकर अपने अंदर एक नई ऊर्जा का अनुभव करता है। इस धार्मिक स्थल में आने के पश्चात आगंतुक को ऐसा लगता है कि जैसे उसे कोई बहुत बहुमूल्य वस्तु प्राप्त हो गई हो।
असीम प्रसन्नता की प्राप्ति इस स्वर्ण मंदिर का प्रमुख प्रसाद है। स्वर्ण मंदिर में आने वाले श्रध्दालु को भरपेट भोजन लंगर के रूप में प्रदान किया जाता है। बताते हैं कि इस मंदिर में नित्य हजारों की संख्या में लोगों को भोजन कराया जाता है। जिसका व्यय शिरोंमणि गुरुद्वारा समिति वहन करती है।
स्वर्ण मंदिर किस नदी के किनारे स्थित है
कहते हैं कि गुरु रामदास साहिब जी ने स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ एक सरोवर का निर्माण किया है। बताते हैं कि उस सरोवर का जल चमत्कारी है। यह बहुत सारे रोगों-शोकों को नष्ट करने वाला है़। कहते हैं कि इस सरोवर में भारत की प्रमुख नदियों का जल समाहित है।
कहते हैं कि इस जल में स्नान करने के पश्चात श्रद्धालु उत्तम स्वास्थ्य और प्रसन्नता प्राप्त करता है। यह प्रभाव है यहां की सकारात्मक ऊर्जा का, जो हवाओं में ही नही बल्कि जल में भी घुली हुई हुई है। इसी अमृत सरोवर के कारण इस शहर का नाम अमृतसर पड़ा।
रामदास सराय लोगों को आश्रय प्रदान करती है
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में आने वाले यात्रियों के लिए बहुत ही सुंदर और आरामदायक व्यवस्था की गई है। बताते हैं कि कुछ सौ साल पहले गुरु रामदास ने एक सराय की स्थापना की। जिसे उनके ही नाम से गुरु रामदास सराय के नाम से जाना जाता है़।
स्वर्ण मंदिर में आने वाले किसी व्यक्ति के ठहरने लिए यहाँ राम दास सराय में अच्छी व्यवस्था है़। राम दास सराय यहाँ आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए पूरी तरह निःशुल्क है। यहां रात दिन सेवा करने वाले सेवादार आगंतुक की सेवा कर अपने आप को धन्य मानते हैं।